लोक सेवकों को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराने के लिए सीधे साक्ष्य अनिवार्य नहीं : एससी

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Direct Evidence Not Necessary

आज समाज डिजिटल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है को लोकसेवकों को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराने के लिए सीधे साक्ष्य का होना अनिवार्य नहीं है। न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि शिकायतकर्ताओं के साथ ही अभियोजन पक्ष को भी ईमानदार प्रयास करना चाहिए ताकि भ्रष्ट लोक सेवकों को दोषी ठहराकर उन्हें सजा दी जा सके। उन्होंने कहा, इससे प्रशासन व शासन भ्रष्टाचार से मुक्त होगा।

ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान

संविधान पीठ ने यह भी माना है कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी मुकदमे को साबित कर सकते हैं। मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में जस्टिस बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बी वी नागरथना भी शामिल थे। उन्होंने कहा, भले ही मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न हो, संबंधित प्रावधानों के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है। बता दें कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक-2018 में रिश्वत देने वाले को भी इसके दायरे लाया गया है।

इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है। लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल से तथा राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी। रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिये 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। जाँच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।

गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दोषी को 17 साल बाद बेल

गोधरा ट्रेन अग्निकांड में 17 साल से जेल में बंद दोषी फारुक को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। फारुक को जमानत देते वक्त अदालत ने कहा कि वह 17 साल जेल में सजा काट चुका है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोषियों में से एक फारुक की ओर से पेश वकील की दलील पर विचार किया। फारुक के वकील ने कहा कि अब तक की अवधि को देखते हुए उसे जमानत दी जाए।

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ याचिका पर अगले महीने सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट अगले महीने जनवरी के आखिरी सप्ताह में चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दायर पीआईएल पर सुनवाई करेगा। पीआईएल में राजनीतिक दलों को चंदा देने की अनुमति देने वाले कानूनों को चुनौती दी गई है। जस्टिस बी आर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, इस मामले पर सुनवाई की जरूरत है। उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा, यह 2015 का मामला है। छुट्टी के अंतिम दिन से ठीक पहले आपके पास ऐसी आपात स्थिति नहीं हो सकती है, अभी कोई चुनाव नहीं है। हम इस पर जनवरी 2023 के अंतिम सप्ताह में सुनवाई करेंगे।

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