(Gurugram News) गुरुग्राम। जीवन है पानी की बूंद महाकाव्य के मूल रचयिता जिनागम पंथ प्रवर्तक भावलिंगी संत श्रमणाचार्य गुरुदेव श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज का धर्मनगरी गुरुग्राम में भव्य मंगल प्रवेश हुआ।
श्री 1008 पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जैकमपुरा कमेटी के प्रधान संदीप जैन, उपप्रधान सी.ए. विनय जैन, महामंत्री श्रेयांश जैन, सहमंत्री पारस जैन व कोषाध्यक्ष प्रवीन जैन ने बताया कि शनिवार की सुबह की बेला में आचार्य श्री अपने ससंघस्थ 24 मुनिराज और आर्यिका माता जी सहित मॉलिबु सिटी से पद विहार करते हुए जैकमपुरा स्थित श्री 1008 श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पहुंचे। जैन समाज ने गाजे-बाजे के साथ आचार्य संघ की भवाति भव्य अगवानी कर जिशासन के वज को मुक्त आकाश में फहराया। भव्य अगवानी के साथ ही विशाल धर्मसभा आयोजित की गई, जिसमें दिल्ली, बड़ोत, बादशाहपुर, कृष्णा नगर, राजगढ़, कैलाश नगर, नजफगढ़, गाजियाबाद, द्वारिकापुरी आदि स्थानों से आगन्तुक भक्त समूह ने गुरुदेव के चरणों में श्रीफल समर्पित किया।
जैन समाज के प्रवक्ता अभय जैन एडवोकेट ने बताया कि मंगलाचरण, दीप प्रज्जवलन, गुरुपूजन आदि विविध आयोजनों के बाद आचार्य श्री ने अपना मांगलिक उद्बोधन प्रदान किया। आचार्य श्री ने अपने पावन वचनों में अनुयायियों से कहा कि आपको यह मानव जीवन मुस्कुराने के लिए मिला है। इस धरा पर सर्वप्रथम प्रकृति मुस्कुराई थी। जब युग के आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म हुआ था। अक्सर व्यक्ति के मुख पर मुस्कान होती नहीं है, किन्तु वह भरपूर कोशिश करता है कि मेरा चेहरा मुस्मुराता हुआ दिखाई दे। महामुनिराज ने अपने मुखारबिंद से कहा कि बनावटी मुस्कान आपको आंतरिक शांति प्रदान नहीं कर सकती। आंतरिक शांति आपकी अंतरंग वैभव यानी आत्मा के गुणों को जानकर व श्रद्धान करते हुए उन गुणों में लीन होने से ही हासिल हो सकती है। धर्म नगरी गुरुग्राम में पूज्य आचार्य संघ का मंगल प्रवास अधिक से अधिक प्राप्त हो, इसके लिए सकल जैन समाज ने विनम्र निवेदन किया।
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