आहार, विहार और विचार शुद्ध तो होगा आध्यात्म

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आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली:
व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की उम्मीद रखता है। इसके लिए जरूरी है आहार, विहार और विचार शुद्घ हो। आज विकास की बहुत बातें होती है पर हमें यह समझ लेने की आवश्यकता है कि केवल भौतिक विकास विकास से ही हमारा कार्य चलने वाला नहीं है। व्यक्ति केवल भौतिक नहीं अपितु आध्यात्मिक उन्नति की भी अपेक्षा रखता है। इसके लिए आवश्यक है कि उसका आहार, विहार और विचार शुद्घ हो। आज विकास की बहुत बातें होती है पर हमें यह समझ लेने की आवश्यकता है कि केवल भौतिक विकास विकास से ही हमारा कार्य चलने वाला नहीं है।
यह द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने अभा आध्यात्मिक उत्थान मंडल के वार्षिक अधिवेशन में व्यक्त किया। शंकराचार्य बाल विद्या निकेतन में शंकराचार्यजी के 98वें जन्मोत्सव नौ सितंबर के उपलक्ष्य में गुरुकृपा सप्ताह के तहत कार्यक्रम चल रहे है। जिसमें चौथे दिन अधिवेशन किया गया। इस दौरान शंकराचार्य ने कहा कि सड़क, बंगला, गाड़ी के रहने पर भी यदि हमें अन्न-जल न मिले तो हमारा कार्य रूक जाएगा। इसलिए सड़क-बंगला, गाड़ी लाने के पहले हमें अपने अन्न और अन्न के लिए विचार करने की आवश्यकता है। अन्न-जल की भी उपलब्धता सुनिश्चित करने मात्र से कार्य नहीं बनेगा, उसकी शुद्घि भी महत्वपूर्ण है। शंकराचार्य ने कहा कि आज उर्वरक से उपजाए गए अनाज हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे है। इसलिए सरकारों और जनता को शुद्घ पेयजल और देशी खाद द्वारा उपजाए गए शुद्घ अन्न को सबको मिलना सुनिश्चित करना चाहिए। शंकराचार्य ने गंगा, यमुना, नर्मदा आदि नदियों की शुद्घि, गोरक्षा, सनातन धर्म के उत्थान आदि विषयो पर भी उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन किया।