रंगकर्मी चाइनिज गिल के निर्देशन में करीब सवा घंटा तक चले नाटक में विभिन्न कलाकारों ने 1857 के संग्राम में हरियाणा के वीरों की भूमिका का संजीव मंचन किया।
नरेश भारद्वाज, कैथल:
आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग द्वारा आरकेएसडी कॉलेज के हॉल में 1857 का संग्राम-हरियाणा के वीरों के नाम नामक नाटक का लाईट एंड साउंड प्रस्तुतिकरण किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलित कर नगराधीश गुलजार अहमद ने किया। नाटक को देखने उपरांत गुलजार अहमद ने अपने संबोधन में कहा कि नाटक टीम द्वारा बेहत्तरीन प्रस्तुति दी है। टीम द्वारा हम सभी को 2022 से सीधा 1857 के समय में ले गई, जहां स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता के लिए बड़ा संघर्ष किया और प्रेरणादायक शुरूआत की थी। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीयों पर किए गए अत्याचारों का इस नाटक के माध्यम से संजीव चित्रण किया गया है, जिससे रोंगटे खड़े हो गए।
नाटक के माध्यम से जनमानस को हरियाणा के वीरों की गाथा को जानने का अवसर मिला
उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा दिखाई जा रही प्रस्तुति से आमजन विशेषकर युवाओं को इतिहास से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि मैंने स्वयं भी प्रशासनिक सेवा से पहले 15 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवा की है। इस तरह के लाईट एंड शो म्यूजिकल नाटक को ज्यादा से ज्यादा दिखाई जानी चाहिए ताकि युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके। इस नाटक के माध्यम से पूरे प्रदेश भर में जनमानस को हरियाणा के वीरों की गाथा को जानने का अवसर मिल रहा है, जोकि बहुत ही सराहनीय है। आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में प्रदेश सरकार द्वारा शहीदों को याद किया जा रहा है, जोकि अनूठी पहल है। इस मौके पर बाबा बंदा सिंह बहादूर सम्प्रदाय के राष्ट्रीय संयोजक शिव शंकर पाहवा ने कहा कि देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले लोगों की बदौलत ही आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
स्वतंत्रता सेनानियों की सोच के अनुरूप काम करते हुए देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाएं
स्वतंत्रता सेनानियों की सोच के अनुरूप काम करते हुए देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाना है। जिला सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी धर्मवीर सिंह ने कहा कि ऐसे नाटकों की प्रस्तुति से ही युवा पीढ़ी को देश की आजादी के संग्राम के बारे में जानकारी मिलती है। उन्हें पता चलता है कि किन परिस्थितियों में हमारे देश के लोगों ने अपना जीवन गुजारा और अत्याचारों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई। केवल लोगों के आपसी सहयोग से देश की आजादी का सपना पूरा हो सका। युवाओं सहित महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों ने भी देश के लिए अपनी जान दे दी। वर्ष 1857 का संग्राम हरियाणा के वीरों के नाम की प्रस्तुति में बल्लवगढ़ के राजा नाहर सिंह, मेवात के सदरूदीन व रेवाड़ी रियासत के राव तुलाराम और गोपाल देव ने किस प्रकार कामगर व किसानों की फौज बनाकर अंबाला छावनी के क्रांतिकारी सिपाहियों के साथ लड़े, उसका पूरा संजीव चित्रण नजर आया है।
मौके पर यह लोग मोजूद रहे
मुख्यमंत्री मनोहर लाल की प्रेरणा से सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग के महानिदेशक डॉ. अमित अग्रवाल के निर्देशानुसार प्रदेश भर के सभी जिलों में इस नाटक का मंचन किया जा रहा है, जिसके माध्यम से प्रदेश वासियों को हरियाणा के वीरों के योगदान के बारे में जानकारी मिल रही है। मंच का संचालन एआईपीआरओ कृष्ण कुमार ने किया। इस मौके पर नगराधीश गुलजार अहमद को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। इस मौके पर जिला बाल कल्याण अधिकारी बलबीर चौहान, रैडक्रॉस सचिव रामजी लाल, बीरबल दलाल, भूतपूर्व सैनिक एसोसिएशन के प्रधान जगजीत सिंह, श्याम लाल कल्याण, भीम सैन अग्रवाल, एएल मदान, महेंद्र खन्ना, सुशील कुमार, महीपाल पठानिया, लव शर्मा, सुषम कपूर, अश्वनी खुराना, राजू डोहर, राजीव शर्मा, अशोक अत्री, मधु गोयल, अभय सिंह, धर्म चंद, राम सिंह, खजान सिंह, बसंता राम, वेद प्रकाश, शीशपाल, विजय कुमार, प्रताप सिंह, रामफल चहल, कर्मवीर सिंह, पवन कुमार आदि मौजूद रहे।
मैं किसान का बेटा, माहिर सूं फसल ऊगावण में, देश की खातिर जंग लड़ी थी 1857 में
1857 का संग्राम हरियाणा के वीरों के नाम नाटक की प्रस्तुति में सबसे पहले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान देने वाले सदरूदीन मेवाती पर एक गीत प्रस्तुत किया, जिसके बोल थे कि मैं सदरूदीन किसान का बेटा-माहिर सूं फसल ऊगावण में, देश की खातिर जंग लड़ी थी 1857 में। कलाकारों ने बताया कि किस प्रकार से अंग्रेजी हकुमत ने हमारे उपर असहनीय जुल्म किए। न केवल हरियाणा बल्कि पूरा हिदुस्तान उनके जुल्म की आग में झुलसा। आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। देश की आजादी के लिए शुरु किए 1857 के संग्राम की शुरुआत अंबाला से 10 मई से हुई। इस क्षेत्र के वीर जवानों ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया। नाटक के माध्यम से दिखाया गया कि अंबाला की छावनी नंबर नौ और छावनी नंबर 60वीं ने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले मुखालफत की और लड़ाई शुरू की। कलाकारों ने बताया कि विवशता के चलते अंग्रेजी सेना में शामिल हुए हमारे सैनिक भी आखिरकार तत्कालीन अंग्रेजी सेना के खिलाफ हुए और सैनिक बहादुर ने अंग्रेजी सेनापति की गोली मारकर हत्या की।