कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है गोवर्धन पूजा का पर्व
Govardhan Puja (आज समाज) अंबाला: दीपावली के पंच पर्वों में गोवर्धन पूजा महत्वपूर्ण पर्व है। गोवर्धन पूजा भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस बार प्रतिपदा तिथि 2 नवंबर को सूर्योदय काल से लेकर रात्रि 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदय तिथि के कारण गोवर्धन पूजा 2 नंवबर को की जाएगी गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा का संबंध द्वापर युग से है। इस दिन गाय के गोबर से भगवान श्रीकृष्ण का चित्र बनाया जाता है, जिनकी शुभ मुहूर्त के दौरान विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।
साथ ही प्रभु के प्रिय भोग अर्पित किए जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन अमृत योग (आयुष्मान योग) बनने से पूरे दिन पूजा करने से जातक को चार गुना लाभ मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि इन कार्यों को करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए दान भी किया जाता है। इस लेख के जरिए हम आपको गोर्वधन पूजा का शुभ मुहूत व पूजा विधि की जानकारी दे रहे है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 34 मिनट से 08 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही त्रिपुष्कर योग रात्रि 08 बजकर 21 मिनट से सुबह 05 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। साथ ही गोधूलि मुहूर्त शाम 05 बजकर 35 मिनट से 06 बजकर 01 मिनट तक रहेगा।
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा पर गाय, भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा का विशेष महत्व होता है। गोवर्धन पूजा करने के लिए आप सबसे पहले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं। इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें। इसके बाद अपने परिवार सहित श्रीकृष्ण स्वरुप गोवर्धन की सात प्रदक्षिणा करें। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से एवं गायों को गुड़ व चावल खिलाने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।
ऐसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरूआत
पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ा था। जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों के बचाव के लिए अपनी तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत पर उठा लिया था। इसके बाद सभी ब्रजवासी अपने जानवरों को लेकर पर्वत के नीचे आ गए, जिससे उनका इंद्रदेव के क्रोध से बचाव हुआ। इसके बाद ब्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की और भोग अर्पित किए। तभी से हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है।