Guru Prasang: गुरु प्रसंग – मानवता के लिए प्रकाश-स्तंभ है

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महापुरुषों का जीवन सामान्य मनुष्यों के लिए सदैव प्रेरणादायक और मार्गदर्शक होता है। उनके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग घटित होते हैं जो जीवन के गहरे अर्थों को उद्घाटित करके सामान्य मनुष्यों को जीने की सही समझ प्रदान कर जाते हैं। महान आध्यात्मिक गुरु समाज-सुधारक, नवधर्म-प्रणेता प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी का जीवन-पथ भी ऐसे अनगिनत प्रसंगों से ओत-प्रोत है जो मानव-मात्र को सहज जीवन-युक्तियां सिखाते हैं। व्यापार के लिए मिले बीस रुपयों से साधु-संतों को भोजन करा देने वाला सच्चा सौदा-प्रसंग, भाई लालो जी की परिश्रम से कमाई सूखी रोटी का स्वीकार तथा मलिक भागो के शोषण से बनाए पकवानों का तिरस्कार, संतोष का सबक और मक्का में ह्यईश्वर किस दिशा में नहीं हैह्ण की स्थापना करने जैसे अनेक प्रसंग तो गुरु जी के विषय में प्रसिद्ध हैं ही, परंतु जन्म-साखियों में कुछ ऐसे अल्प-ज्ञात प्रसंग भी दर्ज हैं जो गुरु जी के जीवन को मानवता के प्रकाश-स्तंभ के रूप में स्थापित करते हैं। श्री गुरु नानक देव जी सुलतानपुर लोधी में नवाब दौलत खां के मोदीखाने के संचालक थे। नवाब को पता चला कि गुरु जी कहते हैं-ह्यन को हिंदू न मुसलमान।ह्ण नवाब ने गुरु जी को बुलाकर इस बाबत पूछताछ की तो गुरु जी बोले-सभी एक ही ईश्वर की संतान है। नवाब ने कहा ऐसा है तो चलो हमारे साथ नमाज पढ़ो। गुरु जी उसके साथ चले गए, परंतु पंक्ति से अलग खड़े होकर नवाब और काजी को नमाज पढ़ते देखते रहे। नमाज के बाद नवाब ने नाराजगी से पूछा ह्यआपने नमाज क्यों नहीं पढ़ी? तो गुरु जी ने कहा कि ह्णमैं किसके साथ नमाज पढ़ता? आपका ध्यान तो काबुल में घोड़े खरीदने-बेचने में था। सच्चे मन से स्मरण किए बिना कोई इबादत स्वीकार नहीं होती। नवाब निरुत्तर रह गया।
आत्मिक शुद्धि अनिवार्य
अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी प्रयाग में त्रिवेणी के निकट विराजमान थे। वहां बहुत-सी जनता दर्शनों के लिए आ पहुंची। संगत ने गुरु जी से प्रश्न किया कि हम पूजा-पाठ तो बहुत करते हैं परंतु न तो उसका असर होता है और न उसमें रस ही आता है। इस पर गुरु जी ने समझाया कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को त्यागोगे तभी वास्तविक आनंद प्राप्त होगा।
राज में त्याग का उपदेश
बनारस के निकट स्थित नगर चंदरौली का राजा हरिनाथ गुरु जी से प्रभावित होकर राज-पाट त्याग कर संन्यास लेने के लिए प्रस्तुत हुआ तो गुरु जी ने उपदेश दिया कि प्रजा की सेवा करो, राज में ही योग के फल की प्राप्ति होगी।
बांट कर खाओ
गुरु जी का कथन था कि बांट कर खाओ। रामेश्वरम के निकट कुछ योगियों ने इस पर शंका प्रकट की और गुरु जी को एक तिल देकर कहा कि इसे कैसे बांट कर खाया जा सकता है? गुरु जी ने तिल को सिलबट्टे पर पीस कर सभी को बांट दिया। यह देख कर योगियों ने भक्ति-भाव से गुरु जी को प्रणाम किया।
एक पैसे का सच-एक पैसे का झूठ
यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी स्यालकोट नगर में पहुंचे तो भाई मरदाना जी ने गुरु जी से जीवन का सत्य समझाने की प्रार्थना की। गुरु जी ने भाई मरदाना जी को शहर में भाई मूला के पास भेजा और कहा कि एक पैसे का सच और एक पैसे का झूठ लेकर आओ। भाई मूला ने कागज के टुकड़े पर लिख दिया ह्यमरना सचह्ण और ह्यजीना झूठह्ण। गुरु जी ने भाई मरदाना जी को समझाया-यही है जीवन का सच।
गृहस्थ का गौरव
श्री गुरु नानक देव जी जब पेशावर के निकट गोरख हटड़ी में पहुंचे तो योगियों ने पूछा, ह्यआप उदासी हो या गृहस्थी?ह्ण
गुरु जी ने उत्तर दिया, ह्यमैं गृहस्थी हूं।ह्ण योगियों ने कहा कि , ह्यजैसे नशेड़ी व्यक्ति प्रभु का ध्यान नहीं कर सकता उसी प्रकार माया में फंसा गृहस्थी भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।ह्ण गुरु जी ने उत्तर दिया कि ह्णईश्वर सद्गुणों से प्राप्त होता है। गृहस्थी या संन्यासी, जो सद्गुण धारण करेगा वही ईश्वर को प्राप्त कर सकेगा।ह्ण इस प्रकार श्री गुरु नानक देव जी के जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो मनुष्य को जीने की सही राह दिखाते हैं।
गुरु नानक देव के जीवन जुड़े हैं यह गुरुद्वारा साहिब
गुरु नानक देव ने समाज में फैले अंधविश्वास और जातिवाद को मिटाने के लिए बहुत से कार्य किए। यही कारण है कि हर धर्म के लोग उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं। आइए, जानते हैं गुरु नानक देव के जीवन से जुड़े मुख्य गुरुद्वारों के बारे में-
गुरुद्वारा कंध साहिब
बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहां बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत् 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहां गुरु नानक की विवाह वर्षगांठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
गुरुद्वारा हाट साहिब
गुरुद्वारा हाट साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है। गुरु नानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहां शाही भंडार के देख-रेख की नौकरी प्रारंभ की। वह यहां पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को ह्यतेराह्ण शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
गुरुद्वारा गुरु का बाग
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित गुरुद्वारा गुरु का बाग में गुरु नानक देव जी का घर था, जहां उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
गुरुद्वारा कोठरी साहिब
गुरुद्वारा कोठरी साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है जहां नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को छोड़ कर माफी ही नहीं मांगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
गुरुद्वारा बेर साहिब
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में गुरुद्वारा बेर साहिब वो जगह है जहां नानक देव का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था। जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मदार्ना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे, तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहां पर उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे लेकिन वह वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतनाम। गुरु नानक ने वहां एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
गुरुद्वारा अचल साहिब
गुरुदासपुर में स्थित गुरुद्वारा अचल साहिब वह जगह है जहां अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव रुके थे। यहीं पर नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद भी हुआ था। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। यहीं नानक देव जी ने उन्हें बताया था कि ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक, गुरुदासपुर में स्थित है। जीवनभर धार्मिक यात्राओं के बाद नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया। सन् 1539 ई. में वह परम ज्योति में विलीन हुए।