- जैकबपुरा की श्री दुर्गा रामलीला के छठे दिन की लीला
(Gurugram News) गुरुग्राम। जैकबपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला के छठे दिन की लीला में पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने प्राण त्यागने से लेकर भरत के ननिहाल में पहुंचने की लीला का मंचन किय गया। कलाकारों ने रामलीला में जीवंत अभिनय किया। लीला में दिखाया गया कि राम-लक्ष्मण और सीता वनों में जा रहे हैं। इस दौरान उनकी निषादराज से भेंट होती है। तीनों को वनों में छोडकर सुमंत अयोध्या महल में लौटते हैं। केवट ने राम, लक्ष्मण और सीता को नदी पार करवाई। इससे पहले उन्होंने तीनों के चरण धोकर उस पानी को पीया।
दूसरी ओर भरत, शत्रुघ्न ननिहाल से अयोध्या पहुंचे। माहौल तनावपूर्ण था। भरत के बार-बार पूछने पर मां कैकेयी ने बताया कि उसने राजा दशरथ से भरत के लिए राज और राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा है तो भरत आग-बबूला हो उठते हैं। वे अपनी मां को पापिन, कुलक्षणी जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं। साथ ही पिता की मौत का दुख प्रकट करते हुए कहते हैं-छोडकर हमको किसके सहारे, हे पिता जी किधर को सिधारे, ये अकेले किधर की तैयारी, हाय फूटी है किस्मत हमारी। इसी बीच कैकेयी भरत को समझाते हुए कहती है कि अब तुम अयोध्या का राज संभालो।
भरत अपनी मां कैकेयी से कहते हैं-मुझे तेरा राज्य विष के बराबर लगता है, जिसे तू राज्य समझ रही है, मुझे वह कंकड़-पत्थर लगता है। पेड़ को काटकर पत्तों को सींचना चाहती हो, कर दिया नाश कुल का, अब मुंह दिखाना चाहती हो। इसके बाद भरत को राजा दशरथ का अंतिम संस्कार करने का कहा जाता है। भरत माता कौशल्या से भी मुलाकात करते हैं। कौशल्या उन्हें आराम से अयोध्या का राज करने को कहती है। इसके जवाब में भरत कहते हैं कि माता ऐसा नहीं हो सकता कि बड़े भाई के रहते छोटा भाई राज करे। भरत बोले-ऐ माता मेरे बदन में मत लगावै आग, पापन के पैदा हुआ फूटे मेरे भाग, तेरे चरणों की सौगंध है माता मुझे, इस शरारत का बिल्कुल पता ही नहीं, जो है इल्जाम दो तो तुम्हारी खुशी, वरना इसमें मेरी कुछ खता ही नहीं। इतना कहकर भरत बेहोश हो जाते हैं।
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