कोरोना एक ऐसी महामारी है जिसने समर्थ से समर्थ देश को भी बेबस बना दिया है। यूरोप के देशों के पास इतने संसाधन होने के बाद भी कोरोना वायरस बहुत तेजी से फैल रहा है। आज हर तरफ खामोशी है उदासी है, मगर इसका यह मतलब नहीं कि हम हार मानकर अंदर बैठे हैं। हम चुप रहकर भी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस महामारी के सामने पर फिर भी हमने हार नहीं मानी और हम सब मिलकर लड़ रहे हैं। यही हमारी एकता का प्रतीक है। अगर कहीं आग लगी हो तो सभी बुद्धिजीव उसे बुझाने के कार्य में लग जाते हैं पर दूसरी तरफ कुछ लोग इस मौके का फायदा भी उठाते हैं। कोरोना जैसी बीमारी का सहारा लेकर हम जात पात देश धर्म की बात नहीं कर सकते। इस प्रकार की बीमारी जब महामारी का रूप लेती है तो उसके सामने न तो धर्म टिकता है न ही अमीर या गरीब। आज देश में संप्रदाय के नाम पर जो माहौल बनता जा रहा है वह कोरोना से भी अधिक चिंतनीय है। लोगों का चाहिए कि वे इस संकट की घड़ी में उन लोगों की सहायता करें जो इस दौर में अपने परिवार को छोड़कर बीमारी से जूा रहे लोगों की सेवा में जुटे हैं। वे उस योद्धा की तरह लड़ रहे हैं जो देश की सीमा पर युद्ध के समय अपनी जान तक की परवाह नहीं करते।
आपसी द्वेष फैलाने वाले लोग सिर्फ मूकदर्शक बनकर देखते हैं और अपनी व्यर्थ की टिप्पणियां देने लगते हैं। इसकी वजह होती है उनकी नकारात्मक सोच। ऐसे नकारात्मक विचार वाले लोग दूसरों के योगदान की प्रशंसा न करके, उनकी गलतियां जरूर ढूंढ लेते हैं। इस पर लाख टके का सवाल उठता है कि संकट के इस दौर में आपस में लड़ना अच्छा है या मिलकर महामारी का रूप लेते जा रहे कोरोना से पार पाना। आज हमारे डॉक्टर, पुलिस, सैनिक, राजनेता, निगम कर्मचारी, मीडिया,प्रशासन,समाज सेवी, स्वास्थ्य कर्मचारी, व अन्य लोग, जो अपनी जिंदगी की परवाह न करके दिल से काम कर रहे हैं। क्या हम घर बैठकर उनके लिए दुआ नहीं कर सकते? कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें डरना नहीं चाहिए। पर क्यों? वो भी इंसान है हमारी तरह, उनके भी परिवार हैं, पर फिर भी वो डर और भावनाओं को छोड़कर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। आप इस बात को समझें कि योगदान का रूप चाहे जो भी हो वह हमेशा प्रशंसनीय होता है जरूरी नहीं कि कोई सामने आकर ही योगदान दे। कोई पैसे का योगदान दे रहा है तो कोई खुद बाहर निकल कर कार्य कर रहा है, कोई शारीरिक तो कोई मानसिक कार्य करके योगदान दे रहा है। इन सबका योगदान अतुल्य है व बहूत महत्वपूर्ण है।
इस देश की विशेषता यही रही है कि संकट के दौर में हम हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े होते हैं। उस समय न तो धर्म और न जात पात की कोई सीमा रहती है। आज भी इस बात की आवश्यकता है कि जिस तेजी के साथ हमारे देश में यह महामारी बढ़ रही है उसके लिए हम एक होकर लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए घर रहें। जिनकी आवश्यकता बाहर जाकर इस युद्ध में अपना योगदान देने की है वे ही बाहर निकलें। चिकित्सक, पुलिस तथा मीडिया के साथियों का सहयोग किया जाए। जो लोग इस समय सांप्रदायिक रंग देना चाहते हैं उनसे प्रार्थना है कि देश का बबार्दी की ओर न लेकर जाएं। यह देश भगत सिंह और अशफाक की कुबार्नी से आजाद हुआ है। इस देश में डॉ. होमीभाभा और डॉ. अब्दूल कलाम जैसे वैज्ञानिक दिए हैं। भारत में धर्म और संस्कृति की विविधता के कारण ही हम दूनिया की सबसे शक्तिशाली विरासत आज तक संभाल कर रखे हुए हैं। किसी भी देश में कोई भी संकट आया उस पर तभी विजय पाई गई जब सबने मिलकर चुनौती को स्वीकार किया। आज भी सभी राजनैतिक दलों से लेकर छोटे बड़े सभी सामाजिक संगठनों को अपनी जिम्मेवारी समाकर देश के भविष्य की चिंता होनी चाहिए न कि अपने स्वार्थ की।
आपको इस पर गर्व होना चाहिए। इसलिए आप सब से अनुरोध है कि आप एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना बंद करें। मैं किसी भी पार्टी, या किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हूं, न ही समर्थन कर रही हूँ।
मैं यह भी नहीं कहती कि आप अपने विचार व्यक्त न करें, क्योंकि यह हम सबका अधिकार है। मैं इस माध्यम से सिर्फ आपसे यह विनती करती हूं कि जो विचार नकारात्मक हैं या इस महामारी से संबंधित नहीं है कृपया कुछ दिन उन्हें अपने मन में रखें ताकि सब मिलकर हमारे दुश्मन जिसका नाम ‘कोरोना वायरस’ है उस से लड़ सकें। यह वक्त हम सबके एक होने का है। इस महामारी से लड़ने का है, तभी तो हम इसे हरा पाएंगे।
कंचन चौधरी
(लेखिका एक एनजीओ संबंधित हैं और ये इनके अपने विचार हैं।)
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