गुरु नानक देव का व्यक्तित्व क्रांतिकारी, संवादयुक्त व तर्कशीलता से संचित: डॉ. सुभाष चन्द्र

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Gurbani is the brain's food for the society: Dr. Paramjit Kaur Sidhu
Gurbani is the brain's food for the society: Dr. Paramjit Kaur Sidhu
  • गुरुवाणी समाज के लिए मस्तिष्क की खुराक: डॉ. परमजीत कौर सिद्धू
  • मनुष्य के आंतरिक विचारों को मज़बूत करती है गुरुवाणी: डॉ. कुलदीप सिंह
  • हिंदी एवं पंजाबी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘गुरु नानक वाणी की वर्तमान समय में प्रासंगिता’ विषय पर विचार गोष्ठी का हुआ आयोजन

इशिका ठाकुर,कुरुक्षेत्र:

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पंजाबी एवं हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में गुरु नानक देव जयंती के अवसर पर ‘गुरु नानक वाणी की वर्तमान समय में प्रासंगिकता’ विषय पर विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुभाष चन्द्र, पंजाबी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह और डॉ. परमजीत कौर सिद्धू शामिल हुए।

मानवता की सेवा करना ही मनुष्य का परम धर्म

Gurbani is the brain's food for the society: Dr. Paramjit Kaur Sidhu
Gurbani is the brain’s food for the society: Dr. Paramjit Kaur Sidhu

हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व एकदम क्रांतिकारी, संवादयुक्त व तर्कशीलता से संचित है। अहंकार को त्याग कर, मानवता की सेवा करना ही मनुष्य की परम धर्म है। उन्होंने कहा कि नानक जी की पंक्तियां ‘जे तऊ प्रेम खेलण का चाऊ, सिर धर तली, गली मेरे आऊ। इत मारग पैर धरी जै, सिर दीजै काण न कीजै। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में चार उदासी की और उस समय के संत-महात्माओं के पास गए और उनके दिए सिद्धांतों की जाँच कीव सत्य को परखा। उसी का परिणाम था बाद में व्यवहारिक ज्ञान को समेटते हुए गुरु ग्रंथ साहिब की रचना की गई।

डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि गुरु नानक देव मध्यकाल में भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत से बाहर गए और दुनिया के ज्ञान की जांच परख की। आधुनिक युग में सारी दुनिया में स्त्रियों को बराबरी के लिए अनेक आंदोलन किए है लेकिन गुरु नानक देव के महिलाओं की समानता के लिए अपनी वाणी में प्रयोग किए और नारी के लिए सम्मान की बात की। एक लेखक राज्याश्रय होकर अपनी कलम राजा की प्रशंसा और गुणगान करने लगता है। गुरू नानक देव ने तत्कालीन सत्ता की क्रूरता के बारे में और बाबर द्वारा किए गए आक्रमण, समाज में फैली कुरीतियों, पांखंडों एवं रूढ़ियों का अपनी वाणी के माध्यम से विरोध भी किया। उन्होंने कहा आचरण बाह्य सुन्दरता से नहीं बल्कि आंतरिक विचारों की सुन्दरता से बनता है। गुरु नानक की वाणी हमें अपनी जीवन को देखने, समझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है।

गुरुवाणी समाज के लिए मस्तिष्क की खुराक

डॉ. परमजीत कौर सिद्धू ने कहा कि गुरु नानक देव जी की वाणी जीवन के ज़रूरी मुद्दों से जुड़ी है। गुरुवाणी समाज के लिए मस्तिष्क की खुराक है तो साहित्यकर्मियांे के लिए चेतनशील कविता जो एक मार्गदर्शन की काम करती है। गुरु नानक की जीवनी में उस समय के हालातों के बारे पता लगता है और आज 550 वर्षों बाद भी जनता की समस्याएँ वही है जिसमें राजनीतिक क्रूरता, धर्म के आडंबरों, समाज की रूढ़ियाँ शामिल है। ऐसी व्यवस्था की सचाई के बारे में लिखना उस समय में भी इतना ही हानिकारक था जितना आज है लेकिन नानक जी ने यह ख़तरा उठाया और अपनी वाणी के माध्यम से आम जनता के साथ हो रहे क्रूर व्यवहार के बारे में लिखा।
पंजाबी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह ने गुरु नानक वाणी के महत्व को बताते हुए कहा कि गुरु नानक वाणी की भाषा का मुहावरा अपनी एक मौलिकता को लिए हुए है जो जन साधारण मनुष्य को आसानी से समझ में आती है और नानक वाणी का संवाद एकतरफ़ा नहीं है तथा गुरुवाणी मनुष्य के आंतरिक विचारों को मज़बूत करती है। नानक वाणी की मुख्य विशेषता है कि वह मनुष्य बाह्य आचरण को महत्व न देकर मनुष्य के आंतरिक आचरण के विकास की पक्षधरता की समर्थन करती है। तत्कालीन सत्ता के व्यवहार और बाबर के आक्रमण से आम जनता के साथ हुए व्यवहार को नानक ने अपनी वाणी के माध्यम बताया।

अनेकता के प्रतिरोध करके एकता को स्थापित

डॉ. कुलदीप से बताया नानक शब्द ना-अनक वर्णों के योग से बना है जिसमें किसी भी प्रकार की भिन्नता, अनेकता के प्रतिरोध करके एकता को स्थापित करता है। गुरु नानक वाणी का निष्कर्ष भी एकता स्थापित करना है। गुरुवाणी के मुख्य संदेश है – किव सचिआरा होईए, किव कुढै़ तुटै पाल। उन्होंने कहा कि सचिआर दो शब्दों से बनता है जिसमें सच भी शामिल है और आचरण भी। गुरु साहिब ने कहा है सत्य से ऊपर अगर कोई चीज है तो वह है आपका आचरण। जब तक दोनों का मेल नहीं होगा तब तक आपके विचार का प्रभाव दूसरों पर नहीं पडेगा। इसलिए सत्य के साथ आचरण बहुत महत्व है। गुरु नानक देव अपनी वाणी के माध्यम से केवल सामाजिक समस्याओं के बारे में विचार ही नहीं करते बल्कि उससे बाहर निकलने का मार्ग भी बताते है। इसलिए वह कहते है मनजीत-जगजीत। जिसने मन को जीत लिया वही जगजीत है।
कार्यक्रम का संचालन पंजाबी विभाग के शोधार्थी रवि सिंह ने किया। इस मौक़े पर उर्दू विभाग से प्राध्यापक माजिद खान भावड़िया, हिन्दी विभाग के प्राध्यापक विकास साल्याण औऱ पंजाबी एवं हिन्दी विभाग के विद्यार्थी एवं शोधार्थी मौजूद थे।

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