आज समाज डिजिटल,पानीपत:
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी के द्वारा सर्वोच्च बलिदान और मानवता के प्रति खुद को समर्पित करना सदैव हमारे लिए प्रेरणादायक रहेगा। उन्होंने कहा कि धार्मिक एकता के प्रति गुरु तेग बहादुर जी की बलिदानी एक मिसाल है और उनकी पांच पीढ़ियों के बलिदान को हमें सदैव याद रखना चाहिए। वे रविवार को पानीपत में श्री गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उपमुख्यमंत्री ने पंजाबी भाषा में अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए सर्वप्रथम श्री गुरु तेग बहादुर जी को नमन और कार्यक्रम में पहुंची संगत को प्रणाम किया।
महान, त्यागी, महापुरुष थे गुरु तेग बहादुर जी
डिप्टी सीएम ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी महान, त्यागी, महापुरुष थे और उन्होंने बचपन से लेकर अपने अंतिम क्षणों तक धार्मिक मजबूती व एकता के प्रति कार्य किया। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर ने अपने बचपन में सर्दियों के दिनों में बीच रास्ते एक गरीब बच्चे को ठंड में कांपते हुए देखकर उसे अपने कपड़े दान कर दिए थे। दुष्यंत चौटाला ने कहा कि किसी के जीवन के लिए अपने जीवन को त्याग करना बड़ी बात हैं।
गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी
उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी और हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से होते हुए पटना तक धार्मिक एकता का संदेश दिया। डिप्टी सीएम ने कहा कि जब औरंगजेब के शासनकाल में धर्म परिवर्तन का जोर था तो उस समय मुगल शंहशाह के विरूद्ध कश्मीरी पंडितों का एक समूह गुरु तेग बहादुर जी मिला था, तब तेग बहादुर जी ने एक ही बात कही थी कि औरंगजेब पहले उनका धर्म परिवर्तन करके देखे फिर और लोगों का धर्म बदलें। उन्होंने कहा कि इस चेतावनी ने मुगल शंहशाह को हिला कर रख दिया था।
खुद की बलिदानी के समय भी वे एक पल औरंगजेब के सामने नहीं झुके
डिप्टी सीएम ने कहा कि गुरु तेग बहादुर के तीन सहयोगी भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी और खुद की बलिदानी के समय भी वे एक पल औरंगजेब के सामने नहीं झुके थे। दुष्यंत चौटाला ने गुरु तेग बहादुर के शीश के बदले अपने शीश का बलिदान करने वाले कुशाल सिंह दहिया जी को भी नमन किया और कहा कि हरियाणा के बेटे ने मुगल सैनिकों को गुरु तेग बहादुर जी के शीश की जगह अपना शीश देकर बलिदान दिया और आज सोनीपत की पावन धरा पर बढ़खालसा के नाम से यह स्थान पूजा जाता है।