कर्मचारियों ने फैसले को वापस लिए जाने की मांग की
Chandigarh News (आज समाज) चंडीगढ़: हरियाणा में ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ भाजपा सरकार के फैसले का विरोध होगा शुरू हो गया है। सरकार के इस फैसले को कर्मचारी विरोधी करार दिया गया है। 16 अप्रैल को घोषित इस निर्णय की विपक्षी नेताओं और कर्मचारी यूनियनों ने कड़ी आलोचना की है, जिन्होंने भाजपा सरकार पर अपनी कर्मचारी समर्थक छवि को धोखा देने का आरोप लगाया है।
हरियाणा सरकार ने फैसला लिया है कि 20 जुलाई से 3 अगस्त 2024 तक हड़ताल में भाग लेने वाले किसी भी बोर्ड या निगम में कार्यरत संविदा कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा बरकरार रहेगी। मानव संसाधन विभाग ने निर्देश जारी कर स्पष्ट किया है कि हड़ताल के दिनों के लिए कोई पारिश्रमिक तो नहीं दिया जाएगा, लेकिन इस आधार पर इन कर्मचारियों की कार्यकाल की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अनुचित रूप से दंडित किया
सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई नियमों के अनुरूप थी और इसका उद्देश्य जनता को होने वाली असुविधा के खिलाफ एक कड़ा संदेश भेजना था, आलोचकों का तर्क है कि कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के नियमितीकरण की लंबे समय से लंबित मांग के लिए अनुचित रूप से दंडित किया गया।
सरकार की तर्कहीन नीतियों के कारण की हड़ताल
अखिल भारतीय राज्य सरकार कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा ने इस कार्रवाई को अनुचित बताया है। राज्य सरकार की तर्कहीन नीतियों के कारण उन्हें हड़ताल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह भाजपा सरकार के ‘कर्मचारी हितैषी’ दावों के विपरीत है। सरकार उन्हें ‘छुट्टी पर जाने’ के रूप में मान सकती थी। लांबा ने सद्भावना के तौर पर इस फैसले को वापस लिए जाने की मांग की।
भाजपा सरकार कर्मचारी कल्याण के लिए प्रतिबद्ध
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जेटली ने जोर देकर कहा कि भाजपा कर्मचारी कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने पिछले साल के अंत में पारित हरियाणा संविदा कर्मचारी (सेवा की सुरक्षा) विधेयक, 2024 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करता है कि हरियाणा कौशल रोजगार निगम के माध्यम से नियुक्त किए गए संविदा, तदर्थ या आउटसोर्स कर्मचारी अब सेवानिवृत्ति की आयु तक काम कर सकते हैं। यह देश में अपनी तरह की पहली पहल है।
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