खुदा तुझको समझूं या इंसान, मालूम हैरान हूं कि कहूं क्या कहूं मैं

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मनोज वर्मा, कैथल:
हरियाणा प्रादेशिक लघु कविता मंच की कैथल इकाई की एक गोष्ठी स्थानीय जवाहर पार्क में हुई। जिसकी अध्यक्षता डॉ हरीश झंडंंई ने की एवं मुख्य अतिथि के रुप में बलवान कुंडू सावी उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन डॉक्टर प्रदुम्न भल्ला ने किया।
गोष्ठी का आगाज करते हुए डॉक्टर संध्या आर्य ने कहा, क्यों इंसान को अपनी बबार्दी चाहिए, क्यों पौधे को जड़ से आजादी चाहिए। इसी कड़ी में नीरु मेहता ने कहा, तुझ में और मुझ में है भेद यही, मैं नारी हूं तू नर है, भिन्न संख्या से इस जीवन में तूने माना मुझे सदा हर है। गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए सोहन लाल सोनी ने अपनी बात कुछ इस अंदाज में रखी, जिसनै समझा ए बोझ री मां, कर देगी वा तेरी मौज री मा। गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए बलवान कुंडू सावी ने कहा, बदलाव के लिए नहीं चाहिए रक्त, बस चाहिए कागज कलम निडरता, इसी से डरता रहा है हर ताज तख्त।
गोष्ठी में अपनी लघु कविता सुनाते हुए डॉ हरीश झंडई ने कहा, बच्चियां हैं घर आंगन की खुशबू, खिलती हैं फूलों की तरह इन्हें खिलने दो। गोष्ठी में अपनी लघु कविता रखते हुए डॉ भल्ला ने भी रूहानियत के माध्यम से अपनी लघु कविताओं के कुछ अंश इस प्रकार रखे,  नजर बदलती है तो बदल देती है नजरिया भी, ले जाती है मंजिल के पास। गोष्ठी के अंत में वहां उपस्थित तुषार, कर्म सिंह आदि ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए बलवान कुंडू सावी ने कहा कि आज के दौर में साहित्य कर्म एवं कविताएं सुनना मन को सुकून देता है। अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए डॉक्टर हरीश झंडई ने कहा कि कविता मन के आंगन पर घास जैसी लगती है। जिस पर चलकर हम पूरे शरीर में ताजगी एवं ठंडक महसूस करते हैं। डॉ प्रदुम्न भल्ला ने कहा कि आगामी आने वाले मास में इसी प्रकार गोष्ठीयां आयोजित की जाएंगी एवं लघु कविता को लेकर एक संग्रह का संपादन भी किया जाएगा।