Get rid of alcohol addiction in ‘lockdown’? ‘लॉकडाउन’ में शराब की लत से पाएं मुक्ति ?

0
400

हरिवंशराय बच्चन हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अमर कृति ‘मधुशाला’ की तासीर आज भी बनी है। मधुशाला की एक- एक पंक्तियां स्वयं में वर्तमान समाज की आईंना हैं। उन्होंने सच लिखा था कि ‘मंदिर- मस्जिद बैर कराते, प्रेम कराती मधुशाला’। सोमवार को देश की सरकार ने लॉकडाउन में मदिरा की शॉप खुलने का आदेश क्या दिया जिसकी वजह से उभरी तस्वीर ने समाज की चिंता बढ़ा दिया। घातक कोरोना संक्रमण कि परवाह किए बिना  दुकानों पर हजारों की की कतारें लग गईं। भूख- प्यास, अमीरी- गरीबी, हिंदू- मुसलिम सब के बंधन टूट गए। लोग चिलचिलाती धूप में घंटों खड़े रहे। लोग शराब की पूरी की पूरी पेंटिया ले गए। उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम देश का नजारा एक जैसा दिखा। परेशान पुलिस को लाठियां भाजनी पड़ी। शॉप बंद करानी पड़ी। कई राज्य सरकारों ने अधिकदाम भी वसूलने का फैसला भी किया है। बेहद विभत्स तस्वीर उभरी। मुम्बई, दिल्ली और दूसरे महानगरों के रेडजोन में भी दुकानें खुलने से लॉकडाउन की धज्जियां उड़ गईं।
यूपी के एक जिले में तो बैण्डबाजे के साथ शराब खरीदने लोग पहुंचे। शायद देश की सरकार को इसका भान तक नहीं था कि लॉकडाउन में इस तरह के हालात बनेंगे। 40 दिन की तपस्या पर पानी फिर गया। यह सब कितना अजीब है कि नशा हमारे जीवन में इतना घुलमिल गया है कि हम उसके बगैर रह नहीं सकते हैं। सवाल यह भी है कि चालीस दिनों तक लोग इस अभाव में कैसे जिया। जो लोग भूख और प्यास से तड़पने की दुहाई दे रहे हैं, उनके पास इतना पैसा कहां से आया। एक पुलिस आफिसर ने अपने वाल पर एक टिप्पणी लिखा कि शराब की दुकानों के खुलने के बाद भूख से परेशान होने की कोई काल नहीं आई जबकि सामान्य दिनों में अनगिनत काल आती थी। यानी हमारे जीवन से अधिक मूल्यवान हमारे लिए शराब है। हालांकि एक बड़ा फायदा हुआ कि सरकार के खजाने में मोटी रकम जमा हुई। मीडिया रपट की माने तो एक दिन में 700 करोड़ का कारोबार हुआ। इस तरह टैक्स के रुप में अनुमान लगाया गया कि अगर इसी सेल को आधार मानलिया जाय तो सिर्फ 40 दिन में सरकार को 30 हजार करोड़ के टैक्स का नुकसान हुआ।
लॉकडाउन वैसे तो  लोगों के लिए अनेक  समस्या एवं कठिनाईयां लेकर आया है किंतु इस समय का उपयोग हम सकारात्मक सोच से नशे की लत से परेशान लोगों को  छुटकारा दिलाने में कर सकते हैं। लेकिन लोग इस मौके को आदत में शुमार नहीं करना चाहते हैं। नशे की लत ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति नशा सामग्री न मिलने पर असहज महसूस करने लगता है। अपने नियमित दिनचर्या के कार्यों को करने में भी कठिनाई महसूस करता है। इस स्थिति का उपयोग नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए  किया जा सकता है। लेकिन लोग ऐसा नहीं चाहते यह बात शराब की दुकानों पर आई भीड़ से साफ हो गईं।
भारत में एक सर्वे के अनुसार 10 -75 साल के आयु के 16 करोड लोग शराब पीते हैं। जिसके कारण देश में  प्रतिवर्ष 2.6 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। तंबाकू के लत से लगभग  27 करोड़ लोग ग्रसित हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन  2700 लोगों की मृत्यु का जिम्मेदार तम्बाकू होता है। देश में लगभग 42% पुरुष तथा 12% महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं। भारत में तंबाकू  1608 में पुर्तगाल से आया। भारत विश्व के कुल तंबाकू का लगभग 8% उत्पादन करता है। दुनिया भर में तंबाकू की 65 किस्म पाई जाती है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया तंबाकू के दुष्परिणामों से चिंतित है। सिगरेट पीने के कारण प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों की मृत्यु होती है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एआरटी सेंटर में तैनात वरिष्ठ मनोचिकित्सक और परामर्शदाता डॉ. मनोज कुमार तिवारी के अनुसार नशे से मुक्ति का लॉकडाउन सुनहला अवसर है। लेकिन लोग इसका सदुपयोग नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने बताया की लोग चाहें तो नशे से मुक्ति मिल सकती है। नशे के लत के कारण इंसान में समायोजन की क्षमता एवं भावनात्मक स्थिरता की कमी हो जाती है। परिवार में अन्य सदस्यों द्वारा नशे का प्रयोग किया जाने लगता है। मानसिक विकार, शिक्षा की कमी, जागरूकता की कमी,  सांस्कृतिक प्रथाएं विलुप्त होने लगती हैं। अभिभावकों द्वारा बच्चों के प्रति तिरस्कार पूर्ण व्यवहार उत्पन्न हो जाता है। पारिवारिक में कलह पैदा होती है। समाज के प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा सार्वजनिक रूप से नशे का सेवन समाजिक प्रदूषण को बढ़ाता है।  डॉ. तिवारी के अनुसार जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे इंसान नहीं कर सकता है। लेकिन सवाल है कि इसके प्रति वह कितना संकल्पित है। नशे से मुक्ति मिल सकती है अगर दृढ़ इरादा बनाएं। किसी भी नशे की लत से छुड़ाने का सबसे बड़ा आधार है, नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति द्वारा इसके छोड़ने के प्रति दृढ़ संकल्प। नशे की लत को अचानक से बंद नहीं किया जा सकता। इसके लिए नशे की मात्रा में कमी करना, नशे की बारंबारता में कमी लाना।  नशा लेने के बीच के अंतराल को बढ़ानने का पालन करते हुए नशे की लत से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। नशे की लत से छुटकारा पाने में परिवार एवं मित्रों का सहयोग बेहद जरूरी है। जब नशा करने का मन करे तो उस समय परिवार व मित्रों के साथ बातचीत करें। जो लोग नशा करते हैं ऐसे लोगों के संपर्क से दूर रहें। अपने कमरे में या घर में आसपास नशे का समान कदापि न रखें। नशे के स्थान पर स्वास्थ्यवर्धक खाद्य एवं पेय पदार्थों का उपयोग करें। नशे से होने वाले हानियों की सूची बनाकर अपने कमरे में लगाएं। परिवार के सदस्यों को उस व्यक्ति का मनोबल बढ़ाते रहना चाहिए,  जो कि नशे की लत से छुटकारा पाना चाहता है। उसे हिम्मत देना चाहिए कि आप इसे छोड़ने में सक्षम हैं। आप में इसके अलावा कोई बुराई नहीं है। इसलिए आप इस गलत आदत को छोड़कर एक आदर्श व्यक्तित्व स्थापित कर सकते हैं। प्रकृति ने हमारे अंदर आत्मनियंत्रण की सारी अनुकूलता दी है। हम उसका कितना उपयोग करते हैं यह हम पर आत्मनिर्भर है। शराब के नशे में बलात्कार की घटनाएं बढ़ती हैं। नशे में हत्याएं तक हो जाती हैं। कई बार नशेमन लोगों में विवाद इतना बढ़ जाता है कि हत्याएं तक हो जाती हैं। क्योंकि उस दौरान सोचने की क्षमता खत्म हो जाती है। नशे की लत के खात्मे के लिए आप मनोवैज्ञानिक परामर्श का लाभ उठा सकते हैं। मनोवैज्ञानिक परामर्श के माध्यम से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। गंभीर तरह के नशे को छोड़ने में चिकित्सक के सहयोग की आवश्यकता होती है।
चिकित्सकों की माने तो नशे को छोड़ने पर कुछ कष्टकारी शारीरिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं। जिसके व्यवस्थापन के लिए दवाओं की आवश्यकता पड़ती है। कई बार ऐसा देखा गया है की यदि व्यक्ति नशा नहीं करता लेकिन उसके बाद भी यदि पारिवारिक करीबी बार-बार कहते हैं कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप नशा नहीं करते होंगे। क्योंकि आपकी आंखों और शरीर की हरकतें ऐसा प्रदर्शित करती हैं कि आप नशा करते हैं। उस स्थिति में वह व्यक्ति फिर से नशा करने लगता है। इसलिए ऐसा कदापि ना करें। नशा देश की सबसे बड़ी बीमारी बनती जा रही है। युवा इस लत के अधिक शिकार बन रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन हमारे लिए नशामुक्ति को लेकर एक सुनहला मौका बन सकता है। दृढ़ निश्चय और संकल्प से इस बुरी आदत से छुटकारा मिल सकता है। फिर सोचना क्या है आइए हम संकल्प लें कि देश को सुखद भविष्य की तरफ ले जाना है। समाज को इस लत से मुक्ति दिलानी है। क्योंकि नशा शरीर और आत्मा दोनों का विनाश करती है।


प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)