Guidance of Bhagavad Gita and Covid-19 Jeevan Yatra: भगवद् गीता का मार्गदर्शन एवं कोविड-19 जीवन यात्रा

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आज सभी लोग अपने घरों में बंद है और कोविड 19 से प्रभावित हैं। जिससे न केवल असुविधा बल्कि कहीं न कहीं चिंता ने भी सभी को घेरा हुआ है। वहीं इस परिस्थिति ने कुछ अवसर भी प्रदान किए है। लोगों को खुद के बारे में सोचने का मौका दिया है। लोग जीवन को जिन्दगी बनाने के लिए सोचने लगे। कितने ही लोगों के जीवन में रंग भरने लगे, हाथ चित्रकारी करने लगे और सभी अपने व्यक्तित्व के वो आयाम ढूंढने लगे जो पहले शायद कभी महसूस ही नहीं किए। जिन्दगी की आपा-धापी में, भागते-दौड़ते कभी रूकने का समय ही नहीं मिला और कभी ये सोचा ही नहीं कि जीने का वास्तविक उद्देश्य क्या है? इसके मायने क्या है? क्या मुश्किल परिस्थितियों में इसके अर्थ बदल जाते हैं, जीने का तरीका बदल जाता है? सबसे बड़ा प्रश्न तो खुद को खुश रखने का है…  अपने भीतर खुशी को ढूंढने का है। पर अगर हम ये सोच रहे है कि कहीं बाहर से कुछ होने वाला है, शायद नहीं। ये कहीं भीतर ही है। चिन्ता ये नहीं होनी चाहिए कि जीवन कितना है, बल्कि ये होनी चाहिए कि जीना कैसे है? इन परिस्थितियों में भगवद् गीता एक पवित्र रोशनी की तरह हमारा मार्गदर्शन करती है, अन्धकार मय विचारों को प्रकाशित करती है, निराशा को आशा के सूरज में बदलती है और मुश्किल हालातों में सहज रहने की ओर इशारा करती है। यदि परिणाम हमारी आशाओं के अनुकूल हों तो हमें वह समय समस्या जान पड़ता है।
हम सभी की जिन्दगी प्रेम, त्याग, ईच्छा, भय और सत्य का मिश्रण है। इसमें इन सभी भावों को कैसे संतुलित करना है, यह समझने के लिए एक दिशा की जरुरत होती है जो भगवद् गीता से प्राप्त होती है। जो हमें ऐसा मार्ग दिखाती है जिससे ह्यमुश्किल समयह्ण नाम का विचार भी हमारे जीवन मूल्यों को बदल नहीं सकता। भगवद् गीता के ये तीन उपदेश जो कोविड 19  समय में जीवन को सहज बनाने के लिए निश्चित रुप से एक दिशा का काम करते हैं।
प्रथम, ह्यह्यकिसी दूसरे के साथ पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है कि हम अपने स्वंय को भाग्य के अनुसार अपूर्ण जियें।ह्णह्ण भगवद् गीता का यह उपदेश इस बात की ओर संकेत करता है कि स्वंय को जानना जरुरी है। निर्णय भी खुद ही  लिये जाने चाहिए जो स्वयं के अनुरूप हो। स्वयं पर विश्वास रखें एवं दूसरों से अपेक्षा न रखे। कोविड 19  समय भी यही सोचने को मजबूर करता है। यदि इस समय में अपने संसाधनों, अपने विचारों एवं हम अपने आप को जानने की कोशिश करेगें तो जरूरतें अपने आप ही सीमीत होती नजर आएगी। दूसरों से अपेक्षा न रख कर स्वयं से प्रेम करना, स्वयं की क्षमताओं को ढूंढना और स्वयं के उदेद्श्य को पहचानना ही कोविड 19  समय की अमूल्य देन साबित हो सकती है, और इस समय को आशाजनक बनाने में योगदान दे सकती है। उपरोक्त उपदेश जीवन जीने का यह समीकरण देता है, आत्म ज्ञान ़ निर्णय – अपेक्षा त्र सकारात्मक जीवन आत्म ज्ञान से तात्पर्य अपने मूल को जानने से है। जो हर किसी के पास है जिसे मौन में सुना जा सकता है। हर व्यक्ति बाहरी मुखौटों को ओढ़ कर वापिस बार-बार अपनें मूल की तरफ आता है। वहीं से सृजन होता है एवं वहीं से खुद की क्षमताओं का पता चलता है। कोविड 19 ने समय दिया है, तो खटखटाते रहिए मौन से अपने मूल के दरवाजे, जिससे जीवन के सही मायने समझ आ सकें।
निर्णय अपने आप ही लिए जाने चाहिए। वरना दूसरों के विचारों एव खुद के विचारों का यु़़द्ध क्षेत्र बन जाता है और युद्ध क्षेत्र में सिर्फ लड़ा जाता है। निर्णय चाहे छोटे हो या बड़े, वो हमारे ही जीवन से सम्बन्धित है। इसी लिए वो खुद ही लिए जाने चाहिए। स्वयं के निर्णयों को जोखिम के धरातल से जुड़ने दिजीए, खुद-ब-खुद लड़ाखड़ा कर खड़ा होना सीख जाएगें। कोविड 19  समय भी स्वयं के निर्णय लेने का है। कैसे आप खुद को एवं दूसरों को सुरक्षित रखते हुए इस प्रकृति का बसन्ती स्वर्णिम रथ दोबारा से ला सकते हैं, कैसे श्वेत गगन चूम्बी पर्वतों की चोटियों से फिर से बातें कर सकते हैं, ये निर्णय लेने आवश्यक हैं। अपेक्षा, ईच्छाओं को जन्म देती है एवं स्वयं को स्वयं से दूर कर देती है। हम अपना जीवन न जी कर बल्कि दूसरे का जीवन अपेक्षाओं के तहत् जीते हैं। दूसरे हमारे अनूकूल व्यवहार क्यों नहीं करते इसी उधेड़बुन के जाले को हम अपना घर बना लेते है। जिससे स्वयं को भारी कर लेते हैं। कोविड 19 समय, अपेक्षाओं का मूल्य निरर्थक है, यह बताता है। आपकी हर रिश्ता, आपके सभी गुणों -अच्छे एवं बुरे दोनों के साथ स्वीकारता है।
इसका प्रमाण कोविड 19 में देखा जा सकता है जब हम घरों में रहकर, अपने लोगों का ख्याल रख एक-दूसरे को हर स्वरूप में स्वीकार रहे हैं।
अगर हम खुद को जान लें, निर्णय लें एवं अपेक्षाए न रखें तो हम समय में हर्ष का अनुभव कर सकते हैं फिर चाहे वह कोविड 19  समय ही क्यों न हो।
द्वितीय ह्यह्यऐसा कोई नहीं जिसने भी इस संसार में अच्छा कार्य किया हो उसक बुरा अंत हुआ हो, चाहे इस काल में हो या आने वाले काल में।ह्णह्ण भगवद् गीता का उपदेश यह संकेत करता है कि हमें स्वयं के प्रति ईमानदार रहते हुए, अच्छी सोच के साथ कार्य करने चाहिए। अच्छेमन एवं सोच से किए कार्य अच्छे परिणाम ही लाते हैं।
कोविड 19  समय ने भी इसी सोच की तरफ बढ़ने का इशारा किया है। इस परिस्थिति में भी मन, वचन एवं कर्म से कुछ अच्छा करने की सोच, न केवल व्यक्ति विशेष को, समाज को वरन् पूरे विश्व को सुरक्षित कर सकती है, आशाओं का संचार करती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे मधुमक्खी हर फूल पर एक आशा के साथ बैठती है और शहद का निर्माण करती है।
कई बार हम परिणामों को समय के संकूचित दायरे में देखते हैं और निराश हो जाते है। हृदय को विशाल कीजिए एवं महसूस कीजिए। अच्छाई किसी न किसी रूप में समय की सीमा को तोड़ते हुए अपना नतीजा निश्चित रूप से सुना कर जाती ही है।
कोविड 19 समय अच्छी सोच के दान का समय है। जितना अच्छा सोच सकते हैं, कर सकते हैं, रह सकते हैं – करते रहिए। यही सोच हमारा जीवन बदल सकती है। फूल अपनी सुगन्ध सभी को देता है, नदी अपना पानी सभी के लिए बहाती चलती है, पेड़ सभी को छांव देते है। इसीलिए थोड़ा समय खुद को अच्छाई बुराई के दायरे से निकाल सब को समर्पित कीजिए। सब कुछ सभी का है। घरों की चार दीवारियाँ बनने से दिल नहीं बाँटने चाहिऐ। सर्वे भवन्तुं सुखिन: के भाव को सोच जीवन में प्रसन्नता रखिए।
उपरोक्त उपदेश जीवन का निम्न समीकरण देता है।
सकरात्मक सोच ़ अच्छी नीयत त्र सकारात्मक परिणाम
हम लोग अपने जीवन के लिए स्वयं जिम्मेवार होते हैं। हमारी सोच, नीयत उसमें योगदान देती है। यदि हम ये सोचते हैं कि कोई मुश्किल हमें ताउम्र के लिए निराश कर देगी, तो यह सोच गलत ही साबित होगी। यह हम अपने जीवन की पिछली घटनाओं से जान सकते है। कोविड 19 की विपदा को भी आईने की तरह प्रयोग किया जा सकता है यह देखने के लिए कि कौन-सी ऐसी चीजे़ हैं जिन्होनें बढ़ी दृढ़ता से सबके हृदय में, इस परिस्थिति में सकरात्मक परिणाम प्राप्त होने की लौ को रोशन किया हुआ है- खुद में झाँकेगें तो सकारात्मक सोच और अच्छी नीयत ये दो दोस्त ही नजर आएगें।
तृतीय, ह्यह्यजो भी मनुष्य अपने जीवन अध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्पों में स्थिर है।
वह समान रुप से संकटों के आक्रमण को सहन कर सकते हैं और निश्चित रुप से यह व्यक्ति खुशियाँ और मुक्ति पाने का पात्र है।ह्णह्ण
यह दिशा निर्देश दृढ़ संकल्प, आस्था आध्यात्मिकता की ओर संकेत करता है। जिसे निम्न समीकरण से समझा जा सकता है।
दृढ़ सकल्प ़ आध्यात्मिकता ़ आस्था त्र आजादी
दृढ़ संकल्प उन चट्टानों की तरह होते हैं जिन्हे अगर हटाया जाए तो उनके नीचे जीवाश्म नजर आते हैं जो हमारे अस्तित्व का प्रतीक होते है। जीवन में संकल्प होने जरूरी हैं। और उन्हें दृढ़ता की नींव देना हमारा कर्तव्य भी होना चाहिए एवं निश्चय भी। हमें हौसलों को उड़ान देनी चाहिए, हर किसी में उड़ने वाला परिन्दा होता है जो चाहे जितनी ऊँची उड़ान भर सकता है। आध्यात्मिकता हमें देती है चीजों के परे देखने की दृष्टि। जैसे किसी दूर मौन में कोई आवाज हृदय को छू जाती है। ऐसे ही आध्यात्मिकता से भी आंखे वो देखपाती हैं जो सामान्यत: दिखाई नहीं पड़ता।
आस्था को अगर जीवन में धारण कर लिया जाए तो मनुष्य को पंख लग जाते हैं और वह आसमान को भी नाप सकता है। आस्था, साधरण घटनाओं को असाधारण बना देती है। यह आस्था ही होती है जो खेल के मैदान में, किसी खिलाड़ी से गोल कराती है और किसी तैराक से महासागर पार कराती है। कोविड 19 समय में अध्यात्मिकता, दृढ़ संकल्प एवं आस्था को हम अपने आस-पास देख सकते है।
संयम, सहजता, स्वास्थय की बातचीत इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि हम अध्यात्मिकता की ओर इशारा कर रहे हैं। आस्था से ही कुछ लोग ऐसे काम कर रहे हैं जो शायद उन्होनें पहले न किए हों।
इन सब को जीवन में अपनाने से आजादी को पाना संभव है। आजादी से तात्पर्य यहाँ नकारात्मक सोच की आजादी से है, स्वयं को हल्का महसूस करने से है, विचारों के युद्धक्षेत्र की जंजीरों से मुक्ति से है, जैसे पिंजरे में कैद पंछी आजादी के लिए छट पटाता है, उस छटपटाहट से मुक्त होने से है। यह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। यदि इन उपदेशों को अपना जीवन निर्देशक सूत्र बना लिया जाए। शायद हमारी अपेक्षाएँ कम हो जाए या खत्म हो जाए जिससे हम सब स्वयं को हल्का महसूस करेगें। तभी हमारी क्षमताएँ सुचारू रूप से कार्य कर पाएगी। बस इतना ही ध्यान रखना होगा कि कुछ समय बाद जब कोविड 19 समय गुजर जाएगा और फिर से भौतिक संसार अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करेगा, तब भी क्या हम इन तीनों समीकरणों को अपना सूत्रधार मान हर्ष के पथ पर अग्रसर होगें।

प्रोफेसर ज्योति राणा
(लेखिका शिक्षाविद हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)