Guru Nanak Dev Jayanti: मानवीय संवेदनाओं के संरक्षक संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी

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Guru Nanak Dev Jayanti: मानवीय संवेदनाओं के संरक्षक संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी
Guru Nanak Dev Jayanti: मानवीय संवेदनाओं के संरक्षक संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी

Acharya Deep Chand Bhardwaj, आज समाज डेस्क: भारतवर्ष संत, महापुरुषों, ऋषि मुनियों की पावन धरा है। मानव जाति के कल्याण हेतु इस पुनीत धरा पर समय-समय पर अनेकों दिव्य महान विभूतियों ने जन्म लिया है। समाज का जनमानस जब वैचारिक एवं मानसिक रूप से निराशा एवं नकारात्मक विचार धारा से ग्रस्त हो जाता है, तब ऐसे अशांत वातावरण में से आत्मिक शक्ति से परिपूर्ण संत मनीषी ही मानव जाति का उद्धार करने में समर्थ होते हैं। महान संत गुरु नानक देव जी का जन्म भी मानव जाति के कल्याण के निमित्त हुआ।

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महान क्रांतिकारी, समाज सुधारक, श्रेष्ठ ईश्वर भक्त गुरु नानक देव जी का जन्म सन 1469 ईस्वी में जिला शेखुपुरा के राय भोयी की तलवंडी नामक ग्राम में पिता मेहता कालू और माता तृप्ता के घर में हुआ। कार्तिक मास की पूर्णिमा को इस महामानव के जन्मदिवस को संपूर्ण भारतवर्ष में प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह विशेष रुप से पवित्र पर्व के समान है। गुरु नानक देव जी बाल्यकाल से ही दयालु, वैरागी एवं चिंतनशील प्रवृत्ति के थे। सांसारिक व्यापार, भोग विषयों की आसक्ति से इनका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था।

बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के धनी गुरु नानक देव जी को एक बार इनके पिता ने व्यापार करने हेतु कुछ रुपए देकर भेजा ,परंतु मार्ग में भूखे साधुओं को देखकर इन्होंने उन रुपयों से उन को भोजन करवाया ।साधु और संतों की संगति को गुरु नानक देव जी उत्तम मानते थे। संपूर्ण मानव जाति एवं संसार के कल्याण हेतु इन्होंने “किरत करना, नाम जपना,वंड छकना” इन तीन स्वर्णिम सिद्धांतों को सिक्ख समाज हेतु प्रदान किया। कीरत करना से अभिप्राय है लोभ और लालच को मन से निकाल कर, ईमानदारी के साथ परिश्रम करते हुए धन एवं आजीविका कमाना और दीन दुखियों हेतु समर्पित करना।

श्रम की यह भावना सिख अवधारणा का भी मूल केंद्र है। इस शिक्षा को स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमीदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन परिश्रम के माध्यम से अर्जित रूखे सूखे भोजन को प्राथमिकता दी। नाम जपना से अभिप्राय है प्रतिपल अपनी आत्मा से उस प्रभु के नाम का उच्चारण, चिंतन, मनन करते रहना। गुरु नानक जी ने बताया है कि प्रभु नाम के इस चिंतन से मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास होता है। जिससे ईश्वरीय भक्ति और आनंद का मार्ग प्रशस्त होता है। वंड छकना को स्पष्ट करते हुए नानक देव जी कहते हैं कि समाज में बिना किसी भेदभाव के भोग्य पदार्थों को मिल बांट कर खाना। इससे समाज में आपसी प्रेम, स्नेह और सौहार्द की स्थापना होती है।

सिख धर्म में नाम स्मरण पर विशेष बल दिया गया है। गुरु द्वारा रचित पद गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित हैं। नानक जी की सुप्रसिद्ध रचना जपुजी साहिब है जिसमें 38छन्द हैं। ईश्वर के सर्वव्यापी दिव्य स्वरूप का वर्णन करते हुए गुरु नानक जी मूल मंत्र में लिखते हैं कि-“इक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभौर निरवैर अकाल मूरत अजूनी सभंग गुरु परसाद जप आद सच जुगाद सच है भी सच नानक होसी भी सच” अर्थात वह ईश्वर ओंकार रूप एक है और वह संपूर्ण ब्रह्मांड में समाया हुआ सत्य स्वरूप तथा इस सृष्टि का रचयिता है। वह परमेश्वर समय , आकृति से रहित, जन्म मरण से रहित, वही अनादि शाश्वत एक मात्र सत्य है और वही ईश्वर एक अटल सत्य रहेगा।

ब्रह्म मुहूर्त में प्राय: प्रत्येक गुरुद्वारे से इस पवित्र मूल मंत्र का पाठ होता है, जिसके श्रवण, चिंतन और उच्चारण से आत्मिक शांति और आनंद का संचार होता है। गुरु नानक देव जी का संपूर्ण जीवन मानव के कल्याण हेतु समर्पित रहा। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भी वह सादगी की प्रतिमूर्ति थे तथा प्रतिपल साधु संतों की संगति और प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे। गुरु नानक जी ने अपने जीवन काल में लगभग 22 वर्ष देश विदेश में पैदल चलकर धर्म के सार का प्रचार किया। नानक जी मानवीय संवेदनाओं के प्रबल समर्थक थे।

उनका मानना था कि जिस समाज में मानवीय संवेदनाएं स्नेह, ममता, प्रेम, शांति ,आपसी भाईचारा कायम रहता है वही समाज उन्नति की ओर अग्रसर होता है। वह दीन – दुखियों के सहायक थे ।उनके प्रति उनके ह्रदय में अपार श्रद्धा एवं स्नेह था। गुरु नानक जी नारी जाति के उत्थान के मुख्य केंद्र बिंदु थे ।उन्होंने नारी जाति के मान और स्वाभिमान की रक्षा की तथा उसे महान बताया। क्योंकि मात्री शक्ति के माध्यम से ही इस धरा पर बड़े-बड़े विद्वानों और राजाओं ने जन्म लिया है ।स्त्री जाति के प्रति उनका चिंतन था कि-“सो क्यों मंदा आखिये,जिन जमहि राजान” अर्थात नारी को मंदा कहना उचित नहीं है क्योंकि उसी ने ही बड़े-बड़े राजाओं, विद्वानों, साधकों ,तपस्वियों को जन्म दिया है।

वह सम्मान की हकदार है। गुरु नानक देव जी ने सामाजिक एकता का प्रचार किया ।वह जात-पात के बंधन को स्वीकार नहीं करते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य उस परमात्मा की ही संतान है अर्थात हर एक प्राणी में वही दिव्य तत्व समाया हुआ है। इसलिए सभी मनुष्य समान आदर के अधिकारी हैं ।गुरु नानक देव जी ने अपने अमर उपदेशों के माध्यम से मध्ययुगीन 15 वीं शताब्दी में जनमानस के अज्ञानता के अंधकार को दूर किया। सिख धर्म के स्वामी जगत गुरु नानक की गुरुवाणी ब्रह्म ज्ञान से उपजी आत्मिक शक्ति को लोक कल्याण के लिए प्रयोग करने की प्रेरणा देती है।

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