Dussehra 2024 : राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का उत्सव

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Dussehra 2024 : राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का उत्सव
Dussehra 2024 : राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का उत्सव

Dussehra 2024 | डॉ. दिलीप अग्निहोत्री | दशहरा असत्य और अधर्म प्रवृत्ति पर विजय का पर्व है। इसमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी समावेश है। प्रभु श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। विभीषण सहित सभी प्रमुख लोगों ने प्रभु राम से लंका का अपने साम्राज्य में सम्मलित करने का निवेदन किया था।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

किंतु प्रभु राम ने ऐसा नहीं किया। इतना ही नहीं, मंदोदरी सहित वहां की सभी महिलाओं को सम्मान दिया। उनके किसी भी सैनिक ने लंका की नारियों के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया। अपने मत और उपासना पद्धति का रंचमात्र भी प्रसार नहीं किया। जबकि प्रभु राम एवं उनकी सेना के समक्ष ऐसा करने का पूरा अवसर था।

ऐसा करना भारतीय संस्कृति की अवहेलना होती। प्रभु राम तो युद्ध प्रारंभ होने के पहले ही विभीषण का राज्याभिषेक कर चुके थे। स्पष्ट है कि लंका के लोगों को तलवार की नोक पर गुलाम बनाने की उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी।

उन्होंने अपने आचरण से मर्यादा एवं भारतीय संस्कृति का सन्देश दिया। इस संस्कृति में सम्पूर्ण सृष्टि समाहित है। इसमें मानव मात्र के कल्याण की कामना है। विजय दशमी शब्द में राष्ट्रीय शौर्य व स्वाभिमान का भाव समाहित है किंतु इसमें दंभ नहीं है। बल्कि इस दिन प्रभु राम ने दंभ अहंकार और असत्य को परास्त किया था।

यह भारतीय चिंतन की विशेषता है। इस प्रसंग में अहंकार को पराजित करने का भी सन्देश है। प्रभु श्री राम ज्ञान के प्रतीक है। दूसरी तरफ रावण अहंकार की प्रति मूर्ति था। वह उच्च कोटि का ज्ञानी था। लेकिन उसके ज्ञान का प्रकाश अहंकार के अंधकार में समाहित हो गया था। ज्ञानी का अहंकार उसे सत्य मार्ग से विरत कर देता है।

गोस्वामी जी लिखते है-

रागु रोषु इरिषा मदु मोहु, जनि जनि सपनेहुं इन्ह के बस होहु।
सकल प्रकार बिकार बिहाई,मन क्रम बचन करेहु सेवकाई।।

तव माया बस जीव जड़ संतत फिरइ भुलान।
तेहि पर क्रोध न करिअ प्रभु कृपासिंधु भगवान।

शस्त्र व शास्त्र का एक साथ पूजन राजधर्म का भी सम्यक विचार है। गीता में भगवान कहते भी है-

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।

विजय दशमी का सन्देश व्यापक है। युगों-युगों तक भारत इस संस्कृति पर चलता रहा। इस आधार पर उसे विश्वगुरु की प्रतिष्ठा मिला। दुनिया में जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, यहां के गुरुकुल शिक्षा व शोध के केंद्र बन चुके थे। संस्कृत के विशाल वांग्मय की रचना की गई।

इसके साथ ही राजधर्म कूटनीति सुरक्षा अस्त्र शस्त्र का विज्ञान भी अस्तित्व में आया। आयुर्वेद व योग के माध्यम से स्वस्थ्य जीवन के नियम व उपचार का मार्ग दिखाया गया। प्रकृति व पर्यावरण की चेतना का विचार आज भी प्रासंगिक है। रामकथा में जीवन से संबंधित प्रत्येक पक्ष का किसी न किसी रूप में समावेश है।

बाल्मीकि रामायण में प्रकृति का संवर्धन करने वाले वृक्षों व वाटिकाओं का वर्णन है। इनमें से अनेक वृक्ष विलुप्त हो चुके है। अनेक आज भी अस्तित्व में है। इनका लाभ उठाया जा सकता है।

क्योंकि इन सभी का औषधीय महत्व है। प्रभु राम अपने आचरण से प्रत्येक स्तर पर मर्यादा का सन्देश देते है। इसमें पुत्र धर्म से लेकर राजधर्म भी सम्मिलित है। भारत में विजयी होने पर अहंकार का भाव कभी नहीं रहा। हम कभी भी अतिवादी नहीं हो सकते। स्वतंत्रता और समता के लिए बंधुभाव होना चाहिए।

विश्व की अर्थव्यवस्था में एक हजार वर्ष तक भारत नंबर वन पर रहा। उस समय विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर हमारा प्रभाव तो था, हमारा साम्राज्य भी बहुत बड़ा था। लेकिन ऐसा सब होने के बावजूद भारत ने दुनिया में जाकर किसी देश को समाप्त नहीं किया। विजय दशमी राष्ट्रीय भावना के जागरण का ही पर्व है। हिन्दू जीवन पद्धति में सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, स्वाध्याय, संतोष, तप को महत्व दिया गया।

समरसता सद्भाव से देश का कल्याण होगा। जब भारत एवं भारत की संस्कृति के प्रति भक्ति जागती है व भारत के पूर्वजों की परंपरा के प्रति गौरव जागता है, तब सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं। भारत ही एकमात्र देश है जहां पर सबके सब लोग बहुत समय से एक साथ रहते आए हैं। सबसे अधिक सुखी मुसलमान भारत देश के ही हैं। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जहां उस देश के वासियों की सत्ता में दूसरा संप्रदाय रहा हो। यहाँ सभी मजहब के लोगों को सभी अधिकार मिले हुए है।

उदार चिंतन भारत की ही विशेषता है। मोहन भागवत के अनुसार इस स्वभाव को हिंदू कहते हैं। हम हिंदू हैं और हम भारतीय हैं। हम मुसलमान हैं लेकिन हम अरबी अथवा तुर्की नहीं हैं। शिक्षा में आत्म भान व गौरव भाव होना चाहिए।

गौरवान्वित करने वाली बातों को देने वाले संस्कार शिक्षा से, सामाजिक वातावरण से एवं पारिवारिक प्रबोधन से मिलना चाहिए। भारत की प्रकृति मूलत: एकात्म है और समग्र है। अर्थात भारत संपूर्ण विश्व में अस्तित्व की एकता को मानता है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सांस्कृतिक एकता और सनातन आस्था का प्रतीक हैं। उनसे सभी को प्रेरणा मिलती है।

आम जनमानस प्रभु श्रीराम के साथ अपने को जोड़ता है। श्रीराम के प्रति लोगों की आस्था रामलीला को सतत जीवन्तता प्रदान करती है। रामलीला हमारे अतीत की समृद्ध परम्परा से जुड़ती है।

भारत ने सदैव मानवता के कल्याण के लिए आदर्श प्रस्तुत किए। प्रभु श्रीराम से हमें उच्च आदर्शों और मूल्यों की प्रेरणा मिलती है। भारत की परम्परा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बिना अधूरी है। गुरु-शिष्य, भाई-भाई, माता-पुत्र, पिता-पुत्र और पति-पत्नी सभी संबंधों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र प्रेरणा देता है।

रामराज्य की अवधारणा, सर्वांगीण विकास, सर्वसमावेशी, सर्वस्पर्शी समाज की रही है। यह लोक कल्याण की भावना से प्रेरित है। रामराज्य एक आदर्श राज्य के रूप में जाना जाता है।रामकथा और रामलीला केवल भारत तक ही सीमित नहीं हैं, विश्व के अनेक देशों में व्यापक पैमाने पर रामलीला का आयोजन होता है। इंडोनेशिया मुस्लिम देश है, फिर भी यहां रामलीला बहुत लोकप्रिय है।

यहां के लोग स्वीकार करते हैं कि श्री राम उनके पूर्वज हैं। यह बात अलग है कि उनकी उपासना पद्धति अलग है।ब्रिटिश राज्य में गिरमिटिया मजदूर बनकर गरीब भारतीय मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी आदि अनेक देशों में गए थे। ये अपने साथ रामचरित मानस की प्रति लेकर गए थे।

सदियों बाद भी ये अपने को श्रीराम का वंशज बताने में गर्व का अनुभव करते हैं। यहां भी रामलीला बहुत लोकप्रिय है। यहां कई स्थानों में मंच की जगह मैदान में रामलीला होती है। बड़ी संख्या में दर्शक उसका अवलोकन करते हैं। कम्बोडिया में रामलीला मंचन का अलग रूप है।

फिजी में भारतीय मूल के लोग बहुमत में हैं। तब उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी समृद्धशाली भारतीय संस्कृति, धार्मिक विरासत, पारम्परिक लोकसंगीत, लोकगीत, महाकाव्यों में रामायण और भगवद्गीता, जो कि हमारी सबसे कीमती धरोहर है, को वह अपने साथ लेकर गए। यह धरोहर और विरासत आज भी फिजी में पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित है।

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