Global epidemics and global institutions: वैश्विक महामारी और वैश्विक संस्थाएं

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आज से कुछ महीने पहले दुनिया नए दशक का स्वागत कर रही थी। विश्व में हर जगह नए साल का जश्न मनाया जा रहा था। जहां एक तरफ पूरी दुनिया नए साल का जश्न मना रही थी, वहीं दूसरी तरफ चीन की ओर से एक खतरा उठने लगा था। नए साल से ठीक एक दिन पहले यानी 31 दिसंबर 2019 को चीन के स्वास्थ अधिकारीयों ने विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) को एक रहस्यमय निमोनिया के लक्षण पाए जाने वाले 41 रोगियों की जानकारी दी। इनमें से ज्यादातर चीन के हुबेई प्रान्त की राजधानी वुहान शहर के हुआन सीफूड होलसेल मार्केट से जुड़े हुए थे। हालांकि चीन के अप्रकाशित सरकारी डेटा पर एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से पीड़ित किसी व्यक्ति का पहला मामला 17 नवम्बर को ही सामने आ गया था।
तमाम मीडिया रिपोर्टों और घटनाओं से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि चीन ने इस संक्रमण के फैलने की जानकारी विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) को काफी देरी से दी। नए साल के पहले दिन तक यह संक्रमण केवल चीन तक ही सीमित था, लेकिन जल्द ही यह संक्रमण चीन से निकलकर दुनिया के अन्य देशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगा। चीन के बाहर पहला कोविड-19 का केस 13 जनवरी को थाईलैंड में पाया गया। चीनी अधिकारीयों ने 7 जनवरी को इस बात की पहचान की कि यह वायरस कोरोनावायरस फैमिली का सबसे नया सदस्य है, जिसका नाम उन्होंने नोवल कोरोनावायरस या एन-कोव रखा। हालांकि इसे इसका वास्तविक नाम कोविड-19 11 फरवरी को डब्ल्यूएचओ द्वारा दिया गया। 11 जनवरी को इस संक्रमण से चीन में पहली मौत दर्ज की गई। चीन के बाहर इस संक्रमण की वजह से पहली मौत 2 फरवरी को फिलीपींस में दर्ज की गई। इससे पहले 30 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न घोषित की।
चीन ने इस महामारी की जानकारी देने में काफी समय लगाया और विश्व को एक अंधकार की ओर ले गया। चीन ने वुहान शहर को भी पूर्ण रूप से 23 जनवरी को बंद किया। चीन की लापरवाही की वजह से यह संक्रमण तेजी से फैलने लगा था। अब तक यह संक्रमण विश्व के अन्य देशों में भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर चूका था। भारत में कोविड-19 से संक्रमित किसी व्यक्ति का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में पाया गया। नोवल कोरोनावायरस जैसे किसी संक्रमण की सबसे पहली जानकारी देने वाले डॉक्टर ली वेनलिआंग की 7 फरवरी को वुहान में इसी वायरस से झूझते हुए मृत्यु हो गई। शायद उन्हें बचाने का ज्यादा प्रयास ही नही किया गया। डॉ ली ने जब संक्रमण की जानकारी दी, उसके बाद चीनी अधिकारीयों ने उन्हें चेतावनी देते हुए उनसे एक पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए जिसमें कहा गया कि उन्होंने झूठी टिप्पणियां कीं हैं।
सवालों के घेरे में वैश्विक संस्थाएं भी हैं, और हों भी क्यों ना, इन वैश्विक संस्थाओं का इस महामारी को लेकर चीन के प्रति अख्तियार किया गया भेदभाव पूर्ण रवैया साफ नजर आता है। डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व, विशेष रूप से इसके महानिदेशक ळी१िङ्म२ अँिंल्लङ्मे ॠँीु१ी८ी२४२, पर वायरस के रोकधाम के लिए दुनिया को तैयार करने की बजाय चीन के हितों की रक्षा करने का आरोप लगाया जा रहा है।
डब्ल्यूएचओ पर इस तरह के आरोप लगने की कई सारी वजह हैं। जनवरी के मध्य में डब्ल्यूएचओ ने चीन के उस दावे का समर्थन किया, जिसमें उसने कहा कि इस वायरस के मानव-से-मानव ट्रांसमिशन का कोई सबूत नही है। साथ ही डब्ल्यूएचओ ने चीन की इस संकट से निपटने के लिए अख्तियार किए गए तरीकों की तारीफ की और अन्य राष्ट्रों के चीन से और चीन में किए गए यात्रा प्रतिबंधों की आलोचना की। कुछ लोगों का यह भी मानना ​​है कि डब्ल्यूएचओ ने इसे वैश्विक आपातकाल घोषित करने में देरी करके दुनिया को इस बड़े संकट में झोंक दिया। समस्या ये भी रही कि इस बीमारी को वैश्विक महामारी (पैन्डेमिक) घोषित करने में डब्ल्यूएचओ ने 72 दिनों का इंतजार किया और 11 मार्च को इसे पैन्डेमिक घोषित किया। अब तक इटली, ईरान, साउथ कोरिया, जापान, स्पेन, जर्मनी जैसे कई देश इस महामारी की चपेट में आ चुके थे। इटली में तो इस वक्त तक हालात लगातार खराब होते जा रहे थे और इसे देखते हुए 9 मार्च से इटली के नागरिक लॉकडाउन में थे।
यह आरोप कि डब्ल्यूएचओ का नेतृत्व “चीनी प्रचार का उपकरण” बन सकता है, दर्शाता है कि हाल के वर्षों में बीजिंग और विश्व संस्थाओं के बीच के संबंध कैसे बदले हैं। कुछ लोग बीजिंग और डब्ल्यूएचओ के बीच बढ़ते संबंधों का श्रेय चीन की बढ़ती वित्तीय ताकत को देते हैं। कुछ दूसरों का मानना है कि 2017 में टेद्रोस के डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक के पद पर चुनाव में चीन का राजनीतिक समर्थन महत्वपूर्ण फैक्टर था। हालांकि संयुक्त राष्ट्र पर नजर रखने वाले कुछ लोगों का तर्क इन सबसे ज्यादा मुफीद मालूम पड़ता है। वैश्विक संस्थाओं में अपनी पैठ बनाने में चीन ने काफी जागरूक प्रयास किए हैं। 1970 के दशक में चीन संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में शामिल होता है। 1980 के दशक में चीन अपना रास्ता खोजने पर ध्यान केंद्रित करता है। 1990 का दशक आते-आते चीन अपना प्रोफ़ाइल बढ़ाना शुरू करता है। अगले दशक में चीन कुछ राजनीतिक पहलें करता है और पिछले कुछ वर्षों में नेतृत्व पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है। संयुक्त राष्ट्र प्रणाली पर चीन के वर्चस्व के प्रभाव से निपटने के लिए न तो पश्चिमी देश और न ही भारत पूरी तरह से तैयार हुए हैं।
आरोप ये भी लग रहे हैं कि कोविड-19 चीन का बायोलॉजिकल वेपन है। खबर आई कि यूएस के एक समूह ने कोविड-19 को बायोलॉजिकल वेपन बताते हुए चीन पर 20 ट्रिलियन डॉलर का मुकदमा कर दिया। फिलहाल चीन शांत है और पूरी दुनिया को अधर में डाल कर खुद ठीक हो रहा है। दूसरी किसी चीज का कोई पुख्ता प्रमाण नही है, लेकिन ये महामारी का खतरा चीन की लापरवाही से दुनिया में फैला इसमें कोई संदेह नही है, चाहे वैश्विक संस्थाएं किसी का भी पक्ष लें।