संजीव कुमार, रोहतक :
देश व प्रदेश में स्वर्ण क्रांति के उद्द्दभव के बाद कृषि में विविधिकरण बहुत जरूरी है। कृषि विविधिकरण या तो फसल के पेटर्न में बदलाव को दशार्ता या अन्य गैर कृषि विकल्पों को दशार्ता है, जो उच्च स्तर की आय उत्पन्न करने में मद्द्दद करते है। इन विकल्पों में पशु पालन, मुर्गी पालन, बागवानी आदि शामिल है।
उपायुक्त कैप्टन मनोज कुमार ने जिला के किसानों का आह्वद्दान करते हुए कहा कि वे अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि में विविधिकरण को अपनाएं। ऐसा करके वे जोखिम कारकों को कम कर सकते है, क्योंकि कृषि विविधिकरण अपनाने से यदि मौसम फसल के उत्पादन के अनुकूल नहीं रहता है तो भी किसान अपने सभी संसाधनों को नहीं खोते है। चंूकि कई फसलों को एक छोटे से खेत से काटा जा सकता है। इसलिए उत्पादन 10 गुणा तक बढ़ जाता है, जिससे पर्याप्त आय सुनिश्चित होती है। कृषि विविधिकरण से ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार सर्जित होते है। इससे मिट्टद्दी की उर्वरता बढ़ती है तथा इससे कीट भी नियंत्रित होते है।
उन्होंने कृषि विविधिकरण के संदर्भ में कहा है कि यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। प्रथम क्षैतिज विविधिकरण के अंतर्गत एक ही फसल की खेती जैसे गेंहू-धान, गेंहू-कपास की बजाये कई फसलों या फसलों के मिश्रण से संबंधित है। जैसे मिश्रित मौसमीय सब्जियों की कास्त आदि इस प्रकार का विविधिकरण विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए उपयोगी है, जो जमीन का एक छोटा टुकड़ा रखते है। यह उन्हें फसल की तीव्रता में वृद्घि करके अधिक आय उत्पन्न करने में मद्द करता है।
कृषि विविधिकरण के दूसरे प्रकार वर्टिकल विविधिकरण के तहत कई फसलों के साथ-साथ औद्योगिकीकरण के के समावेश को दशार्ता है। इसके अन्तर्गत किसान एक ओर कदम उठाते है और फसल उत्पादन के साथ-साथ उनसे संबंधित औद्योगिकीकरण में भी निवेश करते है जैसे बागवानी विभाग की बात करे तो किसान बागवानी फसलों फल उत्पादन, सब्जी उत्पादन, फूल उत्पादन, खुम्भी उत्पादन, शहद उत्पादन के साथ-साथ इनसे संबंधित छोटे उद्योग धंधे जैसे फल, सब्जी से संबंधित, प्रसंस्करण ईकाई जैसे जैम, जैली, मुरब्बा, चटनी, आचार आदि में निवेश करके अपनी आमदनी बढ़ा सकते है।
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