सच्ची स्वतंत्रता पाएं हमें आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर करना होगा ध्यान केंद्रित

0
662
dhyan
dhyan

 संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
संपूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है। कई अन्य देश भी विभिन्न तिथियों पर स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। जहां सांसारिक अर्थ में स्वतंत्रता का मतलब होता है वह दिन जब एक देश किसी दूसरे देश के नियंत्रण से आजाद हुआ था, वहीं आध्यात्मिक अर्थ में स्वतंत्रता हमारी आत्मा की आजादी की ओर भी संकेत करता है। हमारे अंतर की गहराई में है हमारी आत्मा, जोकि प्रकाश, प्रेम, और शांति से भरपूर है। हमारे ये आत्मिक खजाने मन, माया, और भ्रम की पर्तों के नीचे छुपे रहते हैं। हमारा ध्यान अंदरूनी संसार के बजाय हर वक़्त बाहरी संसार में ही लगा रहता है। हम अपने मन की इच्छाओं के जरिये अपने ऊपर पड़े पर्दे बढ़ाते रहते हैं, जिससे हमारे अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार में भी बढ़ोतरी होती चली जाती है।
क्या इन बाधाओं को तोड़कर अपनी आत्मा का अनुभव करने का कोई तरीका है? इसके लिए हमें धरती के चारों कोनों में तलाश करने की जरूरत नहीं है। सौभाग्य से, युगों-युगों से संत-महापुरुष आत्मा के क्षेत्र में तरक्क़ी करते रहे हैं। वे ऐसा करने में सफल रहे हैं, अपने ध्यान को अंतर में टिकाकर। जिसे मेडिटेशन, मौन प्रार्थना, या अंतर्मुख होना भी कहा जाता है। वे हमें बताते हैं कि सच्ची आजादी हमें तभी मिलती है, जब हम शांत अवस्था में बैठते हैं, अपनी आँखें बंद करते हैं, और अपने ध्यान को अंतर में केंद्रित कर प्रभु की ज्योति का अनुभव प्राप्त करते हैं। यदि हम अपनी आत्मा को ढकने वाली पर्तों को हटाने में सफल हो जाएं, तो हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को अवश्य देख पाएंगे जोकि प्रभु की दिव्य-ज्योति से प्रकाशमान है। जब हमारी आत्मा शरीर और मन की कैद से मुक्त हो जाती है, तो वो स्वतंत्र और खुश होकर ऊपर उठने लगती है। इस बाहरी संसार की समय व स्थान की सीमाओं से ऊपर उठकर वो अपने सच्चे अनंत अस्तित्व को पहचानने लगती है, तथा इस भौतिक मंडल से परे के आध्यात्मिक मंडलों की खुशियों व आनंद का अनुभव करने लगती है। यह आध्यात्मिक यात्रा आरंभ होती है। आंतरिक प्रकाश को देखने व आंतरिक ध्वनि को सुनने के साथ। इनमें अधिक से अधिक डूबते जाने से हमारी आत्मा शारीरिक चेतनता से ऊपर उठ जाती है, तथा धीरे-धीरे अंड, ब्रह्मंड, और पारब्रह्म के रूहानी मंडलों से गुजरते हुए अपने निजधाम सचखंड वापिस पहुंच जाती है। वहां हम अपनी आत्मा को उसकी निरोल अवस्था में देख पाते हैं और अनुभव करते हैं कि वो परमात्मा का ही अंश है। वहां हमारी आत्मा फिर से अपने स्रोत परमात्मा में लीन हो जाती है तथा अंतहीन खुशियों, परमानंद, और प्रेम से भरपूर हो जाती है। तो बाहरी स्वतंत्रता दिवस मनाने के साथ-साथ हमें आत्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की भी कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमारे भीतर आत्मा की अपार  शक्ति और ऊर्जा मौजूद है। आत्मा के अंदर विवेक, निर्भयता, अमरता, अनंत प्रेम और परमानंद के महान गुण हैं। अपनी आत्मा और उसकी अनंत शक्ति के साथ जुड़कर हमारा संपूर्ण जीवन ही परिवर्तित और निखर जाता है।