Jharkhand & Maharashtra Elections, (आलोक मेहता), आज समाज डेस्क: झारखण्ड और महाराष्ट्र के चुनाव में कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी के प्रचार अभियान में उनके गठबंधन के सहयोगी विवादास्पद नेताओं पर सवाल उठ रहे है। कहा जा रहा है कि झारखंड में हत्या के आरोप में अदालत से आजीवन कारावास तक के निर्णय से पहले केंद्र में मंत्री रहते भगोड़े घोषित नेता की पार्टी को या महाराष्ट्र में सबसे भयावह दंगे और बम विस्फोटों और कुख्यात अपराधी आतंकी दाऊद इब्राहिम से संबंधों के आरोप झेलने वाले नेता की पार्टी के लिए राहुल गांधी और अन्य बड़े नेताओं को कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही है? तब मुझे कांग्रेस पार्टी में वर्षों तक उठती रही घटनाओं और तथ्यों का ध्यान आया।
एक उदाहरण दे सकता हूं। एक पत्र का अंश है- राजनीति में ऐसे लोगों को स्थान मिल रहा है जिनके चरित्र के सम्बन्ध में जितना कहा जाए थोड़ा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ऐसे महाशय हैं जो 1942 में वार फंड के लिए चंदा इकठ्ठा करते थे और जो कई अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए हैं। अभी राज्यसभा में कांग्रेस की ओर से एक ऐसे सज्जन को चुना गया, जो 1942 में पुलिस इनफॉर्मर था और जिनका नाम फाइलों में दर्ज था।
शासन के सम्बन्ध में कुछ कहना व्यर्थ है। यह पत्र प्रतिपक्ष के किसी नेता ने नहीं लिखा था। यह पत्र 28 मार्च 1960 में कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र ने देश के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को लिखा था। उनके पत्रों के दस्तावेज में यह पढ़ा जा सकता है, इसलिए कांग्रेस की वर्तमान दशा दिशा पर चिंता या आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। विधानसभा चुनावों में सचमुच नेता गिरगिट की तरह रंग ढंग चाल चरित्र बदल रहे हैं।
सबसे बड़ी मुश्किल कांग्रेस के प्रादेशिक नेताओं, उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं की है। वह उद्धव आदित्य ठाकरे के लिए भगवा रंग पहने, उनकी जय बोलें या शरद सुप्रिया पवार और उनके कथित वोट बैंक के लिए हरा रंग, इबादत के लिए हाथ फैलाएं, जीवन भर इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल गांधी के लिए शरद पवार के साथियों से संघर्ष करते रहे, अब उनको कंधे पर बैठाएं या उनकी दया के लिए चरण वंदना करें।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा के ‘आया राम गया राम ‘ से कई गुना अधिक धोखा शरद पवार इंदिरा गांधी से लेकर प्रदेश के वसंत दादा पाटिल और प्रतिभा पाटिल तक कई बार खेमे बदल विद्रोह करते रहे थे। पार्टियां भी बनाई। प्रधानमंत्री राष्ट्रपति बनने के सपने बुनने के साथ जोड़ तोड़ करते रहे। अब बेटी सुप्रिया को सत्ता यानी मुख्यमंत्री बनवाने के लिए सारे दांव पेंच लगा रहे हैं।
इस मुद्दे पर भाजपा, शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता या कार्यकर्त्ता की बात भी उठ सकती है, लेकिन यहां भाजपा शिव सेना के नेता कार्यकर्त्ता तो दशकों से एक साथ लगभग एक जैसी विचारधारा पर काम करते रहे हैं और अजित पवार तथा साथी उनके राष्ट्रवाद से सहमत और देवेंद्र फडणवीस के साथ संबंधों के अलावा सत्ता में भागेदारी का लाभ ले रहे हैं। हां सब अपना अस्तित्व और शक्ति बढ़ाने की कोशिश तो करेंगे।
झारखण्ड के लिए कांग्रेस और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा-सोरेन परिवार के बीच प्रदेश के गठन से पहले की लड़ाई, फिर सत्ता के लिए दोस्ती से भ्रष्टाचार, अपराध की बदनामी साझा करना जंगल में तीर चलाने जैसा है। शिबू सोरेन ने नरसिंहा राव से मनमोहन सिंह सरकार का साथ देने में उन्हें शर्मसार करने वाले हर तरीके अपनाए बेटे हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बनकर भी पिता की तरह गंभीर आरोपों में फंसे हुए हैं।
झारखण्ड के गठन की मांग को लेकर हो रहे आंदोलन के दौरान मैं पटना में तीन वर्ष सम्पादक रहा, इसलिए शिबू सोरेन और सूरज मंडल की गतिविधियों को देखते समझते रहा और फिर दिल्ली में संसद में भेंट होती रही। अफसोस इस बात का है कि शिबू सोरेन ने भी लालू यादव की तरह केवल सत्ता, धन बल और परिवार को ही प्राथमिकता दी। जिन आदिवासियों के लिए प्रदेश बना, उनके हितों और उत्थान के लिए समुचित काम नहीं किए। यही नहीं कुछ पुराने आदिवासी साथियों को भी दूर कर दिया। गरीब और भोले कुछ आदिवासी गांवों को आज भी उनसे उम्मीदें रहती हैं।
आदिवासियों, पिछड़ी जातियों के नाम पर आजकल राहुल गांधी हर जगह बोल रहे हैं। इसी तरह बड़े पूंजीपतियों को महत्व देने को लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा पर हमले कर रहे हैं। उन्हें उनकी पार्टी के नेता न सही कोई समर्थक आलोचक क्यों नहीं याद दिलाते कि मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ ( विभाजन के पहले या बाद ) दिलीप सिंह भूरिया, कांतिलाल भूरिया, अरविन्द नेताम जैसे इंदिरा युग से वफादार आदिवासी नेताओं को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया?
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड में कितने पिछड़े या दलित या आदिवासी कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनाए? अजित जोगी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की फाइलें पार्टी के वर्षिष्ठ नेता देते रहे तब भी उन्हें पहले सांसद और फिर मुख्यमंत्रीं क्यों नामजद किया? बिहार में सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे ईमानदार पिछड़े नेता को कभी मुख्यमंत्री या सीताराम केसरी को प्रधान मंत्री के रुप में पेश क्यों नहीं किया?
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जहां तक पूंजीपतियों की बात है, नेहरु से मनमोहन राज तक टाटा, बिड़ला, अम्बानी , अडानी, डालमिया जैसे पूंजीपतियों को सरकार से सर्वाधिक समर्थन मिला तभी तो नरेंद्र मोदी के सत्ता काल में वे और तेजी से आगे बढ़कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुकाबला कर सके। क्या उन्हें किसी सलाहकार ने यह नहीं बताया कि मनमोहन सिंह के सत्ता काल में भी अडानी समूह का एक कारखाना चीन के शंघाई के औद्योगिक नगर में लग गया था। मेरे जैसे पत्रकार उस समय वह उपनगर और ऐसी कंपनियों को देख आए थे?
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क्या कांग्रेस पार्टी और कई प्रमुख नेता इन समूहों से पार्टी या चुनावी फंड नहीं लेते रहे? राहुल गांधी पद यात्रा के अलावा जिन विशेष विमानों से उड़ते हैं, क्या वे किसी साधारण कार्यकर्ताओं के होते हैं ? रिकॉर्ड देखिये, दिवालिया घोषित बेईमान जेट एयर लाइंस और इसके मालिक को सर्वाधिक फायदा सुविधा क्या कांग्रेस राज में नहीं मिली? जहां तक मीडिया की बात है पहले पार्टी के और बाद में आपकी अपनी बनाई कंपनी में कितने पत्रकार पिछड़ी जाति या आदिवासी समुदाय के हैं? राहुल गांधी को हिंदी की एक प्रसिद्द पंक्तियाँ याद दिलाने की जरुरत है- ‘बुरा जो देखन मैं चला तो मुझसे बुरा न कोई’ (मैं तो अपने लिए भी इस पंक्ति को स्वीकार कर सकता हूं, ताकि सुधरने का प्रयास कर सकूं)
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