वाराणसी। दक्षिण भारत के तमाम मंदिरों की तरह वाराणसी के श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में भी ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। यहां के ज्योतिर्लिंग का स्पर्श पाने के लिए पुरुष दर्शनार्थियों को बिना सिला हुआ कपड़ा पहनकर आना होगा। अगर शिवलिंग का स्पर्श करना है तो पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी धारण करके आऩा होगा। पैंट-शर्ट, जींस, सूट, टाई कोट आदि सिला हुआ कपड़ा पहनकर आने वालों को गर्भगृह में प्रवेश तो मिलेगा लेकिन शिवलिंग का स्पर्श नहीं कर सकेंगे। केरल के प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर में सिला हुआ वस्त्र पहनकर आने वालों को गर्भगृह में भी प्रवेश नहीं मिलता है।
काशी विद्वत परिषद और प्रदेश के धर्मार्थ कार्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी के बीच रविवार को कमिश्नरी सभागार में हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। विद्वत परिषद ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्पर्श के लिए मध्याह्न भोग आरती से पूर्व तक का समय शास्त्र सम्मत माना है। भक्तों को पूर्वाह्न 11 बजे तक बाबा के स्पर्श का अवसर मिलेगा।
पिछले साल सावन में गर्भगृह में प्रवेश पर ही रोक लगा दी गई थी। भारी भीड़ को इसका कारण बताया गया था। सावन बीतने और भीड़ कुछ कम होने पर 23 अगस्त से एक घंटा गर्भगृह में जाने की छूट मिलने लगी। इस दौरान बाबा के शिवलिंग को स्पर्श करने का भी मौका मिलता है। शाम में सप्तर्षि आरती के पहले एक घंटे तक बाबा का स्पर्श और गर्भगृह में दर्शनार्थी जा सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। काशी खण्ड पुस्तक में स्पष्ट वर्णित है कि जीवनपर्यन्त समस्त शिवलिंगों की आराधना से जो पुण्य मिलना कठिन है, वह पुण्य श्रद्धापूर्वक केवल एक ही बार विश्वेश्वर के पूजन से शीघ्र मिल जाता है। इसके स्पर्श मात्र से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसके दर्शन मात्र से तत्वज्ञान का प्रकाश होता है। काशी खण्ड में वर्णित है कि काशी में एक तिल भूमि भी लिंग से रहित नहीं है। काशी खण्ड के त्रिस्थली सेतु के अनुसार विश्वेश्वर के दर्शन के बाद प्राणी कहीं भी शरीर छोड़े तो अगले जन्म में मोक्ष का भागी हो जाता है।
मान्यता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, मर्हिष दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास आदि समयाकाल के दिग्गजों ने बाबा धाम में शीश नवाया है। यही पर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदाय का ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत को पूर्णतया दी थी।
आरती समय
बाबा विश्वनाथ का पूजन, अर्चन, शृंगार शैली अन्त्यंत ही मोहक व शास्त्रीय पद्धति पर आधारित है। पांच आरती होती है। प्रत्येक आरती में षोडशोपचार विधि से पूजन-अर्चन होता है। सबसे पहले मंगला आरती होती है। मान्यता है कि ब्रह्मबेला में स्वयं बाबा आरती ग्रहण करने आते हैं।
मंगला आरती – समय भोर में 2.35 बजे
भोग आरती- दोपहर 11.30 बजे
सप्तर्षि आरती – शाम को 7.15 बजे
शृंगार भोग आरती- रात 8.45 बजे
शयन आरती – रात 11 बजे
बाबा का स्नान
शृंगार के पूर्व दूध, दही, घृत, मधु, शर्करा से स्नान के बाद पंचामृत स्नान। फलोदक (नारियल) जल, गधोदक (गुलाब जल) फिर अंत में गंगा जल से स्नान। फिर वस्त्र, उपवस्त्र, यज्ञोपवित, रुद्राक्ष माला, सुगंधित द्रव्य, चंदन, भस्म, अक्षत, बिल्वपत्र के बाद राज राजेश्वर रूप में शृंगार होता है। इसके बाद नैवेद्य अर्पण। इसके बाद धूप, दीप और अंत में कर्पूर आरती होती है। इसके बाद पुष्पांजलि व अंत में स्तुति पाठ।
क्या लगता है भोग
मंगला आरती में बाबा को फल, मिठाई, मेवा का ही भोग लगता है। अन्न का भोग नहीं लगाया जाता है। मध्याह्न में चावल, दाल, रोटी व सब्जी का भोग। सोमवार को पक्का भोजन। इसमें तहत पूड़ी-सब्जी। एकादशी को फलहार का ही भोग लगता है। इसमें मुख्य रूप से सेंधा नमकयुक्त सिंघाड़े के आटा से निर्मित नमकीन व हलुआ। रात्रि में खीर का भोग लगता है। एकादशी की रात मेवा का खीर भोग लगाया जाता है।
आरती की विशेषता
मंगला आरती में डमरू के बोल पर स्तुति गान। शाम को सप्तर्षी आरती में डमरू व घंटे की ताल पर आरती का गान होता है। मान्यता है कि इस आरती मे सप्तऋषि स्वयं दर्शन करने मौजूद रहते हैं। शृंगार आरती के बाद बाबा के लिए चांदी का चारपायी पर राजशाही बिस्तर सजता है। चांदी के गिलास में दुग्ध भोग लगाया जाता है। शयन आरती में भक्त गान के साथ भगवान को शयन कराते हैं। मंदिर के अर्चक डॉ. श्रीकांत मिश्र ने बताया कि वैसे तो ईश्वर न सोते है न जागते हैं लेकिन सांसारिक पुरुष अपने भाव से प्रभु को शयन कराते हैं।
कारिडोर के मंदिरों पर सलाह मांगी
रविवार को बैठक में मंत्री नीलकंठ तिवारी ने कॉरिडोर क्षेत्र में निकले देवालयों और विग्रहों को संयोजित करने के लिए विद्वत परिषद से सलाह मांगी। इस पर विद्वत परिषद ने क्षेत्र भ्रमण करने के बाद रूपरेखा तैयार करने की बात कही। बैठक में मंदिर के अर्चकों के लिए ड्रेस कोड निर्धारित करने, दर्शनार्थियों को साक्षी विनायक की ओर से मंदिर में प्रवेश देने, काशी खंडोक्त सभी देवालयों के जीर्णोद्धार पर भी चर्चा हुई।
धर्मार्थ कार्य मंत्री ने कहा कि विश्वनाथ धाम के मॉडल में पहले से ही एक वैदिक केंद्र बनाने की तैयारी है। इसमें पौरोहित्य प्रशिक्षण केंद्र खोला जाएगा। इस केंद्र में कर्मकांड की शिक्षा, कंप्यूटर और स्पोकेन इंग्लिश का तीन-तीन माह का कोर्स भी कराया जाएगा। शास्त्रार्थ के लिए भी एक केंद्र बनाया जा रहा है। बैठक में पं. वशिष्ठ तिवारी, प्रो. रामचंद्र पांडेय उपाध्यक्ष काशी विद्वत परिषद, डा. सुखदेव त्रिपाठी, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, डा. दिनेश कुमार गर्ग, डॉ. राम नारायण द्विवेदी, कमिश्नर दीपक अग्रवाल, मंदिर के सीईओ विशाल सिंह उपस्थित रहे।