चंडीगढ़। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में पार्टियों, दिग्गज नेताओं व राजनीतिक घरानों की साख दांव पर है। भाजपा, कांग्रेस, इनेलो और जजपा के नेताओं का राजनीतिक भविष्य मतपेटियों में आज कैद हो जाएगा और सबकी नजरें उन पर टिकी हैं। सभी पार्टियों के कम से कम 10 नेता ऐसे हैं, जिन पर सबकी नजरें टिकी हैं। चाहे तो बात सीएम मनोहर लाल की हो या फिर कांग्रेस के दिग्गज व पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की, हर किसी के सामने खुद को साबित करने की चुनौती है। वहीं प्रदेश के कई राजनीतिक परिवारों की साख भी दांव पर है। हुड्डा के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, भजनलाल और ओमप्रकाश चौटाला के परिवारों के वंशज चुनाव रण में ताल ठोक रहे हैं और तीनों में एक ही चीज कॉमन है कि इस वक्त तीनों ही परिवार अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सीएम के सामने दोबारा सरकार बनाने की चुनौती
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के फुल फ्लैज नेतृत्व में भाजपा प्रदेश में चुनाव लड़ रही है, खुद वो चुनाव करनाल सीट से लड़ रहे हैं और उनकी स्थिति वहां मजबूत है, लेकिन पार्टी को दोबारा से जितवाने की जिम्मेदारी भी एक तरह से उनके कंधों पर है, ताकि पार्टी हाईकमान का उनमें विश्वास कायम रहे।
हुड्डा का सब कुछ दांव पर
कांग्रेस के सीनियर नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए चुनाव करो या मरो वाली स्थिति है। लोकसभा चुनाव में उनकी व उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की हार के बाद उनकी राजनीतिक विरासत दांव पर है। अगर चुनावी नतीजे उनकी उम्मीदों के विपरित आए तो ये उनके जीवन का आखिरी चुनाव हो सकता है।
कुलदीप बिश्नोई के लिए भी करो या मरो वाली स्थिति
कांग्रेस के दिग्गज व पूर्व सीएम भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई के लिए भी ये चुनाव किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है, गत लोकसभा चुनाव में बेटे भव्य बिश्नोई की करारी हार से उनको तगड़ा झटका लगा तो अब खुद आदमपुर विधानसभा चुनाव से मैदान में उतरे कुलदीप के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है।
किरण चौधरी को खुद को साबित करना है
बंसीलाल परिवार की राजनीतिक बेल को आगे बढ़ा रही किरण चौधरी के लिए दिक्कतें कम नहीं हैं, बेटी की लोकसभा चुनावोें में करारी हार ने तो झटका दिया तो अब खुद को तोशाम सीट से जीत हासिल कर खुद को साबित करना है।
भाजपा मंत्रियों के लिए भी राह आसान नहीं है
भाजपा के कई मंत्रियों के लिए राह आसान नहीं हैं, भाजपा के दो मंत्रियों ओमप्रकाश धनखड़ बादली और कैप्टन अभिमन्यु को नारनौंद विधानसभा सीट पर गत लोकसभा चुनाव में हार को मुंह देखना पड़ा। ये ही सीटें ऐसी थीं जहां भाजपा को लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। अब ऐसे में दोनों ही मंत्रियों के लिए अपने अपने विधानसभा सीटों से चुनाव जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है।
रणदीप सुरजेवाला के लिए भी कठिन है डगर
गत जींद उपचुनाव में काग्रेंस दिग्गद व राहुल गांधी के करीबी रणदीप सुरजेवाला बमुश्किल जमानत बचा पाए व उनको तीसरे स्थान पर रहकर ही संतोष करना पड़ा। उन पर उनके विधानसभा चुनाव में आने के भी आरोप लगे। अब कैथल सीट से चुनावी रण में उतरे रणदीप के लिए भी चुनाव जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है।
अभय चौटाला के सामने पार्टी व खुद की साख बचाने की चुनौती
चौटाला परिवार में फूट व इनेलो से टूटकर जजपा बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती अभय चौटाला के सामने बड़ी चुनौती ऐलनाबाद से चुनाव जीतने की तो है ही, साथ में पार्टी का वजूद बचाए रखने की जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर है। पार्टी पिछले 15 सत्ता से बाहर है तो स्थिति आसानी से समझी जा सकती है।
दुष्यंत चौटाला को खुद की काबिलियत साबित करनी है
जजपा के सीनियर नेता और पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला के सामने खुद उचाना सीट से जीतने के अलावा कुछ महीने पहले बनाई गई जजपा को स्थापित करने की चुनौती है। पार्टी को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा तो खुद दुष्यंत को भी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य को देखते हुए चीजें उतनी आसान नहीं दिख रहीं।