बिना कांग्रेस मजबूत विपक्ष की परिकल्पना

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देश की सियासत में आजकल तमाम तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं। पिछले दिनों एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर हुई विपक्षी दलों की बैठक में किसी भी पार्टी का कोई बड़ा नेता क्यों नहीं पहुंचा। यह बड़ा सवाल है। करीब ढाई घंटे चली बैठक के बाद एनसीपी की तरफ से यह सफाई भी देनी पड़ी कि इसमें किसी राजनीतिक मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई। बल्कि पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम और तेजी से बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर चर्चा हुई है। इसके बाद अब यह पूछा जा रहा है कि आखिर यह बैठक बुलाई ही क्यों गई थी? अगर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की रणनीति के तहत कोई बैठक बुलाई जानी थी तो पहले पूरी तैयारी क्यों नहीं हुई। बैठक से पहले इस बात को खूब अच्छी तरह उछाला गया कि शरद पवार कांग्रेस को छोड़कर बाकी विपक्षी दलों के नेताओं के साथ एक मजबूत मोर्चा बनाने की रणनीति पर विचार करेंगे। अहम सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के बगैर कोई मोर्चा आकार ले पाएगा? शायद नहीं। 24 जून को शरद पवार ने भी यह स्वीकारते हुए कहा कि एनडीए विरोधी मंच में कांग्रेस शामिल होगी।
विदित हो कि बैठक में कांग्रेस का कोई नेता नहीं पहुंचा था। हालांकि बाद में सफाई दी गई कि इसमें कांग्रेस के नेताओं को भी आने का न्योता दिया गया था लेकिन दिल्ली में मौजूद ना होने की वजह से वो बैठक में शिरकत नहीं कर पाए। सत्य हिंदी की एक रपट इस दलील को बेहद लचर बता रही है। कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस को इस बैठक में शामिल करना ही था तो कांग्रेस के नेताओं को न्यौता भेजने की बजाय सीधे सोनिया गांधी से बात करनी चाहिए थी। सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष होने के साथ-साथ यूपीए की अध्यक्ष हैं। शरद पवार की एनसीपी यूपीए का हिस्सा है। खुद शरद पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के महा विकास आघाडी के अगुवा हैं। ऐसे में यह शरद पवार की जिम्मेदारी थी कि वह विपक्षी दलों की किसी भी बैठक को बुलाने से पहले वह कांग्रेस को व्यक्तिगत तौर पर न्योता देते। अगर वो कांग्रेस के साथ मिलकर विपक्षी दलों का कोई मोर्चा नहीं बनाना चाहते तो यूपीए से बाहर आकर इसका सीधे तौर पर ऐलान करें।
जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी और बीजेपी को हराने की रणनीति के तहत ममता बनर्जी की अगुवाई में एक बड़ा मोर्चा खड़ा करना चाहते हैं। ममता बनर्जी के इशारे पर ही उन्होंने शरद पवार से मुलाकात की थी। हालांकि प्रशांत किशोर ने 2 मई को पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बीच ही एलान कर दिया था कि अब वो चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम नहीं करेंगे। बावजूद इसके ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के लिए उनके साथ 2026 तक का करार कर लिया है। इस बीच 2024 के लोकसभा चुनाव और 2026 के पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव होंगे। 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति का सूत्रधार चाहे जो हो। उसे एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि केंद्र में मोदी सरकार को हराने के लिए कांग्रेस के बगैर विपक्षी दलों का कोई भी मोर्चा मजबूत नहीं बन सकता। देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में किसी तीसरे मोर्चे की कोई जगह फिलहाल नहीं रह गई है। क्योंकि अगर आज की तारीख में बीजेपी पहला मोर्चा है तो उसके मुकाबले कांग्रेस ही दूसरा मोर्चा है।
1960 के दशक में जैसे कांग्रेस के खिलाफ सभी जनों को एक छतरी के नीचे लाने की कोशिशें शुरू हुई थी आज बीजेपी इतनी मजबूत हो चुकी है कि उसे हराने के लिए भी सभी दलों को एक छतरी के नीचे एकजुट करने की कवायद शुरू करने का वक्त आ गया है। इस छतरी को अगर कोई हाथ मजबूती से थाम सकता है तो वह कांग्रेस का ही हाथ हो सकता है। देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में अगर बीजेपी अपनी लोकप्रियता की ऊंचाई से नीचे गिरेगी तो उसकी जगह भरने के लिए कांग्रेस ही आगे आएगी। शरद पवार की एनसीपी या ममता बनर्जी की टीएमसी में फिलहाल वह दमखम नहीं है कि वे कांग्रेस की जगह ले सकें। बीजेपी के बाद अगर देश का सबसे बड़ा कोई राष्ट्रीय राजनीतिक दल है तो वह सिर्फ कांग्रेस है। उसके कार्यकर्ता आज भी देश के सभी राज्यों में मौजूद हैं। यह अलग बात है कि कांग्रेस अपेक्षित कामयाबी हासिल नहीं कर पा रही। लेकिन जैसे ही बीजेपी का ग्राफ नीचे गिरेगा, कांग्रेस का ग्राफ निश्चित तौर पर ऊपर उठेगा।
2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं। उसे करीब 36% वोट मिले थे। बीजेपी को मिलने वाले कुल वोट 22 करोड़ 90 लाख थे। कांग्रेस को कुल 52 सीटें हासिल हुई थीं। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 19.49 और कुल मिले वोट 11 करोड़ 95 लाख थे। कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा 23 सीटें डीएमके को मिली थीं। डीएमके ने करीब ढाई करोड़ वोट हासिल किए थे जो कि कुल वोटों का 4% हैं। टीएमसी और वाईएसआर कांग्रेस 22-22 सीटें हासिल करके चौथे स्थान पर थीं। दोनों ही पार्टियों को 2.5 से 3.0% वोट मिले थे। टीएमसी को करीब 1.55 करोड़ मिले थे और वाईएसआर को 1.38 करोड़ वोट मिले थे। आज विपक्षी एकता की धुरी बनने का सपना देखने वाले शरद पवार की एनसीपी को 2019 में महज 5 सीटें मिली थीं और 1.39% वोट मिले थे। उनकी पार्टी को कुल जमा 85 लाख वोट ही मिले थे।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और तमाम क्षेत्रीय दलों को 16 राज्यों में विधानसभा के चुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरना है। उत्तर प्रदेश को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से ही होना है। इनमें गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गोवा और मणिपुर जैसे राज्य शामिल हैं। अगर कांग्रेस इन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती है तो फिर शरद पवार और ममता बनर्जी समेत उन तमाम विपक्षी दलों के नेताओं के लिए कांग्रेस की अनदेखी करना संभव नहीं होगा जो फिलहाल कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता का सपना देख रहे हैं। बहरहाल, अब देखना यह है कि होता क्या है?
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