(Fatehabad News) फतेहाबाद। स्थानीय श्यामनगर स्थित जैन सभा में महापर्व पर्यूषण के अंतिम दिवस पर सम्वत्सरी महापर्व मनाया गया। कार्यक्रम में अंतकृद्दशांग सूत्र की वाचना का समापन विशेष भक्ति आराधना द्वारा किया गया। आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी महाराज ने कहा कि आज ऋषि पंचमी के साथ सम्वत्सरी महापर्व है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के बाद मनाया जाता है। दूसरी ओर जैन परम्परा में पर्यूषण पर्व का सर्वोपरि मूल्य है। अष्ट दिवसीय इस पर्व के अंतिम दिवस को सम्वत्सरी महापर्व के रूप में मनाया जाता है। यह क्षमापना का अर्थात् क्षमा के आदान प्रदान का सर्वोत्तम पर्व है।
महापर्व पर्यूषण के अंतिम दिवस पर मनाया गया सम्वत्सरी महापर्व
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी ने कहा कि यह जैन परम्परा का ऐसा पर्व है जिसमें किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलता। कोई शोभायात्रा भी नहीं निकाली जाती कि प्रशासन को परिश्रम करना पड़े और न ही पटाखे आदि फोड़े जाते हैं। इसमें तो निराहार रहकर व्रत, उपवास, पौषध के द्वारा आत्म साधना की जाती है और परमात्मा के साथ जुडऩे का प्रयास किया जाता है। इस महापर्व की विशेषता है कि साधक साधिकाएं स्वयं को इतना पवित्र और हल्का बना लेते हैं कि उनके लिए कोई पराया या शत्रु होता ही नहीं। क्योंकि वे सम्पूर्ण मनुष्यों से क्षमापना मनाते हैं, फिर भले ही उन सबको वे जानते हों अथवा न जानते हों। यह उदात्त भावना ही इसे महापर्व बना देती है। सचमुच में यह शत्रुता को मिटाकर मित्रतापूर्ण व्यवहार के प्रसारण का पर्व है।
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी महाराज ने बताया कि इस पर्व को क्षमापना पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। जगत के जीवमात्र को क्षमादान करते हुए उनसे अपने लिए भी क्षमायाचना की जाती है। यह सचमुच में सहअस्तित्व की भावना को पुष्ट करने का सार्थक प्रयास है। क्षमा प्रदान करने से हमारा अन्त:करण कषाय-विषय से रिक्त होकर पूर्णत: शुद्ध हो जाता है और तीर्थंकर महावीर कहते हैं कि शुद्ध हृदय में ही धर्म का निवास होता है। हम क्षमादान से सच्चे अर्थों में धर्मात्मा बनने का गौरव प्राप्त करते हैं। क्षमापना का भाव स्वयं सम्वत्सरी शब्द में निहित है, सम+वत्स+अरि=सम्वत्सरी। अर्थात शत्रु के प्रति भी पुत्रवत प्रेमपूर्ण व्यवहार करना सम्वत्सरी है। यह भी मानवीयता का आदर्श पाठ है।
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी महाराज ने कहा कि यह पर्व शुद्ध शाकाहार की प्रेरणा का भी पर्व है। अतीत काल में इसी दिन से मनुष्यों ने सहजता पूर्वक मांसाहार का आजीवन त्याग करके शाकाहार को स्वीकार किया था। इसलिए यह शाकाहारी वृत्ति की जयन्ती का पर्व है। यह पर्व बुराई को छोडक़र अच्छाई को स्वीकार करने का पर्व है। इस दिन ही मानवों में मानवता का आविर्भाव हुआ था अत: यह मानवता की जन्म जयंती का महान पर्व है।
आचार्य ने आगे बताया कि संसार का प्रत्येक प्राणी अपना विकास करने में समर्थ है। उसमें भी मनुष्य के पास तो यह सामथ्र्य कुछ अधिक ही है। आत्मिक विकास के लिए क्षमाभाव अनिवार्य है। क्षमाभाव से ही कषाय मुक्ति सम्भव है और कषाय मुक्ति ही यथार्थ में मुक्ति है। धर्म के दस लक्षणों में प्रथम लक्षण क्षमा ही है। इस प्रकार सम्वत्सरी महापर्व जप, तप, त्याग, शील, संयम, दान, सेवा आदि के द्वारा स्वयं को परिशुद्ध करने का महापर्व है। इस पर्व में अंतकृत केवलियों की कथा का विशेष रूप से श्रवण किया जाता है। इसी पर्व को ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है और भक्तगण गणपति भक्ति में सराबोर होकर गणेशोत्सव मनाना प्रारम्भ कर देते हैं। यह पर्व आत्मा को ही परिष्कृत करके परमात्मा बनाने की पावन प्रेरणा प्रदान करता है।
सभा में अठाई तप करने वाले अभिषेक जैन तथा विशेष रूप से पहुंचे अतिथियों कुलजीत सिंह कुलडिया, एडवोकेट भारत भूषण गर्ग, कृष्ण कुमार गर्ग, रामनिवास शर्मा, बाबूराम मित्तल, आरपी गर्ग, वेद मंगल, रविन्द्र चौधरी इत्यादि का मोतियों की माला एवं अंगवस्त्र द्वारा सभा की तरफ से अभिनन्दन किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रधान सुरेंद्र मित्तल, प्रवीण जैन, विनोद जैन, रवींद्र जैन, संजीव जैन आदि का सराहनीय योगदान रहा।