- सज-धजकर महिलाओं ने सुनी कहानी
- रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर खोला व्रत
(Gurugram News ) गुरुग्राम। पति की दीघार्यु के लिए सुहागिनों महिलाओं ने रविवार को करवाचौथ का व्रत रखा। रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर महिलाओं ने भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश का पूजन किया। कहानी सुनी। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला। आधुनिकता के इस दौर और बदलते परिवेश में करवाचौथ का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। अब युवतियां भी सुयोग्य वर पाने के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।
युवतियों ने भी करवाचौथ का व्रत रखकर सुयोग्य पाने ेकी कामना की। परिवार की बुजुर्ग महिलाओं ने विवाहित महिलाओं को करवाचौथ की कथा सुनाई और उन्हें सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद भी दिया। चंद्रमा को अर्ध्य देकर सुहागिनों ने अपना व्रत खोलकर बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया। करवाचौथ की तैयारियों में कई दिनों से बाजार सजे थे। महिलाएं खरीदारी कर रही थी। मेहंदी व अन्य सजावट के सामान की खूब बिक्री हुई। बाजारों में करवाचौथ के दिन भी खूब भीड़ रही।
करवाचौथ को लेकर प्रचलित कथा
करवाचौथ को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक साहूकार के 7 बेटे और उनकी एक बहन थी। जिसका नाम करवा था। सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। शादी के बाद एक बार जब उनकी बहन मायके आई हुई थी तो चतुर्थी के व्रत वाले दिन शाम को जब भाई खाना खाने बैठे तो अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे। बहन ने बताया कि आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही खा सकती है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख दिया, जिससे प्रतीत हो कि चतुर्थी का चांद निकल आया है। बहन चंद्रमा को अर्ध्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला ग्रास मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा ग्रास डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा ग्रास मुंह में डालती है। तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार आ जाता है, जिससे वह बेहद दुखी हो जाती है। तब उसकी भाभी सह्यचाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ।
व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही और उसकी देखभाल कर रही। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती। एक साल बाद फिर चौथ का दिन आया तो उसने व्रत रखा और शाम को सुहागिनों से अनुरोध किया कि यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो, लेकिन हर किसी ने मना कर दिया। आखिर में एक सुहागिन ने उसकी बात मान ली। इस तरह से उसका व्रत पूरा हो गया और उसे सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद भी मिल गया। तभी से सुहागिनें इस पर्व को धूमधाम से अपने पति की दीघार्यु के लिए मनाती आ रही हैं। बाजारों में भी महिलाओं की भारी भीड़ दिखाई दी।
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