Ground Report – Neither political parties worry, nor government pays attention: ग्राउंड रिपोर्ट- न राजनीतिक दलों को चिंता, न सरकार ही देती है ध्यान

हरियाणा के कॉटन बेल्ट से कुणाल वर्मा..
एक समय था जब गुजरात, महाराष्टÑ की तरह हरियाणा के किसान भी कपास की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा लेते थे। पर कपास की खेती में तमाम विसंगितयों और हाई रिस्क के कारण किसानों का कपास की खेती से मोह भंग होता जा रहा है। हालात यह हैं कि कॉटन बेल्ट के किसान अब कपास की खेती के साथ धान और गेंहू की खेती पर भी अपना ध्यान केंद्रीत कर रहे हैं। किसानों का दर्द यह है कि हरियाणा की किसी सरकार ने आज तक न तो कपास की खेती और न ही कपास किसानों के हालातों पर ध्यान दिया है। भिवानी से लेकर हिसार, फतेहाबाद, सिरसा जिलों में कपास की पैदावार भारी मात्रा में होती है। पर इन जिलों के जनप्रतिनिधियों ने भी सिर्फ कागजों में ही किसानों की सुध ली है। जमीनी स्थिति में आज भी कोई परिवर्तन नहीं है। इन क्षेत्र के किसानों से बात की गई तो तमाम तरह की बातें सामने आई। पर सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या इस बार किसी भी राजनीतिक दल के मेनिफेस्टो में कपास किसानों का जिक्र होगा। या इस बार भी राजनीतिक दल कपास किसानों को उपेक्षित ही रखेंगे। सिरसा के आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान हरदीप सरकारिया बताते हैं कि हरियाणा की सरकारों ने कपास किसानों के लिए जो कुछ भी किया वह नाकाफी है। सरकारी खरीद की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि किसान भी सरकार को अपनी फसल बेचना नहीं चाहते हैं। अगर किसी किसान ने सरकार को अपनी फसल बेच भी दिया तो पेमेंट के लिए नाक रगड़नी पड़ती है। ऐसे में किसान आढ़तियों को ही अपनी फसल बेचना उचित समझते हैं। एक तो उन्हें पेमेंट हाथ के हाथ हो जाती है, दूसरी बात उन्हें सरकारी खरीद के नखरे नहीं सहने पड़ते हैं। ऐसे में कपास किसानों से जुड़े तमाम सवाल है जिन पर हरियाणा सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
काफी मुनाफा है, पर दर्द भी कम नहीं
भारतीय कपास संघ (सीएआई) ने 2018-19 सत्र (अक्टूबर-सितंबर) के लिये 312 लाख गांठ के कपास उत्पादन होने की संभावना जताई है। सीएआई के अनुसार इस साल कपास की बंपर फसल होगी और भाव भी अच्छा मिलने से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। महाराष्टÑ, गुजरात और तेलंगाना के किसान कपास की खेती से बेहद समृद्ध हो रहे हैं। इनके समृद्ध होने का सबसे बड़ा कारण वहां की सरकारों का कपास की खेती पर विशेष ध्यान देना है। वहां कपास के बीज की खरीद से लेकर बिक्री तक पर सरकार का सीधा नियंत्रण है। जिसके कारण किसान खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। खरीद और बिक्री के लिए सरकार ने सुगम नियम बना रखे हैं, जिसके कारण बिचौलियों से किसान बच जाते हैं। दूसरी तरफ हरियाणा के किसान सरकार को अपनी फसल बेचने में दिलचस्पी ही नहीं दिखाते हैं।
क्यों ध्यान नहीं दे रही सरकार
हरियाणा में वैसे तो इनेलो से लेकर कांग्रेस और भाजपा ने भी अपनी सरकार चलाई। पर कपास किसानों को दर्द इस बात से है कि किसी भी सरकार ने कपास किसानों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया। सरकार का ध्यान धान और गेहूं की फसल पर अधिक है। हरियाणा में कपास का बीज तक महंगा बिकता है, जबकि महाराष्टÑ और गुजरात में इसके रेट कम हैं। कपास में प्रयोग किए जाने वाले किटनाशकों का दाम भी हरियाणा में दूसरे राज्यों की अपेक्षा काफी अधिक है, जिसके कारण किसान परेशान रहते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण और फायदेमंद है कपास की खेती
बहुत कम लोग जानते हैं कि कपास को व्हाइट गोल्ड (सफेद सोना) भी कहा जाता है। यह फसल बेहद कीमती होती है। पूरे विश्व में कपास की डिमांड सबसे अधिक है। लगतार इसका मार्केट भी बढ़ रहा है। प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशेवाली नगदी फसल है, जिसका देश की औद्योगिक व कृषि अर्थव्यवस्था में भी प्रमुख स्थान है। कपास की खेती से वस्त्र उद्योग को बुनियादी कच्चा माल प्राप्त होता है साथ ही इसके बिनौलों की खली और तेल का भी व्यापक स्तर पर उपयोग किया जाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। भारत में  लगभग 6 मिलियन किसानों की आजीविका कपास की खेती से चल रही और 40 से 50 लाख लोग इसके व्यापार और प्रसंस्करण के क्षेत्र में संलग्न है। देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान एवं तमिलनाडु का नाम शामिल है।
बीटी कॉटन और हरियाणा के किसान
करीब 17-18 साल पहले हरियाणा में बेसिलस थुरिनजेनिसस (बीटी) यानि बीटी कॉटन का प्रवेश हुआ। दरअसल, बीटी कपास को मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया बेसिलस थुरिनजेनिसस से जीन निकालकर तैयार किया जाता है। माना जाता है कि इस बीज को कीड़े नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। किसानों को समझाया गया कि कपास का यह बीज परंपरागत बीज से काफी उन्नत है। इसकी खेती की लागत सामान्य कपास के मुकाबले कम पड़ेगी और इसमें कीटनाशकों का खर्च भी कम आएगा। पर वास्तविकता कुछ और ही है। बीटी कपास की खेती पर लागत बहुत ज्यादा आ रही है और किसानों को बैंक और साहूकारों से रुपए उधार लेने पड़ते हैं। फसल के नुकसान की आशंका हमेशा बनी रहती है। जिसके कारण कई बार किसान संकट में फंस जाते हैं।
क्या है हरियाणा के किसानों की मजबूरी
बीटी कॉटन से होने वाले नुकसान को समझने के बावजूद हरियाणा के किसानों के पास दूसरे आॅप्शन बेहद कम हैं। यहां भी ब्लैक मार्केटिंग करने वालों की चांदी है। सामान्य तौर पर 750 से 900 तक रुपए मिलने वाले बीटी कॉटन को काला बाजार में 1700 से लेकर 2,500 रुपए प्रति पैकेट की दरे बेचा जाता है। क्योंकि इसकी बिक्री पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। बीटी-1 और बीटी-2 दोनों ही किस्मों का व्यापार अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी मौंसेंटो और भारत में उसकी साझेदारी कंपनी माहिको मिलकर करती हैं इसलिए हमारे यहां इसके तमाम पक्षों को सामने लाने वाले कई संगठनों की बात सरकार अनसुनी कर देती है।
क्या-क्या कर सकती है सरकार
हरियाणा के कपास किसानों का सबसे बड़ा दर्द यह है कि यहां की सरकारों ने कभी इन किसानों और इनकी खेती पर ध्यान नहीं दिया। जब किसानों और उनके कुछ संगठनों से बात की गई और सरकार से उनकी अपेक्षाओं पर बात की गई तो कुछ महत्वपूर्ण विषय सामने आए, जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
-महाराष्टÑ, गुजरात, तेलंगाना जैसे राज्यों की तरह हरियाणा सरकार को भी कपास की खरीद और बिक्री के नियमों को सरल करने की जरूरत है।
-अभी किसान बिचौलियों के माध्यम से अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें तत्काल उनके फसल की पेमेंट मिल जाती है। सरकार को अपनी व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए।
-कपास के बीजों की बिक्री पर सरकार को सीधा नियंत्रण करना चाहिए, ताकि किसानों को सही और प्रमाणिक बीज उपलब्ध हो सके।
– कपास की औसत उपज एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए इसकी खेती में उन्नत और वैज्ञानिक तरीकों के समावेश के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
-बीटी कॉटन की उपयोगिता तो बहुत है, पर किसानों को उचित मुल्य पर न तो बीज और न किटनाशक मिलते हैं। सरकार को इस तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है।
-सिर्फ सिरसा और फतेहाबाद क्षेत्र में ही पूरे हरियाणा का करीब साठ प्रतिशत से अधिक कॉटन का उत्पादन होता है। फिर भी आज तक किसी सरकार ने इस क्षेत्र में टेक्सटाइल मिल स्थापित करने की जहमत नहीं उठाई।
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