राज़वी एच. मेहता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के विश्व मानसिक स्वास्थ्य सर्वे पर आधारित एक अध्ययन के अनुसार विश्व स्तर पर भारत में अवसाद की दर सबसे ज्यादा है। अधिक चिंताजनक स्थिति यह है कि सभी आयु के लोग, किशोर से लेकर प्रौढ़ तक, अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं। यह सभी आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को प्रभावित कर रहा है। चाहे एक अभावग्रस्त व्यक्ति जो एक शाम के भोजन के लिए जद्दोजहद कर रहा है या एक अमीर व्यक्ति जो विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर मानसिक स्थिति में अपना जीवन ही समाप्त करने का निर्णय ले लेता है। भारत में किशोरों और युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति ने यह इस बात को रेखांकित किया है कि इस बीमारी पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।
किसी व्यक्ति में अवसाद का प्रांरभ बहुत छोटी व तुच्छ चीजों से भी हो सकता है। जैसे कक्षा में प्रथम न आ पाना, परीक्षा में मनचाहे अंक प्राप्त न कर पाना आदि। अवसाद के कुछ गंभीर कारण भी हो सकते हैं जैसे कोई व्यक्ति अपने किसी अंग के पक्षाघात से ग्रस्त हो। कैंसर तथा मानसिक असंतुलन जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों को भी अवसाद हो सकता है। इसे द्वीतीयक अवसाद कहते हैं। ऐसे लोगों में अवसाद धीरे-धीरे कम हो जाता है, जो गंभीर बीमारी से लड़ना सीख जाते हैं या उनका सफल इलाज हो जाता है।
घटना और वजह जिससे अवसाद होता है को अलग रखते हुए अवसाद का मूलभूत लक्षण बहुत ही सामान्य है। एक अवसाद ग्रस्त व्यक्ति कंधे को उचकाता है, छाती को सिकोड़ता है, भावनात्मक रूप से कमजोर दिखता है तथा उसमें जीवन के प्रति अलगाव और गैर जवाबदेही दिखाई पड़ती है। कई मामलों में अवसाद अपने आप ही धीरे-धीरे कम होने लगता है। वहीं कुछ मामलों में यह काफी लम्बे समय तक जारी रहता है।
अवसाद के प्रकार
रोगजन्य और शरीरजन्य अवसाद : यह किसी दूसरी बीमारी (गंभीर व जीवन पर्यंत चलने वाली) या किसी इलाज के कारण होती है।
उम्मीद या विफलता आधारित अवसाद : यह उस स्थिति में होता है, जब कोई अपनी उम्मीद पूरी नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी या एक खिलाड़ी जो किसी परीक्षा या खेल में आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाता। यह क्षणिक होता है, परंतु उन्हें इससे बाहर निकलने की आवश्यकता है, ताकि उनका अगला प्रदर्शन प्रभावित न हो।
भावनात्मक अवसाद : यह भावनात्मक जुड़ाव के टूटने पर होता है। उदाहरण के लिए दो व्यक्ति जो एक दूसरे के अत्यधिक नजदीक हैं, तो किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु या शोक से भी अवसाद हो सकता है।
अहम केन्द्रित अवसाद: अवसाद का यह प्रकार उन लोगों में होता है, जो उच्च अधिकार प्राप्त तथा उच्च पद/स्थिति में जीवन बिताते हैं और जब वे पाते हैं कि अब इसके अधिकारी नहीं है। आमतौर पर यह बीमारी तब होती है, जब लोग अवकाश प्राप्त करने के करीब होते हैं।
अवसाद का सामना करने हेतु योग दृष्टिकोण
योग वास्तव में मस्तिष्क तथा भावनाओं का विज्ञान है और इसलिए अवसाद के लक्षणों को दूर करने के लिए यह एक महान वरदान है। अवसाद के मामलों में जिस चीज की तुरंत आवश्यकता होती है, वह है व्यक्ति को लक्षण के अनुरूप आराम पहुंचाना।
किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति और भावनाएं उसकी शारीरिक मुद्रा में प्रतिबिंबित होती हैं। यदि शारीरिक मुद्रा में कोई संशोधन होता है, तो यह व्यक्ति के भावनात्मक स्थिति में बदलाव ला सकता है। यहीं पर योग की शारीरिक मुद्रा (आसन) अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की मदद कर सकती है। यह प्रभाव क्षणिक हो सकता है परंतु जब एक निश्चित समय तक इसका निरंतर अभ्यास किया जाता है, तो यह व्यक्ति में परिवर्तन ला सकता है और अवसाद से मुक्ति दिला सकता है।
विभिन्न आसनों में सबसे प्रभावी उर्ध्व धनुरासन और विपरीत दंडासन हैं। इसमें कंधे को पीछे ले जाया जाता है, जिससे छाती खुलती है और इस प्रकार यह अवसाद की मुद्रा का प्रतिकार करता है। हालांकि कोई व्यक्ति इन आसनों को तुरंत ही नहीं कर सकता क्योंकि इसमें रीढ़ की हड्डी को पीछे की ओर वलय रूप में मुड़ने लायक होना चाहिए।
यही कारण है कि खड़ी मुद्रा वाले आसन जैसे त्रिकोणासन, पार्श्वकोणासन और अर्धचन्द्रासन इस प्रकार सहायता प्रदान करते है कि इससे रीढ़ मजबूत होती है और एक व्यक्ति पीछे की ओर झुक जाता है। जैसा कि पहले कहा गया है कि आसन प्रभावी होते हैं, परंतु जब हम अवसाद ग्रस्त होते हैं, तो हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प हमसे दूर हो जाते हैं। किसी कार्य को पूरा करने की हमारी इच्छा अपने निम्न स्तर पर होती है। ऐसी स्थिति में विख्यात योगाचार्य वी.के.एस. अयंगर ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने घरेलु मुड़ने वाली कुर्सी का उपयोग किया ताकि एक व्यक्ति आसानी से विपरीत दंडासन कर सके, जिससे उसके मन और मस्तिष्क में परिवर्तन संभव हो सके।
अवसाद के लक्षणों को समाप्त करने में उल्टे आसन सहायता करते हैं। इन उल्टे आसनों के अंतर्गत अधोमुख वृक्षासन, पिंच मयूरासना, शीर्षासन, सर्वांगासन और सेतु बंध सर्वांगासन आते हैं। इन सभी आसनों को करते समय हमारा मस्तिष्क हृदय से नीचे होता है। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति आंतरिक भय से पीडित होता है, ये आसन आंतरिक भय जैसे किसी वस्तु, व्यक्ति के खोने का डर, असफलता का भय और शक्तिहीन होने के डर से हमें मुक्ति दिलाते हैं।
बोस्टन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के एक अध्ययन के अनुसार जो व्यक्ति सप्ताह में दो बार उपयुक्त उपकरणों के साथ योग करता है और इसका अभ्यास घर पर भी करता है, तो यह अवसाद के लक्षणों को कम करने में मददगार होता है।
प्रत्येक आसन में सांस लेने की विशेष प्रक्रिया होती है। एक व्यक्ति को इसे गंभीरतापूर्वक देखना चाहिए और सांस के प्रति अपने मन में जागरूकता का विकास करना चाहिए। सांस की जागरूकता के साथ जब आसन किये जाते हैं, तो अभ्यास करने वाला व्यक्ति आसन के साथ एकीकृत हो जाता है। इसमें सांस छोड़ने की प्रक्रिया लम्बी हो जाते हैं और इससे तनाव भी बाहर निकल आता है। इसी प्रकार जब हम गहरी सांस लेते हैं, तो हममें साहस की भावना मजबूत होती है।
-लेखिका अयंगर योगश्रया, मुंबई में वरिष्ठ अयंगर योग शिक्षिका हैं।