भगवान हमें वो चीज ज्यादा देता है जिसकी हमें जरूरत हो

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swami sukhbodhanand
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स्वामी सुखबोधनंद

यदि पहचान करना हमारा स्वरूप है, फिर तो हम हर एक चीज के साथ खुद को पहचान देते हैं। यह पहचान प्रक्रिया यांत्रिक है। व्यक्ति एक कठोरता पैदा कर लेता है और जीवन की अन्य प्रभावित करने वाली वस्तुओं को देख पाने से चूक जाता है। क्यों कुछ लोग आलोचनाओं या असफलताओं का दर्द जीवन भर ढोते रहते हैं? कठोरता पहचान प्रक्रिया का हिस्सा है। आध्यात्मिक शिक्षण का एक अहम् पहलू है, गैर-पहचान। आप परेशान हो जाते हैं कि आपके दृष्टिकोण को सम्मान नहीं मिला। यह दर्द पैदा करता है। घायल शरीर अस्तित्व बचाने के लिए एक काल्पनिक स्वयं रचने की चाल चलता है। मतभेदों के दर्द को लम्बे समय तक ढोते रहना, यांत्रिक दिमाग का हिस्सा है। जब तक हम अपने यांत्रिक केंद्र को एक चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तित नहीं कर लेते, नकारात्मक आकार यूँ ही जारी रहेंगे। मैं अपनी वर्कशॉप्स में प्रतिभागियों को गुड मॉर्निंग कहता हूँ। फिर उनसे सवाल करता हूँ कि उनमें से कितनों ने सुबह यानि मॉर्निंग को सही अर्थों में गुड माना? उनमें से अधिकांश ने यांत्रिक रूप से ही कहा होगा। यांत्रिकता के अधीन दिमाग में अपेक्षाकृत कम चेतना होती है। हम जो भी करें, उसमें जितनी मौजूदगी का एहसास होगा उतनी ज्यादा संभावनाएं और अवसर होंगे कि चेतना बढ़ा के चुम्बकीय केंद्र को जगा दे। एक बार चुम्बकीय केंद्र हमारे अन्दर खुल जाए तो हम दर्द को सहने की मूर्खता को स्वयं ही समझ सकते हैं। यह ब्रेड के साथ सीमेंट मिलाने जैसा है। लोग दु:ख भरा जीवन जी रहे हैं क्योंकि वे काम ही यांत्रिकता से करते हैं। वे अपनी ही प्रोग्रामिंग से पीड़ित हैं। मेरा एक संबंधी जो करोड़पति है, किसी गरीब की तरह जिंदगी जीता है क्योंकि वो अपनी संपत्ति में से कोई हिस्सा नहीं बेचना चाहता। यह उसकी परिवार की गरिमा की अवधारणा के विपरीत है, पर वह गरीबी में ही रहता है।

क्या आपसे प्राप्त ज्ञान मेरी जिंदगी बदलने के लिए काफी है?

दो तरह के क्षेत्र हैं, ज्ञान का क्षेत्र और अस्तित्व का क्षेत्र। ज्ञान का उपयोग किया जाना चाहिए, किसी व्यक्ति के अस्तित्व को उन्नत करने के लिए, जिससे आपकी जिंदगी परिपक्व हो जाती है। एक परिपक्व जीव के तौर पर जब आप उसी ज्ञान को देखेंगे तो आप गहरे अर्थ पायेंगे। जिंदगी और अस्तित्व में गहरे अर्थों का पालन करने से आपकी जिंदगी और भी परिपक्व हो जायेगी और इसी प्रक्रिया के दौरान, कुछ महान घटित हो सकता है। यानी, ज्ञान का प्रयोग किया जाना चाहिए अन्यथा आप उस गधे के समान होंगे जो चन्दन की लकड़ियाँ लिए बेखबर चला जाता है। अपने शरीर के बारे में सचेत रहें। आप शांत हैं या तनावपूर्ण? अपनी भावनाओं के बारे में सचेत रहें। क्या आप यांत्रिक रूप से किसी से नफरत या प्यार करते हैं? अपने विचारों को देखिये। अपने दिमाग के बारे में ज्यादा सचेत रहें। महज वैचारिक ज्ञान काम नहीं आता।

कब ज्ञान महज एक वैचारिक वस्तु होती है, जिंदगी में प्रयोग रहित?

धर्म के नाम पर, हद से ज्यादा खून बहा है। हर धर्म, हर मजहब सिर्फ प्यार और एकता की ही बात करता है। तो फिर नफरत कैसी? ईसाई धर्म में ही प्रोटेस्टेंट और कैथलिक के बीच, कितना खून-खराबा हो चुका है। हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण शिक्षा है कि भगवान् सर्वव्यापी है फिर ये जाति प्रथा क्यों? प्रायोगिक रूप से, सभी धर्मों का अनुसरण करने वालों में, सभी में ये आपसी और दूसरों के प्रति नफरत की भावना और खून-खराबा रहा है।

हम किस तरह जिंदगी के प्रति अपना यांत्रिक रुख बदलें?

यह ज्ञानी गुरुओं की शिक्षा के माध्यम से बदला जा सकता है। ऐसे हर उस अवसर पर जब हम पर यांत्रिक रूप से पेश आने का दबाव होता है, गुरुओं की शिक्षा को प्रयोग में लाएं। लगातार नियमित अभ्यास से, एक अलग ही तरह का आयाम बह निकलता है, लावण्यता का। पहला घटक है हमारी ह्लयांत्रिकताह्व। दूसरा, परम ज्ञान प्राप्त सिद्ध गुरुओं की शिक्षा और तीसरा है, लावण्यता। लावण्यता तभी आ सकती है जब हम शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में प्रयोग करें। तब कहीं जा के लावण्यता का नियम हमारी जिंदगियों को परिवर्तित कर सकता है।

लावण्यता का प्रचालन कैसे होता है ?

महान शिक्षाओं को जिन्दगी के सभी क्षेत्रों में प्रयोग करने की लगातार जद्दोजहद में ही, एक द्वार खुलेगा जिसमें से होकर लावण्यता बहेगी। यह तर्क के विदित ढाँचे से परे है। कुछ रहस्यमयी घटित होता है, एक अतार्किक घटक उभरता है और आप जिंदगी को निखरी हुई और उपजाऊ पाते हैं। लावण्यता के लिए खुले रहें। लावण्यता उस तरह से काम नहीं करती जिस तरह से आप चाहते हैं, पर वो अपने ही तरीके से चलती है। लावण्यता की भाषा को सराहना सीखें। भगवान हमें वो चीज ज्यादा देता है जिसकी हमें जरूरत हो, बजाय की उसके जिसकी हम लालसा रखते हैं।