सिवानी मार्ग पर वार्ड 15 में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन वृंदावन के कथा वाचक श्री प्रेम अगाधा शरण जी महाराज ने भगवान के अवतारों की कथा के साथ-साथ समुद्र मंथन की बहुत ही रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाई।
यजमानों का स्मृति चिह्न देकर सम्मान
तीसरे दिन पूर्व जिला पार्षद एडवोकेट सत्यवान श्योराण, बार एसोसिएशन प्रधान पवन ढाका व एडवोकेट सुधीर मुदगिल यजमान के तौर पर उपस्थित रहे। महाराज ने यजमानों का फटके व स्मृति चिह्न के साथ सम्मान किया। कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है। यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न- भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। जब-जब कोई अपने गलत कर्मो द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है तब-तब भगवान इस धरा धाम पर अवतार लेकर सजनों का उद्धार और दुर्जनों का संघार किया करते हैं।
मानव हृदय को बताया संसार सागर
समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए श्री प्रेम अगाधा शरण जी महाराज ने कहा कि मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। कभी हमारे अंदर अच्छे विचारों का चितन मंथन चलता रहता है और कभी हमारे ही अंदर बुरे विचारों का चितन मंथन चलता रहता । महाराज श्री ने बताया कि जिसके अंदर के दानव जीत गया उसका जीवन दु:खी, परेशान और कष्ट कठिनाइयों से भरा होगा और जिसके अंदर के देवता जीत गया उसका जीवन सुखी, संतुष्ट और भगवत प्रेम से भरा हुआ होगा । इसलिए हमेशा अपने विचारों पर पैनी नजर रखते हुए बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीतते हुए अपने मानव जीवन को सुखमय एवं आनंद मय बनाना चाहिए।