Economic Model in Karnal सीएचसी को उद्योगों से जोड़कर करेंगे इकोनोमिक मॉडल तैयार : उपायुक्त
प्रवीण वालिया, इन्द्री/करनाल :
Economic Model in Karnal : उपायुक्त अनीश यादव ने शनिवार को इन्द्री खण्ड के गांव सांतड़ी में बरगोत्रा फार्म 4 एनर्जी इन्डस्ट्री नाम से एक मॉडल कस्टम हायरिंग सेंटर का दौरा किया और इसके संचालक व प्रगतिशील किसान अश्विनी कांबोज से फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर बातचीत की। उनके साथ कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डॉ. आदित्य डबास भी थे। (Economic Model in Karnal) बातचीत के दौरान उपायुक्त ने कस्टम हायरिंग सेंटर (सी.एच.सी.) में उपलब्ध मशीनो से धान अवशेषों का किस तरह से प्रबंधन किया जाता है, उस पर किसान का प्रति एकड़ व्यय करके कितना मुनाफा होता है, इस विषय पर लम्बी वार्ता की।
मशीनो की खरीद पर 125 लाख रूपये का निवेश किया गया
किसान ने उपायुक्त को बताया कि उनकी सी.एच.सी. ने वर्ष 2016 में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनो की खरीद पर 125 लाख रूपये का निवेश किया गया, जिसमें 50 लाख सरकार की ओर से अनुदान मिला। (Economic Model in Karnal) पहले वर्ष मशीनो का प्रयोग यानि ज्ञान समझ लेने में ही बीत गया, फिर 2017 में इसके अच्छे परिणाम आने लगे और अब प्रति एकड़ खर्चा निकालकर 35 प्रतिशत की बचत यानि शुद्ध आय हो रही है।
किसान अश्विनी ने बताया कि धान की कटाई के बाद पराली अवशेषों की बेलर मशीन से बेल यानि गांठे बनाई जाती हैं, यह काम 15 सितम्बर से 15 नवंबर तक चलता है। हर साल करीब 3500 एकड़ में कवर कर लेते हैं और बनाई गई गांठों को उद्योगों में इंधन की पूर्ति के लिए बेचा जाता है। इस पर उपायुक्त अनीश यादव ने इस कस्टम हायरिंग सेंटर को एक रोल मॉडल बताया। (Economic Model in Karnal) उन्होंने कहा कि दूसरे किसानो को भी इसका अनुकरण करना चाहिए।
इन-सीटू और एक्स-सीटू से फसल अवशेषों का प्रबंधन
इस पर उपायुक्त ने कहा कि इन-सीटू और एक्स-सीटू से फसल अवशेषों का प्रबंधन किया जाता है, इसमें सरकार की ओर से अच्छी-खासी सब्सिडी किसान को दी जाती है। प्रबंधन में सीएचसी की ओर से जो बेल बनाई जाती हैं, उनकी उद्योगों में मांग बढ़ती जा रही है। इसी को देखते सीएचसी को उद्योगों के साथ लिंक करने पर काम किया जाएगा, ताकि उनकी कच्चे माल की आपूर्ति को ओर पुख्ता बनाया जा सके। उन्होंने बताया कि धान के सीजन में पराली जलाने से प्रदूषण का पैमाना बढ़ जाता है, हवा जहरीली हो जाती है और इसका असर प्रदेश के साथ-साथ देश की राजधानी दिल्ली तक जाता है।
4 सालो में 704 कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए
इससे बचने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब एक ऐसा इकोनॉमिक मॉडल तैयार किया जाएगा, जिससे उद्योगों के साथ-साथ किसानो को भी सीधा फायदा हो और पर्यावरण भी शुद्ध रहे। डीडीए डॉ. आदित्य डबास ने बताया कि करनाल जिला में बीते 4 सालो में 704 कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए, इनमें फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 6785 मशीने हैं। पराली की गांठे बनाने वाली बेलर मशीनो की संख्या 339 है। उन्होंने बताया कि कस्टम हायरिंग सेंटरों से जिला के करीब 7 हजार किसान जुड़कर फसल अवशेष प्रबंधन कर रहे हैं। कृषि मशीनो की खरीद पर इस वर्ष सरकार की ओर से किसानो को 30 करोड़ रूपये और गत वर्ष 22 करोड़ रूपये की सब्सिडी दी गई।
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