ओशो
लोग अकेलापन महसूस करते हैं, उन्हें अपने अकेलेपन को भरने के लिए किसी की जरूरत होती है। वे इसे प्रेम कहते हैं। वे प्रेम दिखाते हैं क्योंकि किसी को रोके रखने का वही एक तरीका है। दूसरा भी इसे प्रेम कहता है क्योंकि आपको रोके रखने का यही एक मार्ग है। पर किसे पता यह प्रेम है या क्या है? प्रेम मात्र खेल है। सच्चा प्रेम संभव है लेकिन केवल तभी जब आपको किसी की आवश्यकता न हो। अगर आप बैंक जाते हैं और आपको पैसों की जरूरत होती है तो वो आपको नहीं देंगे।
अगर आपको पैसों की जरूरत नहीं होगी तो वो आपके पास आएंगे और आपको हमेशा पैसे देने के लिए तैयार रहेंगे। जब आपको किसी इंसान की जरूरत नहीं होती, जब आप स्वयं में पूर्ण होते हैं, जब आप अकेले और बहुत खुश और उत्साहित रह सकते हैं तब प्रेम संभव है। लेकिन तब आप एक चीज के बारे में आश्वासित रह सकते हैं कि यह वास्तविक प्रेम है। लेकिन बाकी चीजों के बारे में क्या? पर बाकी किसी चीज की जरूरत नहीं रह जाती। लगातार इस बात की चिंता कि दूसरे का प्रेम सच्चा है या नहीं—सीधे सीधे एक चीज दिखाती है: आपका प्रेम सच्चा नहीं है। इसके लिए चिंता क्यों करनी? जब तक यह रहे तब तक उसका आनंद लें। तब तक साथ रहें जब तक साथ रह सकते हैं!
यह काल्पनिक कहानी है और आपको काल्पनिक कहानी की अवश्यकता है। प्रेम की उद्घोषणा के पीछे कुछ और नहीं बल्कि जरूरत है। आप चाहते हैं कि आपका प्रेमी आपके खालीपन को भरने के लिए आपके साथ रहे और ऐसा ही कुछ प्रेमिका के साथ भी है। आप दोनों ही एक दूसरे को वस्तु के रूप में उपयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए प्रेमी कहे जाने वाले लोग हमेशा द्वंद में होते हैं झ्र क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि उसका उपयोग हो। जब आप व्यक्ति का उपयोग करते हैं तो व्यक्ति व्यक्ति न रहकर वस्तु बन जाता है।
एक दिन जब आप वास्तव में जागेंगे तो आप प्रेम कर पाएंगेझ्र पर तब आप केवलप्रेम के बारे में आश्वस्त रहेंगे। बसइतना काफी है!क्या आप खुद से प्रेम करते हैं? आपने कभी ये प्रश्न भी नहीं पूछा होगा। जब आप सच में अपने आप से प्रसन्न होते हैं तो आपको किसी को उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं होती। आप इसे साझा करना चाहते हैं। और आप इससे खुशी महसूस करेंगे कि कोई इसे प्राप्त करने के लिए तैयार है। यही पूरा मुद्दा है। किसी के बारे में आश्वस्त होने का कोई तरीका नहीं है – सबसे पहले आप अपने बारे में आश्वस्त होंऔर जो व्यक्ति खुद के बारे में आश्वस्त होता है वह पूरी दुनिया के बारे में आश्वस्त होता है। सुलझा हुआ, केन्द्रित, जमीनसे जुड़ा हुआ, अपने आप में आपको कभी भी ऐसी चीजों की चिंता नहीं करनी चाहिए। जब कोई आपसे प्रेम करता है तो आप उसे स्वीकार करते हैं, आप उसे इसलिए स्वीकार करते हैं क्योंकि आप अपने आप से प्रेम करते हैं।
आप अपने आप से खुश हैं, और लोग भी खुश हैं तो अच्छी बात है। यह आपके सरपर सवार नहीं होना चाहिये। इसे आपको अहंकारी नहीं बनाना चाहिए। आप अपने आप में आनंद पाएं अगर कोई और भी आपमें आनंद पाता है तो अच्छा है! जब तक यह चलता है इस कहानी को जितनी खूबसूरती से हो सकता है जियेंझ्र ये हमेशा नहीं रहने वाली। जब प्रेम खत्म हो जाता है तो आप ये सोचने लगते हैं कि ये झूठा प्रेम था इसीलिए यह खत्म हो गया। नहीं, ऐसा जरूरी नहीं है।आपको प्रेम की आवश्यकता थी लेकिन आप उसके सक्षम नहीं थे। जब आप जागरूक होंगे एक पूरी तरह का नया प्रेम आपके ह्रदय में पनपेगा, जोकि परम सत्य है, जो अनंत का अंश है।