Eid-ul-Fitr delivers the message of humanity: इंसानियत का पैगाम देता है ईद-उल-फितर

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भारतवर्ष की ख्याति जहां यहां के सांप्रदायिक सौहार्द एवं आपसी सद्भावना के कारण है वहीं यहां के पर्व-त्योहारों की धर्म-समन्वय एवं एकता के कारण भी है। इन त्योहारों में इस देश की सांस्कृतिक विविधता झलकती है। यहां बहुत-सी कौमें एवं जातियां अपने-अपने पर्व-त्योहारों तथा रीति-रिवाजों के साथ आगे बढ़ी हैं। प्रत्येक पर्व-त्योहार के पीछे परंपरागत लोक-मान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित है। इन पर्व-त्योहारों की श्रृंखला में मुसलमानों के प्रमुख त्योहार ईद का विशेष महत्व है। हिन्दुओं में जो स्थान ह्यदीपावलीह्ण का है, ईसाइयों में ह्यक्रिसमसह्ण का है, वही स्थान मुसलमानों में ह्यईदह्ण का है। मुस्लिम रामजान में 1 माह तक रोजे रखते हैं, जिसके बाद ईद का त्योहार मनाया जाता है। रमजान के पाक महीने में इबादत की जाती है और अल्लाह से सारे गुनाहों की माफी मांगी जाती है। रमजान के आखिरी रोजे की रात चांद का दीदार करके अगली सुबह ईद मनाई जाती है। इसी पर ईद की तारीख निर्भर करेगी।
ईद-उल-फितर मनाने का कारण
रमजान अरबी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। और नौवें महीने की समाप्ति के बाद दसवां महीना शवाल का आता है। इसी माह शवाल की प्रथम तिथि को ईद मनाई जाती है। यह त्योहार रमजान के 29 अथवा 30 रोजे की समाप्ति के उपरान्त मनाया जाता है। रमजान के महीने में रोजा रखा जाता है जिसके दौरान रोजेदार एक महीने का व्रत रखते हैं। रमदान महीने में रोजे रखना हर मुसलमान के लिए एक फर्ज कहा गया है। भूखा-प्यासा रहकर इंसान को किसी भी प्रकार के लालच से दूर रहने और सही रास्ते पर चलने की हिम्मत मिलती है। प्रात: से संध्या तक बगैर अन्न और जल ग्रहण किए अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं। यह व्रत बहुत कठिन होता है क्यूंकि इसमें आपको पूरे दिन कुछ नहीं खाना-पीना होता है। बस सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले सहरी खाई जाती है और इन दिनों कुरान का अतिरिक्त पठन और पाठन करना होता है। इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमदान का महीना कहते हैं और इस महीने में अल्लाह के सभी बंदे रोजे रखते हैं। इसके बाद दसवें महीने की ह्यशव्वाल रातह्ण पहली चांद रात में ईद-उल-फितर मनाया जाता है। इस रात चांद को देखने के बाद ही ईद-उल-फितर का ऐलान किया जाता है।
मीठी ईद का पैगाम
सेवाइयों में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्योहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है। ईद-उल-फितर को महज ईद भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे मीठी ईद भी कहा जाता है। जबकि ईद-उल-जुहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि रमजान के महीने की 27वीं रात, जिसे शब-ए-कद्र कहा जाता है, को कुरान का नुजूल यानी अवतरण हुआ था। रमजान के महीने में ही कुरान का अवतरण माना जाता है। यही वजह है कि इस महीने में ज्यादा कुरान पढ़ने का फर्ज है। जैसा कि हम जान चुके हैं ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है, तो इस ईद पर सेवाइयां बनाना बहुत जरूरी है। सभी मुस्लिम इस खास दिन में एक-दूसरें को ह्यईद मुबारकह्ण कहकर गले मिलते हैं। सेवाइयों और शीर-खुरमें से एक दूसरें का मुंह मीठा किया जाता है। ईद-उल-फितर का एक ही मकसद होता है कि हर आदमी एक दूसरे को बराबर समझे और इंसानियत का पैगाम फैलाएं।
ईद-उल-फितर का मतलब
ह्यईद-उल-फितरह्ण दरअसल दो शब्द हैं। ह्यईदह्ण और ह्यफितरह्ण। असल में ह्यईदह्ण के साथ ह्यफितरह्ण को जोड़े जाने का एक खास मकसद है। वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान। साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना। यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व गरीब-गुरबा मुंह देखते रह गए। शब्द ह्यफितरह्ण के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फितर उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं। जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है। ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं।
फितर से बना ह्यफितराह्ण
ईद-उल-फितर इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियां माहे-रमजान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं। इसी फितर से ह्यफितराह्ण बना है। फितरा यानी वह रकम जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है। असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है। यह जकात भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है। इसके साथ फित्रे की रकम भी उन्हीं का हिस्सा है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।
रोजेदारों के लिए तोहफा
यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है। किताबों में आया है कि रमजान में पूरे रोजे रखने वाले का तोहफा ईद है। इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। अल्लाह पाक रमजान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फरमा देते हैं।
मन्नतें पूरी होने का दिन
ईद की नमाज के जरिए बंदे खुदा का शुक्र अदा करते हैं कि उसने ही हमें रमजान का पाक महीना अता किया, फिर उसमें इबादतें करने की तौफीक दी और इसके बाद ईद का तोहफा दिया। तब बंदा अपने माबूद (पूज्य) के दरबार में पहुंचकर उसका शुक्र अदा करता है। सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है। इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं। उस रहीमो-करीम (अत्यंत कृपावान) की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे। कोशिश करते रहे कि उसने जो आदेश दिए हैं उन्हें हर हाल में पूरा करते रहें। चाहे वह रोजों की शक्ल में हो, सहरी या इफ्तार की शक्ल में। तरावीह की शक्ल में या जकात-फितरे की शक्ल में। इन मंगतों ने अपनी हिम्मत के मुताबिक अमल किया, अब ईद के दिन सारे संसार का पालनहार उनको नवाजेगा।
इंसानियत के मिलन का दिन
असल में ईद बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है। इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-द:र्द को बांटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार का उद्देश्य मानव को मानव से जोड़ना है। इस्लाम का बुनियादी उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण है और ईद का त्योहार इसी के लिए बना है। धार्मिकता के साथ नैतिकता और इंसानियत की शिक्षा देने का यह विशिष्ट अवसर है। ईद का संदेश मानव-कल्याण ही है। यही कारण है कि हाशिए पर खड़े दरिद्र और दीन-दु:खी, गरीब-लाचार लोगों के दुख-द:र्द को समझें और अपनी कोशिशों से उनके चेहरों पर मुस्कान लाएं, तभी हमें ईद की वास्तविक खुशियां मिलेंगी।