(Fatehabad News) फतेहाबाद। श्यामनगर स्थित जैन सभा में विगत आठ दिनों से आयोजित पर्यूषण महापर्व का समापन सामूहिक क्षमापना के साथ हुआ। इस अवसर पर नवकार महामन्त्र के अखण्ड पाठ का उद्यापन करके प्रसाद वितरित किया गया। सभा में मुख्य मेहमान के तौर पर पहुंचे फतेहाबाद के विधायक चौधरी दुड़ाराम एवं तपस्या और पौषध करने वाले तपस्वियों का सभा की ओर से मोतियों की माला एवं सम्मान प्रतीक के द्वारा सम्मान भी किया गया।
क्षमा वीर पुरुषों का आभूषण, इसे कोई कायर नहीं निभा सकता : आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी
सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी महाराज ने कहा कि पर्यूषण पर्व के उपलक्ष्य में अखण्डपाठ, प्रवचन एवं शास्त्र वाचना में श्रद्धालुओं की रुचि और श्रद्धा-भक्ति का साकार रूप देखने को मिला। साधक-साधिकाओं ने विभिन्न तपस्याओं की आराधना करके अपने कर्मों की निर्जरा की। आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी ने कहा कि क्षमा वीर पुरुषों का आभूषण है। इसे कोई कायर व्यक्ति निभा नहीं सकता है। वस्तुत: दूसरों को क्षमा करके हम स्वयं को और अधिक मजबूत बनाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि क्षमा मांगने से भी कठिन कार्य है क्षमा करना। आदमी अक्सर अपने विरोधी के लिए बोलता है कि ‘मैं उसे जिंदगी भर माफ नहीं करूंगा।’ यह संकीर्ण सोच का परिणाम है। ऐसा व्यक्ति जिंदगी भर क्रोध की अग्नि में जलता रहता है और अपना इहलोक तथा परलोक दोनों को बिगाड़ देता है।
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी ने आगे कहा कि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की साधना व्यक्ति के नर्कगमन का मार्ग बंद करके देवलोक का मार्ग प्रशस्त करती है। इस पर्व के दिन अंतगढ़ सूत्र का समापन करते हुए अंतकृत केवलियों की कथा का श्रवण करना अत्यंत पुण्यकार्यों में माना जाता है। विगत आठ दिनों में साधकलोग अपनी क्षमतानुसार तपस्या करते हैं। तपस्या के बाबत तीर्थंकर महावीर कहते हैं कि करोड़ों भवों के संचित कर्म तप के द्वारा निर्जरित हो जाते हैं और अपनी इच्छा पर विजय पाना ही तपस्या है। जगत में एक मात्र आत्मतत्व शाश्वत है और उसकी उपलब्धि तपस्या के द्वारा ही सम्भव है। तप की ताकत से देवशक्ति भी प्रभावित हो जाती है इसलिए अनेक देवगण तपस्वियों के चरणों में नतमस्तक होते रहे हैं।
इससे पूर्व आचार्य पद्मराज स्वामी ने विभिन्न स्तुतियों, स्तोत्रों तथा मन्त्रों का लयबद्ध उच्चारण करके अखण्डपाठ का उद्यापन करवाया। मौके पर सभाध्यक्ष सुरेंद्र मित्तल ने गुरुदेव तथा अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। तीर्थंकर महावीर आरती और मंगलपाठ के बाद सामूहिक रूप से प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पदाधिकारियों के अतिरिक्त युवकों एवं महिलाओं का भी भरपूर योगदान रहा।
आचार्य डॉ. पद्मराज स्वामी ने आगे कहा कि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की साधना व्यक्ति के नर्कगमन का मार्ग बंद करके देवलोक का मार्ग प्रशस्त करती है। इस पर्व के दिन अंतगढ़ सूत्र का समापन करते हुए अंतकृत केवलियों की कथा का श्रवण करना अत्यंत पुण्यकार्यों में माना जाता है। विगत आठ दिनों में साधकलोग अपनी क्षमतानुसार तपस्या करते हैं। तपस्या के बाबत तीर्थंकर महावीर कहते हैं कि करोड़ों भवों के संचित कर्म तप के द्वारा निर्जरित हो जाते हैं और अपनी इच्छा पर विजय पाना ही तपस्या है। जगत में एक मात्र आत्मतत्व शाश्वत है और उसकी उपलब्धि तपस्या के द्वारा ही सम्भव है। तप की ताकत से देवशक्ति भी प्रभावित हो जाती है इसलिए अनेक देवगण तपस्वियों के चरणों में नतमस्तक होते रहे हैं।
इससे पूर्व आचार्य पद्मराज स्वामी ने विभिन्न स्तुतियों, स्तोत्रों तथा मन्त्रों का लयबद्ध उच्चारण करके अखण्डपाठ का उद्यापन करवाया। मौके पर सभाध्यक्ष सुरेंद्र मित्तल ने गुरुदेव तथा अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। तीर्थंकर महावीर आरती और मंगलपाठ के बाद सामूहिक रूप से प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पदाधिकारियों के अतिरिक्त युवकों एवं महिलाओं का भी भरपूर योगदान रहा।