सामाजिक बुराइयों का विनाश शिक्षा के बिना संभव: डा. भीम राव अम्बेडकर

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Dr Bhim Rao Ambedkar Babasaheb
Dr Bhim Rao Ambedkar Babasaheb

करनाल, 13अप्रैल, इशिका ठाकुर:
14 अप्रैल का दिन देश के दीन-हीन, मजदूरों और समाज के उपेक्षित लोगों के लिए अपना विशेष महत्व रखता है इस दिन 623 ईं की वैशाखी पूणिर्मा के दिन जहां भगवान बुद्ध जन्मे वहीं उनके अनुयायी दलितों के त्राता तथा अतंराष्ट्रीय विख्यात विचारक व पूर्ण स्वराज्य के प्रखर प्रवक्ता डा. भीम राव अम्बेडकर ने मध्यप्रदेश की महू छावनी मे एक अछूत परिवार में भीमा बाई की कोख से 14 अप्रैल 1891 दिन मगंलवार को जन्म लिया। महान स्वतन्त्रता सेनानी एवं भारत रत्न डा0 भीम राव अम्बेडकर बाबा साहेब के नाम से लोकप्रिय थे तथा आज उनकी यशोगाथा कन्या कुमारी से हिमालय तक और बंगाल से पंजाब तक देशवासियों के मन मे पारिजात पुष्पों की सुंगध बनकर बसी हुई है। बाबा साहेब का जन्म उत्सव बडे धूमधाम से देश के कोने-कोने में मनाया जाता है।

वास्तव में यह आर्थिक व सामाजिक श्रृंखलाओं से अभागो की मुक्ति का पावन पर्व है। प्रारभ से ही बाबा साहब शिक्षा को सबसे अधिक महत्व देते रहे। वह जानते थे कि सामाजिक बुराईयों का विनाश शिक्षा के बिना असंभव है। बाबा साहब ने महिलाओं व दलित समाज की विषमताओं को दूर कर उन्हें मानव अधिकार दिलाने के लिए निरन्तर संर्घष किया इसके साथ ही उन्होंनें 27 फरवरी 1931, 15 अगस्त 1931 व 7 नवम्बर 1932 को लदंन में सम्पन हुए गोलमेज सम्मेलनों में भाग। लिया यहां पर डा0 अम्बेडकर ने अंग्रेजों के इस विचार का विरोध किया कि भारतीय अभी स्वराज के योग्य नहीं हुए है। जहां डा0 अम्बेडकर ने जातिगत, वर्णआधारित राजनीति का विरोध कर दलितों के उत्थान के लिए संर्घषशील रहे, इतना ही नहीं उन्होनेें हिन्दु कोड़ बिल पेशकर भारतीय महिलाओं के उद्वार के लिए जो सराहनीय काम किया वह भुलाया नहीं जा सकेगा।

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