Festival Of Diwali : दीपावली जैसे पावन पर्व पर नशे के सेवन के साथ जुआ खेलना हमारी संस्कृति नहीं : नरेंद्र गुप्ता

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Festival Of Diwali
लेखक : नरेंद्र गुप्ता (रक्तसेवक व सामाजिक चिंतक)
Aaj Samaj (आज समाज),Festival Of Diwali,पानीपत : दीपावली जैसा पावन पर्व अब से मात्र कुछ ही देर में पूरे विश्व में जहां पर हिंदू समुदाय रहता है, वहां सभी जगह आनंद मंगल की कामना करते हुए हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा, जिसकी शुरुआत धनतेरस से शुरू होकर व भाईदूज तक मनाया जाता है। जिसमें कि प्रत्येक दिन का अपना ही महत्व है। धनतेरस पर मां लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरि की आराधना करते है। इस दिन भगवान धन्वंतरि समुंद्र मंथन के बाद अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस दिन सभी अपने सामर्थ के अनुसार बर्तन से लेकर मूल्यवान सोने चांदी के आभूषण से लेकर वाहन तक खरीदते है व इससे अगले दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी भी कहते है, क्योंकि इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने नकासूर नामक राक्षस का वध किया था। इस खुशी में लोगों ने दीपक जला कर खुशी मनाई थी व उससे अगले दिन दीपों का उत्सव जिसका कि सभी को इंतजार रहता है। यानी दीपावली का दिन आ जाता है।

इसके बाद से बहने अपने भाई को नारियल देकर विदा करती है

यह दिन कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी जी साथ भगवान श्री गणेश जी व धन के देवता श्री कुबेर भगवान जी आराधना कर मंगल व मां लक्ष्मी जी से सदा कृपा बनाए रखने की कामना की जाती है। इस दिन भगवान श्री रामचंद्र जी रावण का अंत कर वनवास की बाद अयोध्या वापस लोटे थे, इसलिए इस दिन सभी लोगों ने खुशी में दीपक जलाए थे व इससे अगले दिन भगवान श्री कृष्ण जी गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करके ब्रजवासियों की रक्षा की थी। तभी से यह दिन अन्नकूट बना कर मनाया जाता है व सृष्टि के रचियता श्री विश्वकर्मा जी की पूजा की जाती है व इससे अगले दिन भाईदूज के रूप में मनाया जाता है, जिसमे महिलाएं अपने भाई को तिलक करती है। मान्यता है कि इस दिन यम भगवान अपनी बहन की घर गए थे। वापसी के समय यमुना जी ने उन्हे नारियल देकर विदा किया था। इसके बाद से बहने अपने भाई को नारियल देकर विदा करती है। तभी से ये परंपरा चलती आ रही है। इस प्रकार से दीपावली मनाई जाती है।

पूर्वजों के द्वारा दिखाई गई राह पर चलकर इस दीपावली पर्व को मनाना चाहिए

परंतु आज के इस युग में कुछ लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद सपरिवार समूह के इकट्ठे होकर शराब जैसे नशे का सेवन कर जुआ, तंबोला व ताश जैसे खेल पैसा लगा कर खेलते हैं जो की संपन्न परिवारों में एक चलन सा हो गया है, जोकि के बहुत बड़ी सामाजिक बुराई है, जिससे की आर्थिक विनाश के साथ-साथ नैतिक पतन का भी कारण है व इसके साथ देखा गया है कि आज की युवा पीढ़ी के बहुत से लोग इस पर्व को घर पर न मानकर पर्यटन स्थल पर जाकर सैर सपाटा करते है। जो कि हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। हमारे हिन्दू के सभी त्योहार घर पर रहकर परिवार सहित नशे, तामसिक भोजन, जुए व अन्य सामाजिक बुराई से दूर रहकर मनाने की परंपरा है। अत: हम सबको अपने पूर्वजों के द्वारा दिखाई गई राह पर चलकर इस दीपावली पर्व को मनाना चाहिए।

– लेखक : नरेंद्र गुप्ता (रक्तसेवक व सामाजिक चिंतक है)