संसद में तीन तलाक पर मोदी सरकार की जीत बड़ा सामाजिक परिवर्तन ले कर आएगी। तीन तलाक मुस्लिम समाज के साथ भारतीयता के लिए भी किसी कलंक से कम नहीं था। देश ने एक ऐसी सामाजिक कुप्रथा पर जीत हासिल किया है जो आधुनिक, सभ्य और प्रगतिवादी समाज के लिए एक बदनुमा धब्बा था। मुस्लिम समाज में व्याप्त मध्ययुगीन कुप्रथा यानी तीन तलाक का अंत हो गया।
राष्टÑपति की मंजूरी मिलने के बाद अब यह कानून बन गया जाएगा। संसद ने मुस्लिम महिलाओं को तलाक! तलाक!! तलाक!!! से आजादी दिला दी। जिसकी वजह से उनका वैवाहिक जीवन अधर में लटका रहता था। उन्हें हमेशा यह डर सताता था कि जाने कब पति किसी बात से नाराज होकर मोबाइल, व्हाट्सऐप, फेसबुक, चिट्ठी के जरिए तलाक, तलाक, तलाक का संदेश भिजवा दे। बिल को किसी सरकार या दल की सियासी जीत के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। यह आधुनिक सोच और बदलते भारत का नजरिया है। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक का बिल पास हो गया। जबकि दुनिया के 22 मुल्कों में यह पूरी तरह प्रतिबंधित है। पाकिस्तान जैसे देश में भी इस कुप्रथा पर प्रतिबंध है। फिर हमें प्रगतिवादी कहलाने का कोई हक नहीं था।
तीन तलाक पर सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की नहीं पूरे भारत की जीत हुई है। यह सामाजिक परिवर्तन का बड़ा उदाहरण है। समाज के एक वर्ग की आधी आबादी को न्याय मिला है। इस बिल के पास होने से मुस्लिम महिलाओं में बेहद खुशी देखी गई। हांलाकि मुस्लिम पर्सनल ला बार्ड और कट्टरपंथी विचारधारा के मुस्लिमों को आघात पहुंचा है। मुस्लिम समाज का एक तबका इसे मोदी सरकार की सियासी जीत के साथ हिंदुत्व की बड़ी जीत भी मानता है।
भारत दुनिया का वह पहला मुल्क बन गया है जहां अब तीन तलाक पर जेल की सजा होगी। बिल के समर्थन में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े। निश्चित रूप से मोदी सरकार की यह ऐतिहासिक जीत है। लोक और राज्य सभा में बहुत से आंकड़ों में अभी तक यह बिल उलझता रहा। बिल पर सरकार रणनीतिक जीत हासिल कर विपक्ष को बौना कर दिया। वहीं मुस्लिम महिलाओं की हमदर्दी हासिल कर अपने सियासी वोटबैंक को साधने में भी भाजपा कामयाब हुई। मुस्लिम समाज की महिलाओं से उसने जो वादा किया था उस पर वह खरी उतरी। क्योंकि 2014 में भाजपा की बड़ी जीत में मुस्लिम वर्ग की महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई थी। राज्यसभा से कुछ सियासी दलों के वाक आउट से सरकार का काम और आसान हो गया। सच कहा जाए तो बिल को पास कराने में विपक्ष ने सरकार का काम आसान कर दिया।
कांग्रेस तीन तलाक बिल पर 34 साल बाद भी हासिए पर खड़ी दिखी। मुस्लिम वोट बैंक की नीति उसे कहीं का नहीं छोड़ा। कांग्रेस तीन दशक से अधिक वक्त बीत जाने के बाद भी सामाजिक बदलाव को भांपने में नाकामयाब रही। 1986 में शाहबानों प्रकरण में उसने जो ऐतिहासिक भूल की थी वहीं भूल उसने 2019 में भी दोहराई। जिसका नतीजा है कि कांग्रेस आज खुद का अस्तित्व तलाश रही है। जबकि दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी भाजपा रूठिवादी विचारधाराओं को किनारे कर प्रगतिवाद को अंगीकृत कर नया इतिहास लिखा है। तीन तलाक की जमींनी सच्चाई तो यह थी कि मुस्लिम समाज के प्रबु़द्धवर्ग को इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए स्वयं आगे आना चाहिए था। समाज के राजनेताओं को इसमें अच्छी भूमिका निभानी चाहिए थी। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए।
तीन तलाक के नाम पर सिर्फ मुस्लिमों को डराने का काम किया गया। जिसकी वजह से यह बाजी भाजपा मार ले गई। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1986 में अगर मुस्लिम वोटबैंक के दबाव में न आते तो यह मसला भाजपा के हाथ न लगता। विपक्ष बिल को अटकाने के लिए सीलेक्ट कमेटी का राग अलापता रहा लेकिन सरकार दोनों सदनों में बहस के बाद अपनी रणनीति पर कायम रही। आखिरकार बिल पास करा लिया। राज्यसभा में चर्चा के दौरान प्रतिपक्ष सरकार पर हमलावर दिखा। राज्यसभा में गैर भाजपाई दलों ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस ने बिल को सरकार के पावर का नसा बताया और कहा कि यह मुस्लिम परिवार को बांटने और जेल भरने की नियति है। दूसरे दलों के राजनेताओं ने इसे मोदी सरकार की हठधर्मिता, सियासी खेल बताया। लेकिन सरकार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही और कामयाब हुई। जबकि राज्यसभा में विपक्षी एकता हासिए पर चली गई। संसद में मोदी सरकार की इस लड़ाई की असली नायक तो उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानों हैं। जिसने भाजपा के लिए जमीन तैयार की।
शायरा के पति ने 2001 में स्पीड़ पोस्ट से तीन तलाक का संदेश भेजा था। शायरा ने इसे सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दिया। जिस पर देश की शीर्ष अदालत के पांच सदस्यीय जजों की खंडपीठ ने तीन-दो से शयरा बानों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इसे सामाजिक कलंक बताया और इसे खत्म करने कहा। मोदी सरकार के लिए शीर्ष अदालत का फैसला अमोध अस्त्र साबित हुआ और संसद में वह कामयाब हुई। ससंद में विपक्ष बार-बार कहता रहा कि पति को जेल में भेजना उचित नहीं है अगर उसे जेल भेज दिया गया तो तलाकशुदा महिला को गुजारा भत्ता कहां से देगा। तलाक को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए। जिस पर सरकार बिल में संसोधन भी किया। संशोधन के पूर्व यह था कि तीन तलाक की रिपोर्ट कोई पड़ोसी भी करा सकता था, लेकिन इसके दुरुपयोग की आशंका देखते हुए इसमें परिर्वन किया गया और नए सुधार के अनुसार पीड़ित महिला या उसके खून के रिश्ते में आने वाला व्यक्ति ही पुलिस में इसकी सूचना दे सकता है। बिल से 10 करोड़ मुस्लिम महिलाओं को सीधा लाभ पहुंचेगा। मुस्लिम महिला सशक्तिकराण को लेकर नई उम्मीद जगी है।
अब तलाक देने वाले पति को जेल जाना होगा। हालांकि अभी काफी समस्याएं आएंगी। मुस्लिम समाज का एक वर्ग शरियत को सब कुछ मानता है। वह तलाक की सोच को आगे बढ़ता रहेगा। पुरुष और महिलाओं के बीच एकाधिकार को लेकर जंग बढ़ेगी। जिसकी वजह से तलाक में बाढ़ के साथ आपराधिक घटनाएं भी आएंगी। अदालतों में मुकदमों की तादात बढ़ेगी। लेकिन मुस्लिम समाज में नई विचारधारा के लोग इस बात को समझते हैं और भविष्य में महिला अधिकारों को लेकर इसमें बदलाव आएगा।
लेकिन इस बिल के पास हो जाने के बाद विपक्ष पुरी तरह हताश और बिखर गया है। जिसकी वजह से कश्मीर से धारा-370 और 35ए पर मोदी सरकार का रास्ता साफ दिखता है। विपक्ष और कश्मीरी नेताओं के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। निश्चित तौर पर यह मोदी सरकार की बड़ी जीत और विपक्ष की पराजय है। सरकार अपनी रणनीति में पूरी तरह कामयाब रही जबकि विपक्ष आंकड़ों की कलाबाजी में बिखर गया।
प्रभुनाथ शुक्ल
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)