आज समाज डिजिटल, अम्बाला:
Glory of Satsang in life : परमात्मा मिलना उतना कठिन नहीं है जितना कि सत्संग का मिलना कठिन है। यदि सत्संग द्वारा परमात्मा की महिमा का पता न हो तो सम्भव है कि परमात्मा मिल जाय फिर भी उनकी पहचान न हो उनके वास्तविक आनन्द से वंचित रह जाओ। सच पूछो तो परमात्मा मिला हुआ ही है। उससे बिछुड़ना असम्भव है। फिर भी पावन सत्संग के अभाव में उस मिले हुए मालिक को कहीं दूर समझ रहे हो। पावन सत्संग द्वारा मन से जगत की सत्यता हटती है। जब तक जगत सच्चा लगता है तब तक सुख-दुःख होते हैं। Glory of Satsang in life
सत्संग से मिलती है परम शांति Glory of Satsang in life
जगत की सत्यता बाधित होते ही अर्थात् आत्मज्ञान होते ही परमात्मा का सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। योगी, महर्षि, सन्त, महापुरुष, फकीर लोग इस परम रस का पान करते हैं। हम चाहें तो वे हमको भी उसका स्वाद चखा सकते हैं। परन्तु इसके लिए सत्संग का सेवन करना जरूरी है। जीवन में एक बार सत्संग का प्रवेश हो जाय तो बाद में और सब अपने आप मिलता है और भाग्य को चमका देता है दुःखपूर्ण आवागमन के चक्कर से छूटने के लिए ब्रह्मज्ञान के सत्संग के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं….. कोई रास्ता नहीं। Glory of Satsang in life
सत्संग से वंचित रहना अपने पतन को आमंत्रण देना है। सत्संग द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन के अनुसार पुरुषार्थ करने से भक्त पर भगवान या भगवान के साथ तदाकार बने हुए सदगुरु की कृपा होती है और भक्त उस पद को प्राप्त होता है जहाँ परम शांति मिलती है। जो तत्त्ववेत्ताओं की वाणी से दूर हैं उन्हें इस संसार में भटकना ही पड़ेगा। चाहे वह कृष्ण के साथ हो जाये या क्राइस्ट के साथ चाहे अम्बा जी के साथ हो जाय, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भगवान ने हमें बुद्धि दी है तो उसका उपयोग बन्धन काटने में करें न कि बन्धन बढ़ाने में, हृदय को शुद्ध करने में करें न कि अशुद्ध करने में। यह तभी हो सकता है जबकि हम सत्संग करें। Glory of Satsang in life
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