Editorial Aaj Samaaj | डॉ. दिलीप अग्निहोत्री | भारतीय चिंतन व संस्कृति में मानव कल्याण की कामना की गई। इसमें कभी संकुचित विचारों को महत्व नहीं दिया गया। समय समय पर अनेक सन्यासियों व संतों ने इस संस्कृति के मूलभाव का सन्देश दिया। सभी ने समरसता के अनुरूप आचरण को अपरिहार्य बताया।
इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वाभिमान पर भी बल दिया गया। भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार व क्षेत्र व्यापक रहा है। राष्ट्रीय स्वाभिमान किसी देश को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है। तब उसके विचार पर दुनिया ध्यान देती है।विश्व और मानवता का कल्याण भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ही हो सकता है।
अपने पूर्वजो,सांस्कृतिक परम्पराओं पर गौरव की अनिभूति होनी चाहिए। भारत राष्ट्र बनने की प्रक्रिया कभी नहीं रहा। यह शाश्वत रचना है। विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में भी है। इसमें कहा गया कि भारत हमारी माता है हम सब इसके पुत्र है। राष्ट्र की उन्नति प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
जो लोग भारत को नही जानते वो लोग भारत के बारे में गलत बात षड्यंत्र करके भारत को नक्सलवाद उग्रवाद आतंकवाद में धकेलने का प्रयास करते है। विष्णु पुराण में कहा गया कि यह भूभाग देवताओं के द्वारा रची गयी है।
भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों को समाहित करने की क्षमता है। सनातन धर्म प्रत्येक पंथ तथा उपासना विधि का सम्मान करता है। एक दूसरे की आस्था का सम्मान करना चाहिए। सनातन धर्म सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया की बात करता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की त्रिपुरा यात्रा में भी सांस्कृतिक एकता के सूत्र परिलक्षित हुए। उन्होंने पश्चिम त्रिपुरा में सिद्धेश्वरी मन्दिर का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि त्रिपुरा आदि सुंदरी मां त्रिपुर का क्षेत्र है। स्वामी चित्तरंजन महाराज ने अपने पूज्य गुरुदेव श्री श्री शान्तिकाली महाराज के संकल्प को मां सिद्धेश्वरी के भव्य मंदिर की स्थापना कर पूर्ण किया है।
धर्मो रक्षति रक्षितः यदि आप धर्म की रक्षा करेंगे,तो धर्म आपकी रक्षा करेगा।
यतो धर्मस्ततो जयः’ हमारी सनातन मान्यता रही है। इसी से एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना साकार हो रही है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के एक हाथ में मुरली तथा दूसरे हाथ पर सुदर्शन चक्र है, क्योंकि सुरक्षा के लिए सुदर्शन चक्र आवश्यक है।
प्रभु श्रीकृष्ण ने कहा था कि राज्य के नियम प्रत्येक नागरिक पर समान रूप से लागू होते हैं। यह लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत है। भारत में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन समय से ही गहरी रही हैं। योगी आदित्यनाथ ने गोरक्ष धाम में कहा कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजा को सत्ताच्युत करने का अधिकार जनता के प्रतिनिधित्व वाले परिषद के पास होता था।
लोकतंत्र में यह स्पष्ट है कि जनता का हित ही सर्वोच्च है। प्राचीन काल में देखें तो वैशाली गणराज्य इसका एक उदाहरण है जहां पूरी व्यवस्था जनता के हितों के लिए समर्पित थी। भारत में वेद,पुराण, उपनिषद की और ऋषियों की परंपरा के मूल्य थे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म मार्गदर्शक की भूमिका में था इसलिए हमारे यहां आतताई शासकों का वर्णन नहीं मिलता है। राजा, देवता, जनता सभी धर्म से बंधे थे। भारत मे त्याग और नैतिकता की परंपरा रही है।
इसीलिए राजा सर्वशक्तिमान होकर भी स्वेच्छाचारी नहीं था। चक्रवर्ती सम्राट को भी धर्मदंड से चेतावनी दी जाती थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है। अथर्ववेद में भी लोकतांत्रिक प्रणाली का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकार थॉमसन ने कहा था कि लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस के नियम भारत की पुरानी सभाओं से लिए गए लगते हैं।
भारत की सभ्यता और संस्कृति वेदों, पुराणों की है, ऋषियों की है। भारत की सभ्यता,संस्कृति पुराने मूल्यों से बची रही। भारत को लोकतंत्र की जननी इसलिए कहा जाता है कि यहां प्राचीनकाल से गांव स्तर तक लोकतंत्र सम्मत आत्मशासन की व्यवस्था थी। जनजातीय क्षेत्रों में भी लोकतांत्रिक मूल्यों वाली स्थानीय परिषदें थीं।
भारत के भक्ति आंदोलन ने भी लोकतंत्र की अलख जगाकर इसे सम्पुष्ट किया। भारत में लोकतांत्रिक शासन की परंपरा अति प्राचीन है। भारत में लोकतंत्र का सिद्धांत वेदों से निकला है। लोकतंत्र का वर्णन ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी मिलता है। ऋग्वेद में चालीस बार और अथर्ववेद में नौ बार गणतंत्र शब्द का उल्लेख है।
कृते च प्रति कर्तव्यम् एष धर्मः सनातनः। सनातन धर्म वही है, अगर किसी ने आपके प्रति कोई योगदान किया है, तो उसके प्रति तथा अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धर्म एक ही है, वह है सनातन धर्म।बाकी सब संप्रदाय और उपासना पद्धति हैं।
सनातन धर्म मानवता का धर्म है। यदि सनातन धर्म पर आघात होगा तो विश्व की मानवता पर संकट आ जाएगा।
श्रीराम साक्षात धर्म के विग्रह हैं। धर्म केवल उपासना विधि नहीं है बल्कि जीवन का शाश्वत मूल्य है। सनातन धर्म हमें कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रही बनाता है। सनातन धर्म मानवता का धर्म है।
सनातन धर्मावलम्बियों ने कभी भी स्वयं को विशिष्ट नहीं माना, बल्कि सदैव कहा कि एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्त’ अर्थात सत्य एक है, विद्वान व महापुरुष उन्हें अलग-अलग भाव से देखते हैं। श्रीकृष्ण ने निष्काम कर्म की प्रेरणा दी- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात बिना फल की चिन्ता किए अपना कर्म करते रहो।
साथ ही, ‘परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्’ के भाव के साथ सज्जनों की रक्षा एवं संरक्षण के लिए कार्य करें, वहीं दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के खिलाफ कठोरता से कार्य करें। ईश्वर सत्य तथा शाश्वत है। इसी प्रकार सनातन धर्म भी सत्य और शाश्वत है।
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