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Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases : शीतला माता सनातन (हिंदू) धर्म में आस्था रखने वालों की एक प्रसिद्ध देवी हैं। इन्हें संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी कहा जाता है। शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है।
Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases : स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।
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Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases : शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
“ वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। अर्थात
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases : मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
शीतला मंदिर की कहानी Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases
हरियाणा राज्य के गुड़गांव में स्थित माता शीतला का मंदिर हिन्दुओ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। वर्ष में दो बार एक- एक माह का मेला लगता है । देश के अनेको राज्यों से आये श्रृद्धालु माता शीतला के समक्ष अपनी मन्नते रखते है। विश्व भर में प्रसिद्ध माता शीतला का यह 500 साल प्राचीन मंदिर दुनिया भर के भक्तो का आस्था का केंद्र है।
माता शीतला के मंदिर बारे में लोगो की मान्यता है
माता शीतला मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है की यही पर आचार्य दोणाचार्य कौरवों और पांडवो को अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण देते थे। महर्षि शरद्वान की पुत्री तथा कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ गुरु दोणाचार्य का विवाह हुआ था। जब गुरु दोणाचार्य महाभारत के युद्ध में द्रोपद पुत्र धृष्ट्द्युम्न के हाथो वीरगति को प्राप्त हुए थे तो उनकी पत्नी कृपी सोलह श्रृंगार कर गुरु दोणाचार्य के साथ उनकी चिता में बैठी। लोगो ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया परन्तु अपने पती के चिता में सती होने का दृढ निर्णय ले चुकी कृपी ने लोग की बात नहीं मानी । सती होने से पूर्व उन्होंने लोगो को आशीर्वाद देते हुए कहा की मेरे इस सती स्थल पर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाए लेकर पहुंचेगा वे अवश्य पूरी होगी।
शीतला मां की मान्यता Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases
स्कंद पुराण में इनका जिस प्रकार से वर्णन किया गया है उसके अनुसार इन्हें स्वच्छता की देवी भी कहा जा सकता है। देहात के इलाकों में तो स्मालपोक्स (चेचक) को माता, मसानी, शीतला माता आदि नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि शीतला माता के कोप से ही यह रोग पनपता है इसलिये इस रोग से मुक्ति के लिये आटा, चावल, नारियल, गुड़, घी इत्यादि सीद्धा माता के नाम पर रोगी श्रद्धालुओं से रखवाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में प्राचीन काल से ही शीतला माता का माहात्मय बहुत अधिक माना गया है।
शीतला मंदिर की कहानी Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases
गुड़गांव स्थित शीतला माता के मंदिर कहानी को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य यही पर कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया करते थे। जब महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण वीरगति को प्राप्त हुए तो उनकी कृपी उनके साथ सती हो गई। माना जाता है कि लोगों के लाख मनाने पर भी वे नहीं मानी और 16 श्रृंगार कर सती होने का निश्चय लेकर गुरु द्रोण की चिता पर बैठ गई। उस समय उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मन्नत जरुर पूरी होगी।
शीतला मंदिर का इतिहास Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases
कहा जाता है कि सत्रहवीं सदी में महाराजा भरतपुर ने गुड़गाँव में माता कृपि के सती स्थल पर मन्दिर का निर्माण करवाया और सवा किलो सोने की माता कृपी की मूर्ति बनवाकर वहां स्थापित करवायी। बाद में किसी मुगल बादशाह ने मूर्ति को तालाब में गिरवा दिया जिसे माता के दर्शन के बाद सिंघा भक्त ने निकलवाया। बताया जाता है कि सिंघा भगत के तप को देखकर क्षेत्रीय लोग उनके पांव पूजने लगे थे।
Goddess Sheetla Mata Gives Freedom From Diseases : मूर्ति स्थापना को लेकर ही एक अन्य रोचक किस्सा कुछ यूं है गुड़गांव से थोड़ी दूर है फर्रुख नगर वहां के एक बढ़ई की कन्या बहुत सुंदर थी। दिल्ली के तत्कालीन बादशाह तक उसकी सुंदरता का जिक्र पहुंच गया। बादशाह ने विवाह की इच्छा प्रकट की लेकिन लड़की के पिता को विधर्मी बादशाह से बेटी की शादी मंजूर नहीं थी। उसने भरतपुर के महाराज सूरजमल से इसकी फरियाद की लेकिन दूसरे राज्य का मसला बताकर उसे टाल दिया। जब मायूस होकर वह लौट रहा था तो युवराज से उसकी मुलाकात हुई और उसने युवराज के आगे गुहार लगाई। इस पर युवराज ने पिता के खिलाफ जाकर विद्रोह करते हुए दिल्ली पर आक्रमण किया उसने आक्रमण से पहले गुड़गांव में माता से विजय की मन्नत मांगी और माता के मढ़ को पक्का करवाने का संकल्प लिया। विजयी होने के बाद उसने यहां पर माता का पक्का मढ़ बनवाया।
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