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गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। हर साल यह त्योहार दिवाली के अगले दिन पड़ता है, लेकिन इस बार 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण के कारण अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा की जाएगी। इस त्योहार को बाली पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि के नाम से जाना जाता हैं। यह ब्रजवासियों का प्रमुख पर्व है। इस दिन कई स्थानों पर इंद्र, वरुण और अग्नि आदि देवताओं की पूजा की जाती है। 27 साल बाद ऐसा हो रहा है कि दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं हो रही है. इससे पहले 24 अक्टूबर 1995 को दिवाली पर सूर्य ग्रहण लगा था, जिसके कारण अगले दिन अन्नकूट नहीं किया गया था। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है।
गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त
इस साल 26 अक्टूबर को सुबह 6.29 बजे से 8.43 बजे तक गोवर्धन पूजा मुहूर्त है।
गोवर्धन पूजन विधि
इस दिन शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने की प्राचीन परंपरा है। स्नान और ध्यान करने के बाद, पूजा स्थल पर बैठकर कुल देवताओं का ध्यान किया जाता है। सबसे पहले गाय, बैल आदि जानवरों को नहलाया जाता है और फूल, माला, धूप, चंदन आदि से उनकी पूजा की जाती है। गायों को मिठाई खिलाकर आरती की जाती है और प्रदक्षिणा की जाती है। गोवर्धन पूजा में घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है।
इसके बाद शुभ मुहूर्त में जल, मोली, रोली, चावल, फूल, दही और तेल का दीपक जलाकर सात परिक्रमा करते है। भगवान कृष्ण की मूर्ति रखने के बाद, धूप के दीपक से आरती करने के बाद फूल चढ़ाए जाते हैं और फिर छप्पन या 108 प्रकार के व्यंजनों को चढ़ाने की परंपरा है। इसके साथ ही दूध, घी, चीनी, दही और शहद बनाकर पंचामृत का भोग लगाया जाता है. इसके बाद गोवर्धन महाराज की आरती की जाती है और जयकारे लगाए जाते हैं।
बंद कमरे में न करें गोवर्धन पूजा
मान्यताओं के अनुसार, भगवान की पूजा करने से पहले घर के बाहर गोवर्धन पर्वत बनाना चाहिए और गोवर्धन पूजा का आयोजन बंद कमरे में नहीं करना चाहिए।
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