दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चुकी है। सांस लेना भी मुश्किल हो चला है। हमारे लिए यह कितनी बड़ी बिडंबना है। जहरीली होती दिल्ली हमारे लिए बड़ा खतरा बन गई है। पर्यावरण की चिंता किए बगैर विकास का सिद्धांत मुश्किल में डाल रहा है। यह पूरी मानव सभ्यता के लिए चिंता का विषय है। समय रहते अगर इस पर लगाम नहीं लगाया गया तो धुंध और धुंए का मेल आने वाली पीढ़ी को निगल जाएगा और देश मास्क और आॅक्सीजन के साथ सफर करने को मजबूर होगा। हालात यहां तक है कि 24 घंटे में 20 से 25 सिगरेट से जितना जहरीला धुंवा निकला है उतना एक नवजात निगल रहा है। जरा सोचिए हम दिल्ली को किस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली अव्वल है। भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। हम पराली पर सवाल उठा रहे हैं और किसानों को सुविधाएं देने के बजाय सारा दोष किसानों पर मढ़ रहे हैं।
दिल्ली सरकार की तरफ से आड – ईवन तीसरी बार लागू करने और बढ़ते प्रदूषण पर सवाल उठाया है। यूपी, पंजाब और हरियाणा के सचिवों से जवाब मांगा है। केंद्र सरकार ने भी सम्बन्धित राज्यों और केंद्रीय अफसरों से जरूरी कदम उठाने को कहा है। लेकिन यह सब समस्या का स्थायी हल नहीँ है। देश में प्रदूषण पर भी राजनीति हो रहीं है। पूर्व में नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल ने दोबारा आड – ईवन लागू करने के फैसले पर सवाल उठा चुका है। तीसरी बार केजरीवाल सरकार फिर आॅड-ईवन लागू करने जा रही है।पिछली साल सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनजीटी को बताया था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि दिल्ली में वाहन प्रदूषण पर कोई असर पड़ा हो। जिसकी वजह से आड- ईवन पर सवाल खड़े हो गए हैं।
आज दुनिया भर में बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण बड़ी चुनौती बन गया है। दिल्ली में तकरीबन 60 लाख से अधिक दुपहिया वाहन पंजीकृत हैं। प्रदूषण में इनकी भागीदारी 30 फीसदी है। कारों से 20 फीसदी प्रदूषण फैलता है। जबकि दिल्ली के प्रदूषण में 30 फीसदी हिस्सेदारी दुपहिया वाहनों की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहरों को रखा है, जिसमें दिल्ली चार प्रमुख शहरों में शामिल है।
दिल्ली चीन की राजधानी बीजिंग से भी अधिक प्रदूषित हो चली है। दिल्ली में 85 लाख से अधिक गाड़ियां हर रोज सड़कों पर दौड़ती हैं, जबकि इसमें 1400 से अधिक नई कारें शामिल होती हैं। इसके अलावा दिल्ली में निर्माण कार्यों और इंडस्ट्री से भी भारी प्रदूषण फैल रहा है। हालांकि इसकी मात्रा 30 फीसदी है, जबकि वाहनों से होने वाला प्रदूषण 70 फीसदी है। शहर की आबादी हर साल चार लाख बढ़ जाती है, जिसमें तीन लाख लोग दूसरे राज्यों से आते हैं।
आबादी का आंकड़ा एक करोड़ 60 लाख से अधिक हो चला है। दिल्ली ने जब पहली बार आड- ईवन को अपनाया था तो सरकार का दावा है कि 81 फीसदी लोगों ने आॅड-ईवन फॉमूर्ले को दोबारा लागू करने की बात कही है। सर्वे में 63 फीसदी लोगों ने इसे लगातार लागू करने की सहमति दी है। वहीं 92 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें दो कार रखनी होंगी, वे दूसरी कार नहीं खरीदेंगे। लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल इसे गलत बताया था। उधर दिल्ली सरकार की इस मांग को भी केंद्र ने खारिज कर दिया था जिसमें धुंध को मिटाने के लिए हेलिकॉप्टर से पानी छिड़काव की बात कहीं गई थी । केंद्र ने साफ कहा था कि इससे कोई फायदा होने वाला नही है । दूसरी बात दिल्ली में यह सम्भव भी नही है ।
दिल्ली में वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग अधिक बढ़ाना होगा। शहर में स्थापित प्रदूषण फैलाने वाले प्लांटों के लिए ठोस नीति बनानी होगी। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही हैं। इसमें कार्बन की सबसे बड़ी भूमिका है। वैज्ञानिकों का दावा है कि आने वाले वर्ष 2021 तक छह डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है। भारत में गर्मी के शुरूआती दिनों में ही बेतहाशा गर्मी पड़ने लगी है, जबकि अमेरिका में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बसंती मौसम है। दिल्ली में 16 साल पूर्व एक सर्वे में जो आंकड़े थे वह चौंकाने वाले थे। आज उनकी क्या स्थिति होगी यह विचारणीय बिंदु है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स कई हिस्सों में 2.5 से 1300 से 500 तक पहुँच गया है। स्कूली को बंद कर दिया गया है। स्कूली बच्चों को घर से बाहर निकले पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। लोग काफी परेशान हैं। लेकिन समाधान नहीँ दिख रहा है।
दिल्ली में कुछ वर्ष पूर्व वाहनों से प्रतिदिन 649 टन कार्बन मोनोआॅक्साइड और 290 टन हाइड्रोकार्बन निकलता था, जबकि 926 टन नाइट्रोजन और 6.16 टन से अधिक सल्फर डाईआॅक्साइड की मात्रा थी, जिसमें 10 टन धूल शामिल है। इस तरह प्रतिदिन तकरीबन 1050 टन प्रदूषण फैल रहा था। आज उसकी भयावहता समझ में आ रही है। उस दौरान देश के दूसरे महानगरों की स्थिति मुंबई में 650, बेंगलुरू में 304, कोलकाता में करीब 300, अहमदाबाद में 290, पुणे में 340, चेन्नई में 227 और हैदराबाद में 200 टन से अधिक प्रदूषण की मात्रा थी।
हमें बढ़ते वाहनों के प्रचलन और विलासिता की दुनिया से बाहर आना होगा, तभी हम बिगड़ते पर्यावरण प्रदूषण पर लगाम लगा सकते हैं। यह जहर हमारी पीढ़ी के लिए बेहद जानलेवा है। दुनिया भर में 30 करोड़ से अधिक बच्चे वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। 2017 में बढ़ते प्रदूषण की वजह से 12 लाख लोगों की मौत हुई थीं। आज यह स्थिति भयावह है। प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीँ लिया। दिल्ली में हाल के सालों में प्रदूषण अहम हो गया है। दिल्ली में जितना कोहराम है उतना देश के दूसरे शहरों में क्यों नहीँ है। पराली हजारों सालों से जल रहीं है , फिर इतना कोहराम क्यों नहीँ मचा। लेकिन आज किसान और पराली पर राजनीति हो रहीं है, यह किसानों के साथ अन्याय है। इसके लिए दिल्ली खुद जवाबदेह है। साथ में से एक बच्चा जहरीला धुंआ निगलने के लिए बाध्य है। पांच साल की उम्र में छह लाख बच्चों की मौत हो जाती है। वैकल्पिक राहत दे सकते हैं, लेकिन यह अंतिम समाधान साबित नहीं होंगे।
प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीँ लिया। कभी चीन और थाईलैण्ड की स्थिति बेहद बुरी थीं, लेकिन वहां की सरकारों ने प्रदूषण रोकने और उधोग से निकले वाले कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए गम्भीरता दिखाई और आधुनिक मशीनें लगा कर शुद्ध हवा का विकल्प खोजा, लेकिन भारत इस तरह का कदम उठाने में नाकाम रहा है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों पर आरोप मढ़ना उचित नहीं है। यूपी सरकार भी आड – ईवन लागू करने पर विचार कर रहीं है लेकिन यह स्थायी समाधान नहीँ है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे। तभी इसका समाधान निकलेगा। हमें नये विकल्प की तलाश करनी होगी।
दिल्ली सरकार की तरफ से आड – ईवन तीसरी बार लागू करने और बढ़ते प्रदूषण पर सवाल उठाया है। यूपी, पंजाब और हरियाणा के सचिवों से जवाब मांगा है। केंद्र सरकार ने भी सम्बन्धित राज्यों और केंद्रीय अफसरों से जरूरी कदम उठाने को कहा है। लेकिन यह सब समस्या का स्थायी हल नहीँ है। देश में प्रदूषण पर भी राजनीति हो रहीं है। पूर्व में नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल ने दोबारा आड – ईवन लागू करने के फैसले पर सवाल उठा चुका है। तीसरी बार केजरीवाल सरकार फिर आॅड-ईवन लागू करने जा रही है।पिछली साल सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनजीटी को बताया था कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि दिल्ली में वाहन प्रदूषण पर कोई असर पड़ा हो। जिसकी वजह से आड- ईवन पर सवाल खड़े हो गए हैं।
आज दुनिया भर में बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण बड़ी चुनौती बन गया है। दिल्ली में तकरीबन 60 लाख से अधिक दुपहिया वाहन पंजीकृत हैं। प्रदूषण में इनकी भागीदारी 30 फीसदी है। कारों से 20 फीसदी प्रदूषण फैलता है। जबकि दिल्ली के प्रदूषण में 30 फीसदी हिस्सेदारी दुपहिया वाहनों की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहरों को रखा है, जिसमें दिल्ली चार प्रमुख शहरों में शामिल है।
दिल्ली चीन की राजधानी बीजिंग से भी अधिक प्रदूषित हो चली है। दिल्ली में 85 लाख से अधिक गाड़ियां हर रोज सड़कों पर दौड़ती हैं, जबकि इसमें 1400 से अधिक नई कारें शामिल होती हैं। इसके अलावा दिल्ली में निर्माण कार्यों और इंडस्ट्री से भी भारी प्रदूषण फैल रहा है। हालांकि इसकी मात्रा 30 फीसदी है, जबकि वाहनों से होने वाला प्रदूषण 70 फीसदी है। शहर की आबादी हर साल चार लाख बढ़ जाती है, जिसमें तीन लाख लोग दूसरे राज्यों से आते हैं।
आबादी का आंकड़ा एक करोड़ 60 लाख से अधिक हो चला है। दिल्ली ने जब पहली बार आड- ईवन को अपनाया था तो सरकार का दावा है कि 81 फीसदी लोगों ने आॅड-ईवन फॉमूर्ले को दोबारा लागू करने की बात कही है। सर्वे में 63 फीसदी लोगों ने इसे लगातार लागू करने की सहमति दी है। वहीं 92 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें दो कार रखनी होंगी, वे दूसरी कार नहीं खरीदेंगे। लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल इसे गलत बताया था। उधर दिल्ली सरकार की इस मांग को भी केंद्र ने खारिज कर दिया था जिसमें धुंध को मिटाने के लिए हेलिकॉप्टर से पानी छिड़काव की बात कहीं गई थी । केंद्र ने साफ कहा था कि इससे कोई फायदा होने वाला नही है । दूसरी बात दिल्ली में यह सम्भव भी नही है ।
दिल्ली में वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग अधिक बढ़ाना होगा। शहर में स्थापित प्रदूषण फैलाने वाले प्लांटों के लिए ठोस नीति बनानी होगी। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही हैं। इसमें कार्बन की सबसे बड़ी भूमिका है। वैज्ञानिकों का दावा है कि आने वाले वर्ष 2021 तक छह डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है। भारत में गर्मी के शुरूआती दिनों में ही बेतहाशा गर्मी पड़ने लगी है, जबकि अमेरिका में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बसंती मौसम है। दिल्ली में 16 साल पूर्व एक सर्वे में जो आंकड़े थे वह चौंकाने वाले थे। आज उनकी क्या स्थिति होगी यह विचारणीय बिंदु है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स कई हिस्सों में 2.5 से 1300 से 500 तक पहुँच गया है। स्कूली को बंद कर दिया गया है। स्कूली बच्चों को घर से बाहर निकले पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। लोग काफी परेशान हैं। लेकिन समाधान नहीँ दिख रहा है।
दिल्ली में कुछ वर्ष पूर्व वाहनों से प्रतिदिन 649 टन कार्बन मोनोआॅक्साइड और 290 टन हाइड्रोकार्बन निकलता था, जबकि 926 टन नाइट्रोजन और 6.16 टन से अधिक सल्फर डाईआॅक्साइड की मात्रा थी, जिसमें 10 टन धूल शामिल है। इस तरह प्रतिदिन तकरीबन 1050 टन प्रदूषण फैल रहा था। आज उसकी भयावहता समझ में आ रही है। उस दौरान देश के दूसरे महानगरों की स्थिति मुंबई में 650, बेंगलुरू में 304, कोलकाता में करीब 300, अहमदाबाद में 290, पुणे में 340, चेन्नई में 227 और हैदराबाद में 200 टन से अधिक प्रदूषण की मात्रा थी।
हमें बढ़ते वाहनों के प्रचलन और विलासिता की दुनिया से बाहर आना होगा, तभी हम बिगड़ते पर्यावरण प्रदूषण पर लगाम लगा सकते हैं। यह जहर हमारी पीढ़ी के लिए बेहद जानलेवा है। दुनिया भर में 30 करोड़ से अधिक बच्चे वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। 2017 में बढ़ते प्रदूषण की वजह से 12 लाख लोगों की मौत हुई थीं। आज यह स्थिति भयावह है। प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीँ लिया। दिल्ली में हाल के सालों में प्रदूषण अहम हो गया है। दिल्ली में जितना कोहराम है उतना देश के दूसरे शहरों में क्यों नहीँ है। पराली हजारों सालों से जल रहीं है , फिर इतना कोहराम क्यों नहीँ मचा। लेकिन आज किसान और पराली पर राजनीति हो रहीं है, यह किसानों के साथ अन्याय है। इसके लिए दिल्ली खुद जवाबदेह है। साथ में से एक बच्चा जहरीला धुंआ निगलने के लिए बाध्य है। पांच साल की उम्र में छह लाख बच्चों की मौत हो जाती है। वैकल्पिक राहत दे सकते हैं, लेकिन यह अंतिम समाधान साबित नहीं होंगे।
प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीँ लिया। कभी चीन और थाईलैण्ड की स्थिति बेहद बुरी थीं, लेकिन वहां की सरकारों ने प्रदूषण रोकने और उधोग से निकले वाले कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए गम्भीरता दिखाई और आधुनिक मशीनें लगा कर शुद्ध हवा का विकल्प खोजा, लेकिन भारत इस तरह का कदम उठाने में नाकाम रहा है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों पर आरोप मढ़ना उचित नहीं है। यूपी सरकार भी आड – ईवन लागू करने पर विचार कर रहीं है लेकिन यह स्थायी समाधान नहीँ है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे। तभी इसका समाधान निकलेगा। हमें नये विकल्प की तलाश करनी होगी।