E-cigarettes can also damage DNA: डीएनए को भी क्षतिग्रस्त कर सकती है ई-सिगरेट

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पिछले दिनों लोकसभा में ‘इलैक्ट्रॉनिक सिगरेट’ उत्पादन, विनिर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, विक्रय, वितरण, भण्डारण और विज्ञापन विधेयक 2019 पारित होने के बाद दो दिसम्बर को राज्यसभा में भी ध्वनिमत से यह विधेयक पारित हो गया। उल्लेखनीय है कि गत 18 सितम्बर को केन्द्र सरकार द्वारा अमेरिकी युवाओं में ई-सिगरेट की बढ़ती लत का हवाला देते हुए धूम्रपान नहीं करने वालों में निकोटीन की लत बढ़ने के मद्देनजर ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया था और संसद के दोनों सदनों में इस संबंधी विधेयक पारित होने के बाद अब ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अब ई-सिगरेट का कारोबार करने वाले व्यक्ति को पहली बार एक वर्ष की सजा तथा एक लाख का जुर्माना हो सकता है लेकिन दूसरी बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष तक की सजा व पांच लाख रुपए जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। भण्डारण के लिए ई-सिगरेट रखने पर भी 6 माह की जेल और 50 हजार रुपए तक का जुर्माना संभव हैं।
सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर पाबंदी लगाने का जो स्वागतयोग्य निर्णय लिया गयाए वह कई अमेरिकी शोधों के अलावा कुछ भारतीय संस्थानों द्वारा की गई रिसर्च पर आधारित है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा ई-सिगरेट को लेकर इसी साल मई माह में एक श्वेत पत्र जारी कर इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई थी। देश के शीर्ष मेडिकल रिसर्च निकाय ‘इंडियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च’, एम्स, टाटा रिसर्च सेंटर तथा राजीव गांधी कैंसर अस्पताल द्वारा भी इस पर प्रतिबंध की अनुशंसा की गई थी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने अपने श्वेत पत्र में ई-सिगरेट के तमाम दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया था कि ई-सिगरेट को लेकर युवाओं में भ्रम है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि यह भी स्वास्थ्य के लिए उतनी ही हानिकारक है, जितनी साधारण सिगरेट या अन्य तम्बाकू उत्पाद। श्वेत पत्र में कहा गया था कि ई-सिगरेट व्यक्ति के डीएनए को क्षतिग्रस्त कर सकती है और इसकी वजह से सांस, हृदय व फेफड़े संबंधी तमाम बीमारियां हो सकती हैं। ई-सिगरेट का सेवन करने वाली महिलाओं में तो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत पहला देश नहीं है बल्कि दुनियाभर में अभी तक करीब दो दर्जन देश इसे प्रतिबंधित कर चुके हैं। ई-सिगरेट की शुरूआत वास्तव में आम सिगरेट की लत छुड़ाने के नाम पर हुई थी लेकिन विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों में भी यह खासकर युवाओं और बच्चों में जिस प्रकार एक नई महामारी में बदलती दिख रही थी, उसके मद्देनजर बच्चों को इसके खतरे से बचाने के लिए भारत में इस पर प्रतिबंध लगाया जाना समय की बहुत बड़ी मांग भी थी। बच्चों व नाबालिगों को आकर्षित करने के लिए ई-सिगरेट निर्माता कंपनियों द्वारा अलग-अलग फ्लेवर के साथ ही कैंडी के रूप में भी ई-सिगरेट को बाजारों में उतारा जा चुका हैए जिससे प्रभावित होकर छोटी कक्षाओं के बच्चे भी कैंडी की शक्ल में ई-सिगरेट पकड़ना शुरू कर देते हैंए जो बाद में आम सिगरेट भी पीने लगते हैं। उत्तर-पश्चिमी इंग्लैंड के शोधकतार्ओं ने भी स्प्ष्ट किया था कि जिन किशोरों ने कभी सिगरेट का एक कश भी नहीं लिया था, वे भी अब ई-सिगरेट के साथ प्रयोग कर रहे हैं। इस शोध में 14 से 17 वर्ष आयु वर्ग के 16193 किशोरों को शामिल किया गया था और शोध के मुताबिक पांच में से एक किशोर ने ई-सिगरेट का कश लेने या उसे खरीदने की कोशिश की थी। एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार वहां 10वीं तथा 12वीं के स्कूली बच्चों में ई-सिगरेट का चलन 77.8 प्रतिशत तक बढ़ा है जबकि मिडल स्कूल के बच्चों में ई-सिगरेट लेने का चलन 48.5 प्रतिशत बढ़ा है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ई-सिगरेट उपलब्ध कराने वाली कम्पनियां जानबूझकर बबलगम, कैप्टन क्रंच तथा कॉटन कैंडी जैसे फ्लेवर का उपयोग कर रही हैं ताकि युवाओं को इसकी ओर आकर्षित किया जा सके। एक अध्ययन में कुछ समय पूर्व यह खुलासा हुआ था कि स्कूली बच्चे 16.17 साल की उम्र में ही सिगरेट के आदी हो जा रहे हैं और इन बच्चों में बड़ी संख्या ऐसी है, जिन्हें 18 साल का होते-होते ई सिगरेट की लत लग जाती है। यही नहीं, 10.11 साल के बच्चे भी हुक्के की भांति ई-सिगरेट का सेवन करने लगे थे। दरअसल युवा पीढ़ी और बच्चे इसे स्टेटस सिंबल के रूप में अपनाने लगे हैं और यही कारण है कि देश में ई-सिगरेट का वैध-अवैध कारोबार बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। ई-सिगरेट निर्माता कम्पनियों द्वारा भले ही इसे बीड़ी-सिगरेट की लत छुड़ाने के एक भरोसेमंद और सुरक्षित विकल्प के रूप में पेश किया जाता रहा है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन स्पष्ट कर चुका है कि ई-सिगरेट से पारम्परिक सिगरेट जैसा ही नुकसान होता है। संगठन ने इसी साल अपनी रिपोर्ट में चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि सिगरेट उद्योग तम्बाकू विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मुहिम को नाकाम बनाने में लगा हुआ हैए इसलिए ई-सिगरेट कम्पनियों के प्रचार पर विश्वास न करें। आंकड़ों पर नजर डालें तो देशभर में करीब 460 ई-सिगरेट कम्पनियां सक्रिय हैं, जिनके सात हजार से भी ज्यादा फ्लेवर्ड उत्पाद बाजारों में बिक रहे हैं।
शोधकतार्ओं का कहना था कि ई-सिगरेट निकोटीन की दुनिया में शराब की तरह ही है, जिस पर सख्ती से नियंत्रण करने की आवश्यकता है। कुछ कैंसर विशेषज्ञ ई-सिगरेट को पैसिव स्मोकिंग का बड़ा उदाहरण मानते रहे हैं, जिनका कहना है कि ई-सिगरेट में निकोटीन आम सिगरेट से कम भले ही हो लेकिन इसमें मौजूद केमिकल कैंसर का कारण बनते हैं। उनका कहना है कि इसी के प्रयोग से एक नॉन स्मोकर को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। इंडिया कैंसर रिसर्च कंसोर्टियम के सीईओ प्रो. रवि मेहरोत्रा का कहना है कि ई-सिरगेट खासकर युवाओं में फेफड़ों से संबंधित बीमारियों की बड़ी वजह बन रही है, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक टाइम बम की तरह है।
ई-सिगरेट को ‘इलैक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम्स’ भी कहा जाता है, जो निकोटीन अथवा गैर-निकोटीन पदार्थों की भाप को सांस के साथ भीतर ले जाने वाला एक वाष्पीकृत बैटरी चालित उपकरण है। ई-सिगरेट एक लंबी ट्यूब जैसी होती है, जिसका बाहरी आकार-प्रकार सिगरेट और सिगार जैसे वास्तविक धूम्रपान उत्पादों जैसा ही बनाया जाता है, जिसमें कोई धुआं या दहन नहीं होता लेकिन सिगरेट, बीड़ी, सिगार जैसे धूम्रपान के लिए प्रयोग किए जाने वाले तम्बाकू उत्पादों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली ई-सिगरेट वास्तव में तम्बाकू जैसा ही स्वाद, अहसास और शारीरिक संवेदना देती है। इसमें निकोटीन तथा अन्य हानिकारक रसायन तरल रूप में भरे जाते हैं। जब ई-सिगरेट में कश लगाया जाता है तो इसमें लगी हीटिंग डिवाइस निकोटीन वाले इस घोल को गर्म करके भाप में बदल देती है, इसी भाप को इनहेल किया जाता है। इसलिए इसे स्मोकिंग के बजाय ‘वेपिंग’ कहा जाता है। लिक्विड निकोटिन का घोल गर्म होने पर एरोसोल में बदल जाता है। निकोटीन युक्त घोल के गर्म होने पर शरीर के अंदर हैवी मैटल पार्टीकल चले जाते हैं, जो कारसिनोजेनिक होते हैं और कैंसर का कारण भी बनते हैं। ई-सिगरेट के अधिकांश ब्रांड में एडेहाइड्स, टर्पिन्स, भारी धातु तथा सिलिकेट कणों जैसे घातक तत्व होते हैं, जो शरीर की कार्यप्रणाली पर हर प्रकार से घातक प्रभाव डालने के साथ कई बीमारियों को भी जन्म देते हैं। ई-सिगरेट सीधे तौर पर छाती और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है।

ई.सिगरेट से निकलने वाले धुएं में बहुत अधिक निकोटिन पाया जाता है और इसमें से भी सिगरेट की ही भांति टॉक्सिक कम्पाउंड निकलते हैंए जो इंसानी फेफड़ों को आम सिगरेट जैसा ही नुकसान पहुंचाते हैं। निकोटीन के कारण रक्तचाप सामान्य से काफी ज्यादा बढ़ जाता है। एक नए शोध के अनुसार ई.सिगरेट का सेवन करने से ब्लड क्लॉट की समस्या उत्पन्न हो सकती है और इसके सेवन से हार्ट अटैक का खतरा 56 फीसदी तक बढ़ जाता है। बहरहालए ई.सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए जाने के सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए अब जरूरत इस बात की है कि इस प्रतिबंध को असरकारक बनाने के लिए सरकारी नियामकों द्वारा अपेक्षित सख्ती बरती जाए ताकि ये उत्पाद आमजन तक पहुंच ही न सकें और देश के भविष्य को ई.सिगरेट के जहर से बचाने में सफलता मिले।
-योगेश कुमार गोयल
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)