Punjab-Haryana High Court News: डीएलएफ- वाड्रा लैंड डील मामला: ढींगरा आयोग की वैधता की याचिका खारिज

0
137
डीएलएफ- वाड्रा लैंड डील मामला: ढींगरा आयोग की वैधता की याचिका खारिज
डीएलएफ- वाड्रा लैंड डील मामला: ढींगरा आयोग की वैधता की याचिका खारिज

Haryana News Chandigarh (आज समाज) चंडीगढ़: हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हाई कोर्ट से एक बार दोबारा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने ढींगरा आयोग पर तीसरे जज के फैसले के खिलाफ व स्पष्ट राय के लिए नए सिरे से निर्णय की आवश्यकता की मांग को खारिज कर दिया है। हुड्डा के अनुसार, इस मामले पर स्पष्ट रूप से तीनों जजों ने अलग-अलग राय रखी है इसलिए इस पर नए सिरे से निर्णय की आवश्यकता है। हुड्डा मुख्य रूप से जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग की संवैधानिक वैधता और मामले में आगे की जांच जारी रखने के संबंध में एक खंडपीठ के विपरीत निष्कर्षों पर अपनी राय देते हुए जस्टिस खेत्रपाल द्वारा पारित नौ मई के आदेश से व्यथित थे।इस मामले में जस्टिस खेत्रपाल के फैसले पर सवाल उठाने वाली अपनी याचिका में हुड्डा ने अपनी अर्जी में कहा था कि जस्टिस अनिल खेत्रपाल ने दूसरे जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल की राय से स्पष्ट रूप से सहमति व्यक्त की है, हालांकि उसी फैसले में उन्होंने पहले जज अजय कुमार मित्तल द्वारा अपनाए गए इस तर्क का सहारा लेने की राय दी है, कि आयोग को जांच आयोग अधिनियम की धारा 8 बी के तहत नोटिस जारी करने के चरण से कार्यवाही शुरू करने की छूट होगी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी अर्जी में कहा था कि , क्योंकि जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल ने हरियाणा राज्य को केवल उसी विषय पर जांच आयोग नियुक्त करने की स्वतंत्रता दी है, क्योंकि ढींगरा आयोग की अवधि समाप्त हो जाने के कारण कानून में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं थी। हुड्डा ने अर्जी में यह भी कहा कि वास्तव में, तीसरे जज ने संदर्भ की शर्तों के अनुसार खंडपीठ के किसी भी जज से सहमति नहीं जताई है और एक स्वतंत्र राय बनाई है जो दोनों का मिश्रण है। जांच आयोग की रिपोर्ट को खारिज किए जाने के बाद भविष्य में की जाने वाली कार्रवाई के मुद्दे पर तीन समान रूप से विभाजित राय हैं। याचिका में बताया गया कि हाई कोर्ट के नियमों के अनुसार, जांच आयोग की रिपोर्ट को खारिज किए जाने के बाद भविष्य में की जाने वाली कार्रवाई का बिंदु इस मामले को अंतिम निर्णय के लिए एक या अधिक न्यायाधीशों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, क्योंकि मामले की सुनवाई करने वाले तीनों जज ने अलग-अलग और समान रूप से विभाजित राय व्यक्त की है और इस मुद्दे पर जजों के बीच बहुमत की राय का अभाव है।