दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने जलवायु एक्टिविस्ट दिशा रवि को एक लाख के निजी मुचलके पर चर्चित ‘टूलकिट’ मामले में तिहाड़ जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। अदालत के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस खुद कटघरे में खड़ी हो गई है। सवाल उठता है कि क्या सरकार के खिलाफ बोलना, लिखना देशद्रोह है। वास्तव में अगर ऐसा है तो यह उन्मुक्त लोकतंत्र की अंतिम सांस है। अदालत की तरफ से जो तीखी टिप्पणी की गई है उसका साफ संदेश भी तो यही है।
अदालत की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस तरह बाधित ना होने दिया जाए। सरकार से असहमति का यह मतलब देशद्रोह नहीं होता है। अपनी बातों को समझाने के लिए अदालत ने ऋग्वेद का भी उदाहरण दिया है। जमानत आम आदमी का अधिकार भी है अगर उसने कोई बड़ा जुर्म नहीं किया है।
इस मामले में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि अदालत ने साफ तौर पर कह दिया है कि टूलकिट में हिंसा फैलाने के की कोई बात नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है कि दिशा रवि और दूसरे लोग भविष्य में देशद्रोह के आरोप से मुक्त हो सकते हैं
पटियाला हाउसकोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि किसी भी देश के नागरिक देश को दिशा देने वाले होते हैं। उन्हें सिर्फ इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता है कि वह सरकार की नीतियों से सहमत हैं। सरकार से असहमति और नीतियों का विरोध लोकतंत्र को और पारदर्शी एवं स्वस्थ्य बनाता है।
नागरिकों की आलोचनाओं को दृष्टिगत रखते हुए सरकारें अपनी कार्यप्रणाली और करतब में विशेष सुधार ला सकती हैं। देश में सजग नागरिक मजबूत राष्ट्रवाद का द्योतक है। सरकार की हां में हां मिलाने वाले लोगों से भले इस तरह के सजग नागरिक हैं। अदालत की तरफ से ऋगवेद का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अलग-अलग विचारों को रखना हमारी सभ्यता और मजबूत लोकतंत्र का आधार है। किसी भी मुद्दे पर सरकार से असहमति सामान्य सी बात है। हमें इस तरह के विचारों से कोई असहमति नहीं होनी चाहिए। जबकि दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि की जमानत का विरोध किया। पुलिस ने कहा कि उन्होंने व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और टूलकिट को एडिट किया। पुलिस की दलील को अदालत में अमान्य कर दिया और कहा कि व्हाट्सएप ग्रुप बनाना कोई राष्ट्र दोष नहीं होता है।
अदालत ने कहा कि दिशा रवि की तरफ से की गई गतिविधियों का कोई ऐसा लिंक भी नहीं मिला है जो देशद्रोह की श्रेणी में आता हो, जिसके आधार पर उसे जमानत न दी जाए। अदालत की तरफ से की गई तल्ख टिप्पणियों का संज्ञान हमें लेना चाहिए। बेवजह किसी भी नागरिक को परेशान नहीं करना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी बनाए रखना भी स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा और सरकारों का दायित्व भी है। टूलकिट मामले में दिशा रवि और दूसरे लोगों को अदालत से राहत भले मिल गईं हो लेकिन दिल्ली के लाल किले पर 26 जनवरी को जो कुछ हुआ वास्तव में इसे हम उचित नहीं ठहरा सकते हैं।
दिल्ली पुलिस की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं उससे तो यहीं लगता है कि पंजाब में खालिस्तान से जुड़े लोग एक बार फिर आतंकवाद की नई कोपलें उगाना चाहते हैं। किसान आंदोलन की आड़ में अपनी साजिश को कामयाब करना चाहते हैं। देश में ‘टूलकिट’ पर राजनीतिक सरगर्मियां भी खूब हुई। दिशा रवि और अन्य की गिरफ्तारी को लेकर सत्ता के खिलाफ विपक्ष लामबंद भी हुआ।
लेकिन दिल्ली पुलिस की प्राथमिक जांच में जो तथ्य सामने आए उससे तो यही साबित होता है कि कनाडा में बैठे खालिस्तान संगठन और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मिल कर इस साजिश को अंजाम दिया। हालांकि अभी जांच की प्रक्रिया लम्बी चलेगी लेकिन दिशा और अन्य की जमानत के बाद दिल्ली पुलिस को झटका लगा है उसकी पारदर्शिता भी बेनकाब हुई है। उसका उत्साह भी कमजोर पड़ सकता है। दिल्ली पुलिस और उसकी जांच के दावे को माने तो किसान आंदोलन को उग्र करने में ‘टूलकिट’ का सहारा लिया गया। ‘टूलकिट’ एक गूगल दास्ताबेज है जिसे अपनी सुविधा के अनुसार एडिट किया जा सकता है। सोशलमिडिया पर यह किट अपने संगठन से जुड़े लोगों के बीच वायरल की जाती है। इस ‘टूलकिट’ में सारी बातें बिस्तार से लिखी होती हैं, जिसमें आंदोलन को कैसे तेज करना है। किन लोगों को जोड़ना है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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