आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली:
देश में कई अहम गुरुद्वारों का संचालन करने वाली डीएसजीएमसी (दिल्ली के कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे) के साथ-साथ कई सामाजिक गतिविधियों का संचालन करती है। डीएसजीएमसी का राजधानी की राजनीति में अहम स्थान है। वहीं इसके चुनाव हमेशा राजधानी की जनता के लिए अहम रहते हैं। इसलिए मुख्य सियासी दलों का इसके चुनाव पर भी काफी नजर रहती है। इस बार डीएसजीएमसी के चुनाव 22 अगस्त के को होंगे और तीन दिन बाद 25 अगस्त को मतगणना होगी। जिससे पता चलेगा की डीएसजीएमसी की कमान जनता ने किसे सौंपी है। हर बार से विपरीत इस बार चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी हो गया है। जबकि कमेटी कार्य सिखो की भलाई, गुरुद्वारों का संचालन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य करना होता है। सभी दल एक दूसरे को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने में जुटे हैं। चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती शिरोमणि अकाली दल (शिअद-बादल) की सत्ता को काबिज रखना है। हालांकि सत्तारुढ़ दल के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा के खिलाफ जारी हुए लुकआउट नोटिस के बाद शिअद बादल की चुनौती बढ़ गई है।
2017 में शिअद ने मारी थी बाजी
शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) ने 2017 में हुई चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए लगातार दूसरी बार डीएसजीएमसी पर कब्जा किया था। वर्ष 2013 के डीएसजीपीसी चुनाव की तरह ही दूसरी बार भी कमेटी के 46 में से 35 वार्डों पर जीत हासिल की थी। वहीं, शिअद दिल्ली (सरना) को मात्र 7 सीटें मिल पाई थी। दो सीटों पर अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार भाई रंजीत सिंह की पार्टी, जबकि दो निर्दलीय जीते थे।
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