26 और 27 अगस्त 1957 को ईसाई धर्म के रायपुर के सांस्कृतिक केन्द्र गॉस मेमोरियल में हुए दुर्भाग्यजनक गोलीकांड की जांच रिपोर्ट मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गणेश प्रसाद भट्ट ने 15 जनवरी 1958 को प्रशासन को प्रेशित की। अच्छी तरह याद है। कुछ दिनों पहले साइंस कॉलेज रायपुर में प्रथम वर्ष में भर्ती हुआ था। हंगामा बरपा होते वक्त घटनास्थल पर बहुत देर रहा। यादें धीरे धीरे कमजोर हो रही हैं। जांच रिपोर्ट भूला बिसरा याद करने का सहारा है।
जयस्तंभ चैक स्थित गॉस मेमोरियल सेंटर अमेरिकन इवान्जेलिकल मिशन के रेवरेन्ड जे. गॉस की स्मृति में 15 अगस्त 1951 को तैयार हुआ। उद्घाटन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने किया। भूखंड प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र से 1941 में खरीदा गया था। पंजाब के मूल निवासी गुरबचन सिंह मूलत: सिख थे। वे युवावस्था में ईसाई हो गए थे। 1940 में रायपुर आकर वे गॉस मेमोरियल सेंटर और अमेरिकी मिशन से जुड़ गए थे। रायपुर में प्रकाश और मसीही समाज पत्रिकाओं का संपादन भी किया। इन पत्रिकाओं में अन्य धर्मों और विशेषकर हिन्दू धर्म के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणियां प्रकाशित होती रहती थीं।
आरोप यह भी था कि उन्होंने दुगार्पूजा और हनुमान चालीसा वगैरह का पाठ करने से गॉस मेमोरियल में रुकने वाले अतिथियों को मना किया था। वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अरुण कुमार सेन द्वारा लिखित विप्लव की होली नामक नाटक में 15 अगस्त को मंच पर सरस्वती प्रतिमा रखी गई। 16 अगस्त को नटराज की मूर्ति रखे जाने पर गुरबचन सिंह ने आपत्ति की। 17 अगस्त को अरुण कुमार सेन के कहने पर महाकोशल के संपादक वैशम्पायन ने समाचार प्रकाशित किया। रायपुर में सनसनी फैली। 20 अगस्त को संयोजिका कुमारी प्रीति बोस ने कलेक्टर को गुरबचन सिंह के व्यवहार की शिकायत की। महाकोशल में 22 अगस्त को इसे कौन सा द्रोह कहा जाए शीर्षक से समाचार छपा। मुंशी मेहरुद्दीन ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखी कि उत्तेजित छात्र सड़कों पर आने वाले हैं।
22 अगस्त की रात हिन्दी साहित्य मंडल की बैठक राजकुमार कॉलेज में हुई। उसमें मंडल के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद श्याम, ठाकुर हरिहर बख्श सिंह हरीश, राधिकाप्रसाद नायक और पूनमचंद तिवारी भी उपस्थित थे। कथित तौर पर श्री वैशम्पायन के कड़े रुख के कारण बैठक में रेवरेंड गुरबचन सिंह के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पारित किया गया। कला संस्कृति प्रेमियों से गॉस ममोरियल का बहिष्कार करने की अपील भी की गई। यह समाचार 24 अगस्त को महाकोशल में प्रकाशित हुआ। 23 अगस्त को ही गुप्तचर विभाग ने कलेक्टर को सूचना दी कि छात्र जुलूस निकालने वाले हैं। महाकोशल में भी छपा।
शारदाचरण तिवारी ने प्रशासन से संपर्क किया। लेखक राधिकाप्रसाद नायक और पूनमचंद तिवारी उनके नजदीकी थे। 26 अगस्त को महाकोशल में फिर छपा कि 15 अगस्त को गॉस मेमोरियल सेंटर में राष्ट्रीय ध्वज आधा लटका था। इससे स्थिति भड़क गई। 26 अगस्त को हिन्दू हाईस्कूल से छात्रों का जुलूस निकला। उसमें पवित्र क्रॉस पर जूते लटकाए गए थे। शारदाचरण तिवारी और नगरपालिका अध्यक्ष बुलाकीलाल पुजारी से मदद मांगी गई। उन्होंने छात्रों को समझाने की कोशिश की। छात्र गॉस मेमोरियल कांड के नजदीक पहुंचे। दुर्गा कॉलेज के छात्र भी बाहर आए। गॉस मेमोरियल कांड का पुतला प्रतीक के तौर पर जलाया गया। शायद गॉस मेमोेरियल से कुछ पत्थर छात्रों पर फेंके गए। जवाब में छात्रों ने पत्थर बरसाए। छात्र छत्तीसगढ़ कॉलेज की ओर चले। सप्रे स्कूल के छात्र भी आ जुड़े। फिर पूरा जुलूस आजाद चौक की ओर मुड़ा।
साइंस कॉलेज, आयुर्वेदिक कॉलेज और छत्तीसगढ़ कॉलेज के छात्र भी आ जुडेÞ। संयुक्त जुलूस सदर बाजार कोतवाली होता हुआ गांधी चौक पहुंचा। फिर सेंट पॉल स्कूल की ओर बढ़ा। कुछ तोड़फोड़ भी हुई। सेंट पॉल स्कूल में छुट्टी कर दी गई। भीड़ हजारों की थी। छात्रों ने गॉस मेमोरियल और गुरबचन सिंह के पुतले जलाए और पत्थर भी फेंके। समझाइशें असफल हो रही थीं। पुलिस असमर्थ थी। छात्र गुरबचन सिंह से माफी मांगने और राष्ट्रीय ध्वज फहराने की जिद कर रहे थे। छात्रों ने कलेक्टर से कहा कि लिखित अभिवचन दिलाएं कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। इसी बीच गॉस मेमोरियल में कई छात्र घुस गए। माइक छीन भडकाऊ भाषण होते रहे। लाठीचार्ज बिना चेतावनी के हुआ। गुरबचन सिंह गॉस मेमोरियल में ही छिपे हुए थे। पुलिस उनकी सुरक्षा लगातार कर रही थी। किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने की तैयारी थी। निकट स्थित पेट्रोल पंप की चिंता भी अधिकारियों को थी। इसी बीच गॉस मेमोरियल कांड की दुकान जला दी गई। आग बुझाने की कोशिश सफल नहीं हुई। भीड़ को तितरबितर करने उसे गैरकानूनी संगठन लाउड स्पीकर पर घोषित किया गया।
कुछ पुलिस अधिकारियों को हल्की चोटें लगीं। छात्र उत्तेजित होते रहे। पुलिसवालों को घेरना शुरू किया। टकराव बढ़ता रहा। इसी बीच भीड़ पर दूसरा लाठीचार्ज कर दिया गया। फिर जिला मजिस्ट्रेट ने गोली चलाने आदेश दिया। गोली चलने से भीड़ तितरबितर होकर भागने लगी। गोलीचालन के बावजूद पथराव होता रहा। लाड स्पीकर पर चेतावनी बिखेरी गई। डीआईजी ने दोबारा गोलीचालन की अनुमति मांगी। कलेक्टर ने दूसरी बार गोली चलाने का आदेश दिया।
इसमें हिन्दू हाई स्कूल के छात्र कृष्णकुमार की मृत्यु हो गई। उसके नाम से ही मौदहापारा मार्ग का नाम घोषित किया गया। घटना में वैशम्पायन की सकिय भूमिका रही है। उनके उत्साही समाचारों के कारण असंतोष का माहौल बना। जस्टिस भट्ट ने अपनी रिपोर्ट में रेवरंड गुरबचन सिंह के खिलाफ कुछ नहीं लिखा। छात्रों की अभूतपूर्व एकता, जोश, उन्माद, असहनशीलता, अनुशासहीनता लेकिन राष्ट्रीय संस्कृति के प्रति प्रेम का यह ज्वार रायपुर में एकमेवो द्वितीयो नास्ति की घटना की तरह हो गया। साठ साल बीत गए हैं।
न्यायिक रिपोर्ट की लीपापोती में जस्टिस भट्ट ने भाषा पर नियंत्रण दिखाया। पीछे लौटकर देखता हूं। प्रशासन ने छात्रों को समझने में भूल की। एहतियात बरता होता तो बदनुमा गोलीकांड टल सकता था। छात्र घंटों घूम रहे थे। तब भी पर्याप्त सुरक्षा बल जुटाया जा सकता था। गुरुबचन सिंह खेद प्रकट कर देते तो घटना नहीं होती। साहित्यकारों में शांति स्थापना के बदले माहौल भड़काने की वृत्ति थी। उनकी भाषा आत्मनियंत्रित हो सकती थी। नागरिकों की चेतावनी या समझाइश पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया। कोई नेता साहस के साथ छात्रों को रोक नहीं रहा था। प्रथम वर्ष के छात्र के रूप में लाउडस्पीकर पर उन्मादी भड़काऊ भाषण मेरा भी था। मैं आत्मगौरव से पीड़ित हो गया था।
(लेखक छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
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