देश की अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है। यह आकलन रेटिंग एजेंसियों के हैं। साल 2019-20 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अग्रिम अनुमान आ गया है और वित्तीय वर्ष में विकास दर 5 प्रतिशत आंका गया है। वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में गिरते हुए रुझान से तमाम लोगों के सिर पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स आॅफिस (सीएसओ) का मानना है कि लगभग 12 हफ्तों में खत्म होने वाली दूसरी छमाही में कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, इसकी उम्मीद है कि उद्योग पहली छमाही में चल रहे रुझान को पलट कर वृद्धि दर्ज करे और सेवा सेक्टर में स्थिति सुधरे। पर, समझा जाता है कि ऊर्जा, खनन और निर्माण क्षेत्र में पहले से चल रही गिरावट आगे भी चलती रहेगी। सीएसओ का यह भी मानना है कि खपत और पूंजी निवेश में भी सुधार होगा। यदि ऐसा हुआ तो कम राजस्व उगाही और बढ़े हुए खर्च के वायदों के बीच फंसी सरकार को कुछ राहत मिलेगी। ताजा आंकड़े से कई संकेत मिलते हैं। यह साफ है कि 2019-20 की दूसरी छमाही पहली छमाही से निर्णायक रूप से बेहतर होगी। यह मानना कि सबसे बुरा वक्त बीत चुका है, कह पाना मुश्किल है।
सीएसओ आंकड़ों के मुताबिक, सरकार का बही-खाता अभी भी बेतरतीब ही दिखता है। यह ध्यान में रखना होगा कि चालू वित्तीय वर्ष में सरकार ने बाजार से बहुत ज्यादा पहले ही उठा लिया है। इसके साथ ही कई पूर्वानुमान पहले ही गलत साबित हो चुके हैं। ऐसा लगता है कि इस साल का पूंजी निवेश लक्ष्य पहुंच के बाहर होगा, हालांकि शायद यह लक्ष्य को हासिल भी कर ले। आर्थिक मंदी के कारण कर उगाही पिछले साल के हर समय की कर उगाही से कम रही है। लेकिन सरकार के पास अभी भी 2019-20 की अंतिम तिमाही का समय बाकी है, जिस दौरान वह कर उगाही बढ़ा सकती है और खर्च में कटौती कर सकती है। राज्य सरकारें गुड्स व सर्विस टैक्स को दुरुस्त करने के लिए कह रही हैं। कॉरपोरेट टैक्स उगाही में होने वाली कमी की भरपाई के लिए रिजर्व बैंक के अतिरिक्त रिजर्व से पैसे लेकर दिए गए हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार बॉन्डधारकों पर कोई प्रभाव डाले बगैर लघु बचत में से कुछ पैसे निकाल सकती है। यह अपने कुछ लोक कल्याणकारी स्कीमोें के भुगतान को भी रोक सकती है। मंत्रालयों के पास जो पैसे खर्च नही हुए हैं और बचे हुए हैं वे पैसे भी सुरक्षित होंगे। वित्तीय घाटा बहुत ही बढ़ा हुआ होगा।
तेल की कीमतें बढ़ने से इस पर सरकार का होने वाला खर्च सरकार के सभी आकलन को गड़बड़ कर दे सकता है। लेकिन खाड़ी के देशों की वजह से आने वाला यह संकट लंबे समय तक नहीं रहेगा। यह इसलिए कहा जा सकता है कि अमेरिका में शेल से निकाले जाने वाला तेल भारत ले सकता है। रिजर्व बैंक और सरकार दोनों को पश्चिम एशिया में बढ़ रहे उथलपुथल पर नजर रखनी होगी। वैसे भी, मोटे तौर पर, भारत की वित्तीय और मुद्रा नीतियों को कदम से कदम मिला कर चलना होगा, जैसा वे पहले से करते आए हैं। इस बीच देश की मुद्रा स्थिति बेहतर हुई है और सरकार की ओर से वित्तीय फैसले लेने से स्थिति बेहतर हुई है। फिलहाल, केंद्रीय बैंक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के दूसरे बजट का इंतजार कर रहा है। यदि वित्त मंत्री ऐसे आंकड़े पेश करें जो लोगों को मंजूर हों, शायद वित्तीय मामले में थोड़ी बहुत गड़बड़ी को लोग अनेदखी कर सकते हैं। इस साल के 5 प्रतिशत से ज्यादा की जीडीपी वृद्धि दर हासिल करना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के ग्यारह सर्वोच्च सरमाएदारों को पिछले दिनों दिल्ली बुला कर पूछा कि रसातल में पहुंच गई अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए इस बार के बजट में किस तरह के इंतजाम किए जाएं? आप भले ही इस बात का मलाल पालें कि जिनके कुल कारोबार का बाजार-मूल्य तो छोड़िए, जिनकी व्यक्तिगत दौलत भी सब मिला कर साढ़े छह लाख करोड़, यानी 65 खरब रुपए से ज्यादा हो, ऐसे लोगों को बुलाने से क्या फायदा? वे कहां से आज के सिसकते मुल्क की जरूरतें समझेंगे? जो कहेंगे कि दर्द देते वक्त जो खामोश रहे, बाद में इस दर्द को बढ़ाने में जो शामिल रहे और फिर आम लोगों के जिस दर्द की बिललिलाहट से जिनके घर भर गए, उनके जरिए अब गरीबों के दर्द की दवा ढूंढना कौन-सी बुद्धिमानी है। उन्हें देशद्रोही तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि ये वे लोग हैं, जिन्हें नरेंद्र मोदी पसंद नहीं हैं और जो उनके हर किए-धरे में खामी ढूंढते रहते हैं। वरना देश के वर्तमान दर्द से द्रवित एक प्रधानमंत्री के प्रयासों पर भला कोई टीका-टिप्पणी करता है? अब कहने को तो आप यह भी कह सकते हैं कि अगर मोदी ने नोटबंदी करने के पहले भी इन ग्यारह अर्थ-विज्ञानियों से पूछ लिया होता तो शायद आज के हालात ही पैदा नहीं होते।
अगर आधी रात को एक देश-एक टैक्स का घंटा बजाने के पहले इन एकादश-रत्नों की सलाह ले ली होती तो भी शायद आज हम पांच फीसदी की घनघोर निचली पायदान पर पहुंच गई जीडीपी पर भीगे नयनों से प्रलाप नहीं कर रहे होते। लेकिन जो हुआ, सो, हुआ। देश की बेहाली के बीच भी मालामाल कैसे हुआ जाता है, यह धीरूभाई के बेटे मुकेश भाई से बेहतर कौन जानता है? इस विद्या में गौतम अडानी से ज्यादा पारंगत कौन है? साधारण सतपाल मित्तल के पुत्र सुनील से बेहतर आपको कौन यह सिखा सकता है कि एक ही जन्म में कहां-से-कहां कैसे पहुंचा जाता है? अनिल अग्रवाल से यह हुनर कौन नहीं सीखना चाहेगा कि देखते-ही-देखते धरती-पुत्र कैसे बना जाता है? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंकज शर्मा कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचाने का काम मोदी सरकार की नीतियों ने किया है।
रोजी-रोजगार की दशा लगातार बिगड़ रही है। कारोबार धीरे-धीरे ठप होते जा रहे हैं। देशभर में विभिन्न कारणों से अलग-अलग इंटरनेट बंद रहने से आॅनलाइन कारोबार भी चौपट हो रहे हैं। बेरोजगारी की स्थिति से लगभग पूरा देश वाकिफ है। शिक्षित बेरोजगार नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। स्वाभाविक है, जीडीपी की हालत तो बिगड़ेगी ही। अब उम्मीद 1 फरवरी को सदन में पेश होने वाले आम बजट से है। देखने वाली बात यह होगी कि सरकार लगातार बिगड़ती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए आम बजट में क्या कुछ किया जाता है?