सौभाग्य से विश्व के वृहद्तम शिक्षा तंत्रों में से एक का परिवारिक सदस्य होने के नाते मुझे सम्पूर्ण देश की शिक्षण संस्थाओं के दीक्षांत समारोहों में जाने का अवसर मिलता रहता है। एक रुझान स्पष्ट रूप से सामने आता है कि हर क्षेत्र में हमारी बेटियां सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं। बात डिग्रियों की हो, या फिर स्वर्ण पदक विजेताओं का विषय हो, यह औसतन साठ प्रतिशत से अधिक हमारी बेटियों का होता है। कहीं -कहीं तो यह 70-75 प्रतिशत से अधिक हो जाता है। मैं इसे एक अत्यंत शुभ संकेत के रूप में देखता हूँ । वस्तुतः विश्व के विकसित राष्ट्रों ने अपना गौरवमयी स्थान अपने देश की महिलाओं को समुचित आदर प्रदान करके ही हासिल किया है।
संपूर्ण विश्व 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रहा है। राष्ट्र के निर्माण और विकास में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने नारी को पुरुष के समकक्ष बताते हुए कहा था, ह्लजिस देश में नारी का सम्मान नहीं होता, वह देश कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।ह्व हमारे देश में वेदान्त ने स्पष्ट घोषणा की है कि सभी प्राणियों में एक समान आत्मा विराजमान है। इस नाते स्त्रियों और पुरुषों में कोई भी भेद संभव नहीं है। मेरा सदैव से यह मानना रहा है कि पुरुष का सम्पूर्ण जीवन नारी पर आधारित रहता है। कोई भी पुरुष अगर सफल है, तो उस सफलता का आधार नारी ही है।
वैसे भी देखा जाए तो जब कोई शिशु इस संसार में आता है, तो किशोरावस्था तक प्रथम गुरू के रूप में माँ से उसका सबसे अधिक संसर्ग होता है। यही कारण है कि स्त्री शिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। समाज को संस्कारवान बनाने के लिए महिला शिक्षा उपयोगी ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है।
किसी भी सभ्य, विकसित और श्रेष्ठ समाज का निर्माण उस देश के शिक्षित नागरिकों द्वारा किया जाता है और नारी इस कड़ी का केवल महत्वपूर्ण आधार ही नहीं, बल्कि अनिवार्य शर्त है ।
जिस तरह एक-एक कोशिका मिलकर जीवन का निर्माण करती है, वैसे ही प्रत्येक परिवार की छोटी-छोटी इकाइयां मिलकर समाज का निर्माण करती हैं। सभी इकाइयों की ऊर्जा का स्रोत और सम्पूर्ण परिवार की केंद्र बिंदु नारी होती है। यदि नारी शिक्षित होती है, तो दो परिवार शिक्षित होते हैं और जब परिवार शिक्षित होता है, तो पूरा राष्ट्र शिक्षित होता है। यही कारण था कि महान विचारक रूसो कहते थे, ह्यह्णआप मुझे सौ आदर्श माताएं दें, तो मैं आपको एक आदर्श राष्ट्र दूंगा ।ह्यह्ण
अजर -अमर भारतीय संस्कृति से हमें नारी को अत्यंत सम्मान देने की प्रेरणा मिलती है। हमारी संस्कृति हमें सिखाती है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
माता के रूप में नारी धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है। स्वयं ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। चाहे भगवान राम हों, गणेश/कार्तिकेय हों, कृष्ण हों या गुरुनानक हों, सदैव माँ के रूप में कौशल्या, पार्वती, यशोदा और तृप्ता देवी की आवश्यकता पड़ती है । मैं कई बार सोचता हूँ कि आज जब समाज में विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सम्मुख खड़ी हैं, ऐसे में नई पीढ़ी को इस बारे में आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है कि कैसे संस्कार देने में कमी रह गई है जिस कारण समाज में विकृतियाँ आ रही है।
वैदिक काल की बात करें तो घोषा, लोपामुद्रा, सुलभा, मैत्रेयी और गार्गी जैसी विदुषियों ने बौद्धिक और आध्यात्मिक पराकाष्ठा के नए आयाम स्थापित किए । नई शिक्षा नीति में हमारा पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि हमारी बलिकाएं कहीं भी पीछे नहीं रहें।
बच्चे सबसे अधिक माताओं के सम्पर्क में रहा करते हैं। माताओं के संस्कारों, व्यवहारों व शिक्षा का प्रभाव बच्चों के मन मस्तिष्क पर सबसे अधिक पड़ता है। शिक्षित माता ही बच्चों के कोमल व उर्वर मन मस्तिष्क में उन समस्त संस्कारों के बीज बो सकती है, जो समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए परम आवश्यक हैं।
शिक्षित और विकसित मन मस्तिष्क वाली नारी अपनी परिस्थिति और परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता आदि का ध्यान रखकर घर की उचित व्यवस्था एवं संचालन कर सकती है। जीवन रूपी गाड़ी चलाने के लिए महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है । सशक्त भागीदारी के लिए महिला शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि नारी अशिक्षित हो, तो वह अपने जीवन को विश्व की गति के अनुकूल बनाने में सदा असमर्थ रहेगी। यदि वह शिक्षित हो जाए, तो न केवल उसका पारिवारिक जीवन स्वर्गमय होगा, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति के युग का सूत्रपात भी हो सकेगा। भारतीय समाज में शिक्षित माता, गुरु से भी बढ़ कर मानी जाती है, क्योंकि वह अपने बच्चों को महान से महान बना सकती है।
भारत में नारी और पुरुष के बीच जब-जब फ़र्क आया, तब-तब उस फ़र्क की बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ी । वास्तव में गंभीरता के साथ देखा जाए, तो यही ज्ञात होता है कि भारत की समस्याओं का एक प्रमुख कारण नारियों की अशिक्षा रहा है। इसका फल यह हुआ कि जो राष्ट्र विश्व गुरु था, वही आज अपना पुराना वैभव , गौरव पाने हेतु संघर्षरत है। भारत सरकार हमारी बेटियों के कल्याण के लिए कृत संकल्प है । महिला सशक्तीकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी गई हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, महिला हेल्पलाइन योजना, उज्ज्वला योजना, सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन ; वन स्टॉप महिला शक्ति केंद्र, पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व देकर सरकार ने महिला सशक्तीकरण एवं विकास की एक नई इबारत लिखने की कोशिश की है। महिला शिक्षा हमारे राष्ट्र की सफलता एवं विकास की सीढ़ी है। महिला शिक्षा प्रत्येक परिवार, समाज , राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि परम आवश्यक है। महिला शिक्षा एक ऐसा सक्षम शस्त्र है, जो दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है। नव भारत के निर्माण का नया अध्याय लिखने के लिए यह आवश्यक है कि हमारी प्रत्येक बेटी पढ़े और इस कुशलता से पढ़े कि वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके। बेटियों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी सफल बनाने की मुहिम में सरकार पूरी तत्परता से उनके साथ है। इसमे कोई संदेह नहीं कि नव भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में महिला शिक्षा एक सक्षम उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती है ।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
मानव संसाधन विकास मंत्री
भारत सरकार