घर-घर हो रही है माँ की जय-जयकार Durga Maa Ki Jai-Jaikar

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Durga Maa Ki Jai-Jaikar

आज समाज डिजिटल, अम्बाला
Durga Maa Ki Jai-Jaikar : घर-परिवार की सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, विजय, आरोग्यता की कामना के लिए हर इंसान मां दुर्गा से सदियों से पूजा करते आ रहा हे। मां दुर्गा की आशीर्वाद से दर्शन देकर मनुष्य के कष्ट और हर तरह के दुःख मिट जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती।

“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।

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आठवे दिन महागौरी आराधना की जाती है

नवरात्रे के आठवे दिन महागौरी की आराधना की जाती है। गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

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कथा Durga Maa Ki Jai-Jaikar  

Durga Maa Ki Jai-Jaikar

माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।

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देवी ने की थी कठोर तपस्या

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।

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Durga Maa Ki Jai-Jaikar :  महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।

पूजन विधि Durga Maa Ki Jai-Jaikar

अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।

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महत्व Durga Maa Ki Jai-Jaikar :

माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए। मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। महागौरी के पूजन से सभी नौ देवियां प्रसन्न होती है।

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

Durga Maa Ki Jai-Jaikar

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को । उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै । रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी । सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती । कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती । धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे । मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी,  तुम कमला रानी । आगम निगम बखानी,  तुम शिव पटरानी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों । बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता,  तुम ही हो भरता, भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित,  खडग खप्पर धारी । मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।  श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे । कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ ॐ जय अम्बे गौरी..॥ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

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