पूरे देश पर आजादी के जश्न का खुमार है। जश्न मनना चाहिए और दिल खोलकर मनाना भी चाहिए। लेकिन स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व यानी 14 अगस्त से ही यह जश्न थोड़ा सा अधूरा लग रहा है। आजादी के लिए सबकुछ कुर्बान कर देने वालों ने क्या ऐसे ही आजाद भारत की कल्पना की थी? आज एक परिवार घुट रहा रहा है। क्यों उसे इंसाफ नहीं मिल रहा है? इस परिवार के बुजुर्ग पहलू खान को अलवर की सड़कों पर पीटा गया था। उस पिटाई को पूरे देश ने देखा था। इससे कुछ नाराज हुए थे, कुछ शर्मसार हुए थे। पिटाई इतनी हुई थी कि पहलू ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। मरने से पहले उन्होंने अपने आखिरी बयान में 6 लोगों के नाम लिए थे। अब अलवर कोर्ट का फैसला आया है। सभी 6 आरोपी बेगुनाह हैं। वो भी जो वीडियो में दिखे थे। सीबीसीआईडी पहले ही उन 6 लोगों को क्लीनचिट दे चुकी है, जिनका नाम पहलू ने मरते-मरते लिया था।
इस पूरे फैसले के लिए कोर्ट को कतई दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि कोर्ट सबूतों के आधार पर ही फैसला देता है। प्रथम दृष्टया सारा दोष उन पुलिसकर्मियों के सिर पर ही मढ़ा जा सकता है, जिन्होंने सबूत जुटाने में लापरवाही की। कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है। अलवर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आर्इं। किसी ने तंज कसते हुए कहा कि पहलू खान को किसी ने नहीं मारा, वहीं किसी ने राहत इंदौरी की इन पंक्तियों का जिक्र किया- ‘अब कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल, आप तो कत्ल का इल्जाम हमीं पर रख दो।’ कुछ प्रतिक्रियाओं में कहा गया है कि लिंचिंग का यह मामला कैमरे में कैद हो गया था, फिर भी आरोपी बरी हो गए।
जानकार बताते हैं कि पहलू के परिवार को 14 अगस्त को कोर्ट के बाहर डर लग रहा था। जितनी जल्दी हो सके हरियाणा में अपने घर जाना चाहते थे। जब कोर्ट के बाहर पहलू का परिवार सिसकियों में था तो पास ही नारे लग रहे थे- ‘भारत माता की जय।’ लगभग उसी वक्त एक आरोपी के वकील हुकुम चंद शर्मा कह रहे थे कि जो राजनीतिक रोटियां सेंक रहे थे, ये फैसला उन पर करारा तमाचा है। अब इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि कथित आरोपियों के हौसले कितने बुलंद रहे होंगे। बताते हैं कि मामले के गवाहों को धमकियां दी गर्इं। पहलू के बेटों पर हमला किया गया। पहलू के बेटों पर गो तस्करी का केस किया गया। हमला बहरोड़ कोर्ट के बाहर हुआ था। इसलिए उन्होंने अलवर कोर्ट में केस ट्रांसफर की अपील की थी।
आपको बता दें कि पहलू खान की मॉब लिंचिंग होते जिसने भी वीडियो देखा था वो अनायास ही कह उठता था कि इसमें तो पक्की सजा होगी। ये लोग बचेंगे नहीं। लगता था कि इसमें तो कानून की कम जानकारी रखने वाला वकील भी पहलू के परिवार को इंसाफ दिला सकता है। लेकिन जांच करने वालों ने ऐसे-ऐसे पेंच फंसाए, कि मामला कानून की गलियों में उलझ कर रह गया। अभियोजन पक्ष कोर्ट में वीडियो का सत्यापित वर्जन तक नहीं दे पाया। अगर इस मामले में किसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी से इंकार भी कर दें तो ये हमारी जांच एजेंसियों की क्षमता के बारे में बताती हैं। सरकार कह रही है आगे अपील करेगी, मगर सवाल ये है कि क्या जांच करने वाले अफसरों के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाएगा। और नहीं तो क्या गारंटी कि आगे की अदालत में सबूत पेश होंगे।
पहलू खान हरियाणा के नूंह में जयसिंहपुर के रहने वाले थे। छोटी कास्तकारी थी सो कुछ गाय रखकर आमदनी बढ़ाना चाहते थे। चाहते थे कि गाय का दूध बेचकर परिवार के लिए कुछ जुटाएं। पड़ोस के राज्य से गाय ला रहे थे। तभी मॉब लिंचिंग हुई। उनके पास परमिट थी। भीड़ ने उस परमिट को भी फाड़ दी। उन्होंने कहा कि वो गो तस्कर नहीं हैं। भीड़ सुनी नहीं। वारदात में पहलू का एक बेटा भी बुरी तरह जख्मी हुआ था। अब परिवार बिखर चुका है। पास पड़ोस के लोग खाने-पीने का सामान देकर मदद करते हैं। क्विंट में यह जानकारी दी गई है कि पड़ोस में जो मुसलमान डेयरी वाले थे, उन्होंने गाय रखना बंद कर दिया है। इस घटना के बाद कोर्ट से जो फैसला आया, उसे देख यह संदेश गया कि अब यहां सरेआम गुनाह करके भी बचा जा सकता है। ये भी कि सत्ता में कोई पार्टी हो, फर्क नहीं पड़ता। जब वोट बैंक की बात आती है तो सत्ता का रवैया एक सा होता है। और एक पैटर्न है। मुजफ्फरनगर में दंगे के आरोपी नेताओं को क्लीनचिट दिया जा रहा है। मॉब लिचिंग के आरोपियों को सांसद माला पहनाकर स्वागत करते दिखते हैं। इस बीच पहलू के परिवार का अहम सवाल है कि हमें कोर्ट में भी इंसाफ नहीं मिलेगा तो हम कहां जाएं? ये सवाल आजादी के जश्न पर वाकई गंभीर सवाल उठाता है।
मामले में एडिशनल सेशंस जज डॉक्टर सरिता स्वामी ने छह अभियुक्तों को बरी करने वाले 92 पन्नों के आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में अभियुक्तों का दोष सिद्ध करने में नाकाम रहा है। जज डॉ. स्वामी ने अपने आदेश में लिखा है कि जिस मोबाइल फोन को कथित तौर पर इस बर्बर घटना को रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल किया गया था, उसे पुलिस ने कभी अपने कब्जे में लिया ही नहीं। वीडियो वाकई बनाया गया था या इससे छेड़खानी तो नहीं हुई, इसका पता लगाने के लिए इस फोन को फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (एफएसएल) भी नहीं भेजा गया। जानकार बताते हैं कि अभियुक्तों पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज है। इसमें 302 (हत्या), 341 (सदोष अवरोध), 308 (गैर इरादतन हत्या की कोशिश), 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना) आदि शामिल हैं। अभियोजन पक्ष का कहना है कि 1 अप्रैल, 2017 को पहलू खान, उनके दो बेटों और चार अन्य पर कथित तौर पर गो-तस्करी के संदेह में हमला हुआ था। सब देखने के बाद जज ने फैसले में लिखा है कि इस जांच को विश्वसनीय नहीं माना जाता क्योंकि इसमें कई गंभीर कमियां हैं। कोर्ट ने कहा कि दो वीडियो में से पहले वीडियो को सबूत के तौर पर भरोसे लायक नहीं माना जा सकता क्योंकि मोबाइल फोन को न तो कब्जे में लिया गया और न ही उसे विश्वसनीय जांच के लिए एफएसएल के पास भेजा गया। जज डॉ. स्वामी ने अपने फैसले में संदेह के लाभ के आधार पर अभियुक्तों को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
यद्यपि अदालत ने अपने फैसले में पुलिस की काफी मरम्मत की है, बावजूद इसके अदालत को चाहिए था कि वह पुलिस को बाध्य करती कि वह हत्या के सारे तथ्य उजागर करे। हत्या के उस वीडियो को सारे देश ने देखा था। वह खुले-आम उपलब्ध है। अदालत चाहती तो उसे खुद यू टयूब पर देख सकती थी। उसे देखा भी लेकिन अदालत ने उस पर भरोसा नहीं किया। अदालत ने इस मामले में पुलिस की लारवाही का मामला माना।
अब अदालत को उन पुलिस वालों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए, जिन्होंने सारे मामले पर पानी फेरने की कोशिश की? यह ठीक है कि राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने इस मुकदमे पर अपील करने की घोषणा की है लेकिन उसकी कौन सी मजबूरी है कि उन पुलिसवालों को वह दंडित नहीं कर रही है? उन्हें तुरंत मुअत्तिल किया जाना चाहिए। उसकी मिलीभगत या लापरवाही की वजह से सरकार, अदालत और पुलिस विभाग की इज्जत पैंदे में बैठी जा रही है। बहरहाल, देखना यह है कि पहलू खान के परिवार को किस तरह इंसाफ मिलता है?
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं)
trajeevranjan@gmail.com
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